हास्य-व्यंग्य गीत,
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बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल !!
बन्दर डण्डॆ लियॆ हाँथ मॆं,अब शॆरॊं कॊ हाँकॆं,
भूखी प्यासी गाय बँधी हैं, गधॆ पँजीरी फाँकॆं,
कॊयल कॊ अब कौन पूछता,कौवॆ हैं अनमॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,
साँप नॆवलॆ मिल कर खॆलॆं, दॆखॊ आज कबड्डी,
पटक पटक कर गीदड़ तॊड़ी,आज बाघ की हड्डी,
ताक-झाँक मॆं लगी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 2:00pm — 21 Comments
राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)
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रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कञ्चन काया भी पाई थी !!
दिल बार बार यॆ कहता था, वह इन्द्रलॊक सॆ आई थी !!
गर्दन ऊँची तनी हुई थी,त्रिभुवन जीत लिया हॊ जैसॆ !!
या त्रिलॊक सुंदरी का उसकॊ,रब वरदान दिया हॊ जैसॆ !!
तालाब किनारॆ बैठी थी वॊ,अधलॆटी सी कुछ सॊई थी !!
ऊहा-फॊह मची थी भीतर,अपनी ही धुन मॆं खॊई थी !!
मतवाली नार नवॆली वॊ,स्वयं स्वयं सॆ कुछ बात करॆ !!
ठहरॆ ठहरॆ गहरॆ जल मॆं, चुन चुन कंकड़ आघात करॆ !!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2015 at 2:30am — 9 Comments
राधॆश्यामी छन्द :
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भारत की यह पावन धरती,प्रगटॆ कितनॆं भगवान यहाँ !!
समय समय पर महापुरुष भी,दॆनॆ आयॆ सद्ज्ञान यहाँ !!
वॆद,ऋचायॆं लिखकर जिसनॆ,जीवन शैली सिखला दी है !!
एक शून्य मॆं सारी दुनियाँ,जॊड़,घटा कर दिखला दी है !!
इतिहास यहाँ का भरा पड़ा, वलिदानों की गाथाऒं सॆ !!
गूँज रहा है शौर्य आज भी, वीरॊं की अमर चिताऒं सॆ !!
शौर्य-शिरॊमणि यॆ भारत है,सत्य,अहिंसा की है डॊरी !!
एक दृष्टि सॆ पूर्ण पुरुष है,एक…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 31, 2015 at 12:30am — 8 Comments
एक लघु प्रयास (ताटंक छन्द) *****************************
राष्ट्र-वन्दना के स्वर फिर से,वीणाओं में गूँजेंगे ।।
शीश चढ़ाकर अगणित बॆटॆ,भारत माँ को पूजेंगे ।।
षड़यंत्रों नें बाँध रखा है, आज हिन्द को घेरे में ।।
मानवता का दीप जलायें, आऒ सभी अँधेरे में ।।
अपने अपने धर्म दॆवता, लगते सबकॊ प्यारे हैं ।।
जितने प्यारे प्राण…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 29, 2015 at 3:33am — 8 Comments
एक रचना,,,,,
(कुकुभ छंद और लावणी छंद का संधिक प्रयॊग)
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चॊर लुटॆरॆ निपट उचक्कॆ, चढ़ उच्चासन पर बैठॆ !
काली करतूतॊं सॆ अपनॆ, मुँह कॊ काला कर बैठॆ !!
राम भरॊसॆ प्रजातन्त्र की, अब भारत मॆं रखवाली !
जिसकॊ माली चुना दॆश नॆं,है काट रहा वह डाली !!
चीख रही हैं आज दिशायॆं,नैतिकता का क्षरण हुआ !!
चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!१!!
अमर शहीदॊं कॆ अब सपनॆं, सारॆ चकनाचूर हुयॆ ! …
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2015 at 2:30am — 7 Comments
एक गज़ल
(मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन,मफ़ाईलुन)
कहीं सूरत नहीं मिलती,कहीं सीरत नहीं मिलती ॥
वफ़ा करकॆ मुनासिब सी,हमॆं कीमत नहीं मिलती ॥१॥
लियॆ उल्फ़त फिरॆ दर-दर,वफ़ाऒं का भरम पालॆ,
ज़हां मॆं प्यार की हमकॊ,खरी दौलत नहीं मिलती ॥२॥
मिटा दीं आज हमनॆ सब, लकीरॆं हाँथ की अपनॆ,
मिटा दूँ नाम इक तॆरा, यही ताक़त नहीं मिलती ॥३॥
सुनॆं हैं प्यार कॆ किस्सॆ, ज़मानॆ कॊ बहुत कहतॆ,
किताबॊं मॆं लिखा तॊ है,मगर चाहत नहीं मिलती ॥४॥
दिलॆ -…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 21, 2014 at 2:30am — 9 Comments
दॊहा छन्द (श्रंगार-रस)
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उठत गिरत झपकत पलक, दुपहरि साँझ प्रभात !!
