Added by Lata R.Ojha on March 24, 2011 at 1:24pm — 4 Comments
यूं तो गुज़री हूँ बहुत बार खुद की नज़रों से..
Added by Lata R.Ojha on March 19, 2011 at 1:38am — 5 Comments
Added by Lata R.Ojha on March 17, 2011 at 1:34am — 1 Comment
मैं रहूँ न रहूं ,यादें मेरी रह जाएंगी..
Added by Lata R.Ojha on March 14, 2011 at 12:30pm — 3 Comments
Added by Lata R.Ojha on March 12, 2011 at 10:30pm — 3 Comments
बहुत मुमकिन है ख़्वाबों को हकीकत नाम मिल जाए
Added by Lata R.Ojha on March 5, 2011 at 9:03am — 2 Comments
जब जी चाहे तब गा लेना ,एक गीत अनोखा लायी हूँ..
Added by Lata R.Ojha on February 24, 2011 at 2:33am — 19 Comments
कुछ आंसू छुपाके रखे थे मैंने..
Added by Lata R.Ojha on February 18, 2011 at 8:10pm — No Comments
Added by Lata R.Ojha on February 14, 2011 at 5:27pm — 4 Comments
तेरी आहट मेरे कानों को लगती है ग़ज़ल..
तेरी खुशबु मेरी साँसों में महकती सी ग़ज़ल..
तेरी बातों का सुकूँ रूह में बसती सी ग़ज़ल..
तेरा यकीं मुझे रौशनी देती सी…
Added by Lata R.Ojha on February 12, 2011 at 7:30pm — 3 Comments
एक अनजाना सा घर, एक अनजानी डगर ..
ठान के ,हूँ साथ तेरे,कितना भी हो कठिन ये सफ़र..
पार भव कर ही लेंगे साथ मेरे तुम हो अगर..
छोड़ना मत हाथ मेरा तुम कभी वो हमसफ़र..
प्यार से सजाएंगे हम अपना ये प्रेम नगर..
करना नज़रंदाज़ मेरी गलती हो कोई अगर..
कोशिश तो बस ये मेरी, नेह में न हो कोई…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 7:30pm — 8 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 12:30am — 5 Comments
ओस की बूँद सी आँखों में सिमट आयी है...
फिर भी क्यों लब पे हंसी छाई है..
सांझ का धुंधलका मेरे आसपास सिमटा है..
जैसे मेरे ज़ेहन की परछाई है..
क्यों मिले थे तुम ? क्यों पास हम आये थे?
क्यों अनजान बन के ख्वाब सजाये थे?
एक पत्थर से वो ख़्वाबों का घर बिखरा है..
जो हम अनजाने थे तो पहचाने से क्यों थे ?…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 28, 2011 at 11:00pm — 3 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 25, 2011 at 11:30pm — 9 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 20, 2011 at 3:30pm — 8 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 19, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
उस दिव्य ज्योति की अंश मात्र..
हूँ उस असीम की कृपापात्र..
इस रंगमंच पे जीना है..
कुछ वर्ष-माह मुझे मेरा पात्र..
कुछ ज्ञान कहीं जो सुप्त सा है..
उसको जड़ता से…
Added by Lata R.Ojha on January 16, 2011 at 4:30am — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 11, 2011 at 11:30pm — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 9, 2011 at 10:30pm — No Comments
नब्ज़ टटोलोगे तो कोई रोग पकड़ आएगा
झूठ का रंग भी सच पर से उतर जाएगा
Added by Lata R.Ojha on January 2, 2011 at 12:00am — 1 Comment
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