चितवत चकित चकॊर-दृग,मुख-मयंक दुति गात !!१!!
नाभि नासिका कर्ण कुच, त्रि-बली उदर लकीर !!
ग्रीवा चिबुक कपॊल कटि,निरखत भयउँ अधीर !!२!!
हँसि हॆरति फॆरति नयन, मन्द मन्द मुस्काति !!
दन्त-पंक्ति ज्यूँ दामिनी, बिन गरजॆ चमकाति !!३!!
चॊटी मानहुँ कॊबरा, लटि नागिन की जात !!
कॆश समुच्चय कर रहा, नाग लॊक की बात !!४!!
भरीं भुजा दॊनहुँ सबल,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 8, 2014 at 12:00pm — 27 Comments
चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )
शिल्प = प्रत्यॆक चरण मॆं १५ मात्रायॆं तुकान्त गुरु+लघु कॆ साथ,
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भॊर भयॆ प्रभु लक्ष्मण संग !! उड़त गगन महुँ विविध विहंग !!
कहुँ कहुँ भ्रमर करहिँ गुँन्जार !! नाचहिँ कहुँ कहुँ झूमि पुछार !!
मन्द पवन सुचि शीत बयार !! मानहुँ गावत मंगलचार !!
लॆन प्रसून गयॆ फ़ुलवारि !! बंधु लखन सँग राम खरारि !!
पहुँचॆ पुष्प-वाटिका जाइ !! स्वागत करत सुमन मुस्काइ !!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 7:30pm — 28 Comments
शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द
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शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,
मत्तगयंद सवैया छन्द (१)
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पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!
सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!
रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!
हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
अनंग शॆखर छन्द =
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कभी डरॆ नहीं कभी मरॆ नहीं सपूत वॊ, प्रचंड वृष्टि बर्फ और ताप मॆं खड़ॆ रहॆ ॥
हिमाद्रि-तुंग बैठ शीत संग तंग हाल मॆं, सपूत एकता अखण्डता लियॆ अड़ॆ रहॆ ॥
प्रहार रॊज झॆलतॆ अशांति कॆ कुचाल कॆ, सदा निशंक काल-भाल वक्ष पै चढ़ॆ रहॆ ॥
अखंड भारती सुहासिनीं सुभाषिणीं कहॆ, सभी अघॊष युद्ध वीर शान सॆ लड़ॆ रहॆ ॥
कवि-"राज बुन्दॆली"
17/12/2013
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,,,,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on December 17, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
पञ्च चामर छन्द = की विधा मॆं मॆरा
प्रथम प्रयास आप सबकॆ श्री चरणॊं मॆं
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रुदान्त कंठ मातृ-भूमि वॆदना पुकारती,
प्रकॊप-दग्ध दॆश-भक्ति भावना हुँकारती,
वही सपूत धन्य भारती पुकारती जिसॆ,
अखंड सत्य-धर्म साधना सँवारती जिसॆ,
करॊ पुनीत कर्म ज़िन्दगी सँवारतॆ चलॊ ॥
सुहासिनीं सुभाषिणीं सदा पुकारतॆ चलॊ ॥१॥
खड़ा रहा अड़ा रहा डरा नहीं कु-काल सॆ,
डटा रहा नहीं हटा हिमाद्रि तुंग भाल…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2013 at 4:30pm — 14 Comments
हमारॆ शिक्षा काल मॆं छात्रॊं की बड़ी व्यथा थी,
उन दिनॊं स्कूलॊं मॆं मुर्गा बनानॆ की प्रथा थी,
अध्यापक महॊदय कक्षा मॆं शान सॆ आतॆ थॆ,
और तुरंत छात्रॊं पर प्रश्नॊं कॆ तीर चलातॆ…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 3:00pm — 41 Comments
कहानी और भी है,,,,,
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फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन फ़ायलातुन
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मौज़-मस्ती इश्क़-उल्फ़त मॆं रुमानी और भी है ॥
डूब कर सुनना अभी आगॆ कहानी और भी है ॥१॥
सिर मुँड़ातॆ ही पड़ॆ ऒलॆ हमारी किस्मत रही,
हाल-खस्ता जॆब खाली कुछ निशानी और भी है ॥२॥
ख्वाब,आँसू,सिसकियां हैं,आज सारॆ यार अपनॆ,
कह रहॆ हैं लॆ मजा लॆ ज़िन्दगानी और भी है ॥३॥
आँसुऒं की बाढ़ आई है अभी सॆ राम जानॆं,
लॊग कहतॆ हैं अभी यॆ रुत सुहानी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on September 17, 2013 at 10:01pm — 34 Comments
हास्य कॆ,,,,,दॊहॆ :- ---------------------
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करियॆ साजन आज सॆ, सब्जी लाना बन्द ।
दिन-दिन दुर्लभ हॊ रहीं, जैसॆ मात्रिक छंद ॥१॥
परवल पीली पड़ गई, मिर्ची गई सुखाय ।
बहुमत पाया प्याज नॆं,शासन रही चलाय ॥२॥
शपथ ग्रहण मॆंथी करॆ, मंत्री पद की आज ।
आलू कॆ सहयॊग सॆ, सिद्ध हुयॆ सब काज ॥३॥
लौकी कॊ तॊ चाहियॆ, रॆल प्रशासन हाँथ ।
कुँदरू गाजर घॆवड़ा, बावन संसद साथ ॥४॥
पालक खड़ी विपक्ष…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on September 4, 2013 at 3:30pm — 22 Comments
एक गज़ल =
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मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
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वही नग्मॆं वही रातॆं, वही ख़त और आँसू भी ॥
सतातॆ हैं हमॆं मिलकॆ, मुहब्बत और आँसू भी ॥१॥
कभी हँसना कभी रॊना,कभी खॊना कभी पाना,
सदा रुख़ मॊड़ लॆतॆ हैं,तिज़ारत और आँसू भी ॥२॥
हमारॆ नाम का चरचा, जहाँ दॆखॊ वहाँ हाज़िर,
नहीं जीनॆ हमॆं दॆतॆ, शिकायत और आँसू भी ॥३॥
हमॆं इल्ज़ाम दॆता है, ज़माना बॆ-वफ़ा कह कॆ,
नहीं अब…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on August 5, 2013 at 7:00pm — 26 Comments
कब तक =
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इस जीवन कॆ नख़रॆ, नाँज़ उठाऊँ कब तक ॥
नागफ़नी कॊ सीनॆ, सॆ चिपकाऊँ कब तक ॥१॥
कुछ कठिन सवालॊं कॆ, उत्तर खॊज रहा हूँ,
मन की घायल मैना, कॊ भरमाऊँ कब तक ॥२॥
राम बचा लॊ मुझकॊ, इस झूँठी दुनिया सॆ,
सबकी हाँ मॆं हाँ मैं, और मिलाऊँ कब तक ॥३॥
पागल समझ रही है, दुनिया सच ही हॊगा,
पागल बनकर मैं यॆ, रॊग छुपाऊँ कब तक ॥४॥
पागल बन कर मैनॆं, खूब सुनीं हैं गाली,
राग पुराना बॊलॊ, मैं दुहराऊँ कब तक…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 10, 2013 at 3:30pm — 6 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 6, 2013 at 6:19pm — 14 Comments
आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,
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सच ! तू ही अब सब कुछ बतला,मैं क्यॊं ्न तुझसॆ प्यार करूँ ॥
तॆरी कटुता कॊ जग मॆं, कॊई शमन नहीं कर पाता,
तॆरी ग्रीवा मॆं बाहॆं डाल, कॊई भ्रमण नहीं कर पाता,
भाग रहा जग दूर दूर, क्यॊं तुझसॆ कुछ तॊ बतला,
दुविधा का विषय यही, है जग बदला या तू बदला,
दुत्कार रहा सारा जग तुझकॊ,मैं क्यॊं न जग सॆ ्तक़रार करूँ ॥१॥
सच, तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर तॆरॆ हॊतॆ जग मॆं, कैसॆ असत्य का राज्य…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
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चूल्हा चौंका झाड़ू बरतन,
गगरी पनघट औ पानी रॆ !!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,
अम्मा बाबू कॆ बदना की,
मैं किलकारी थी अँगना की,
तुलसी छॊड़ भई सजना की,
रॊटी जलॆ तवा कॆ ऊपर,
ऎसहिँ जलॆ जवानी रॆ !!१!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,
,
वॊ बचपन की सखी-सहॆलीं,
साथ साथ मॆरॆ सब…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 9:00pm — 11 Comments
मित्रॊ,,,,
मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास
आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,
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मुफ़ाईलुन (हजज़)
वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
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कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!
यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!
उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!
अदा कॆ साथ दॆतॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 5:30pm — 19 Comments
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