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Hariom Shrivastava's Blog (45)

बरवै छंद -

1-

हिरणाकुश नामक था, इक सुल्तान।

खुद को ही कहता था, जो भगवान।।

2-

जन्मा उसके घर में, सुत प्रहलाद।

जो करता था हर पल, प्रभु को याद।।

3-

दोनोों  के  थे  विचार, सब  विरुद्ध।

हिरणाकुश था सुत से, भारी क्रुद्ध।।

4-

बहिन होलिका पर था, ऐसा चीर।

जिसे पहनने से ना, जले शरीर।।

5-

मिला होलिका को तब, यह आदेश।

प्रहलाद को गोद लो, कटे कलेश।।

6-

बैठा गोद जपा फिर, प्रभु का नाम।

हुआ होलिका का ही, काम तमाम।।

7-…

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Added by Hariom Shrivastava on March 25, 2019 at 8:00pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद -

1-

होते आम चुनाव से, नेता सत्तासीन।

वोटों की खातिर सभी, खूब बजाते बीन।।

खूब बजाते बीन, करें बढ़चढ़कर वादे।

बन जाते हैं मूर्ख, लोग जो सीधे-सादे।।

चुनकर स्वयं अयोग्य,बाद में खुद ही रोते।

लोकतंत्र की रीढ़, यही मतदाता होते।।

2-

आए हैं अब देश में, फिर से आम चुनाव।

इसीलिए गिरने लगे, नेताओं के भाव।।

नेताओं के भाव, फिरें घर-घर रिरियाते।

चुन जाने के बाद, न जो सुधि लेने आते।।

करिए सही चुनाव, वोट यह व्यर्थ न जाए।

पाँच वर्ष पश्चात्, चुनाव…

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Added by Hariom Shrivastava on March 15, 2019 at 9:32am — 5 Comments

समान सवैया या सवाई छंद

इसमें 32 मात्राऐं व 16'16 पर यति तथा अंत में भगण अर्थात् (211) अनिवार्य है।

【इस छंद में नया प्रयोग करने का प्रयास। अंत में भगण की अनिवार्यता के कारण ‘दीर्घ’ मात्रा प्रयुक्त, अन्यथा सम्पूर्ण छंद में लघु वर्ण】

----------------------------------------

झटपट सजधजकर लचक-धचक, डगमग चलकर पथ महकाकर।

तन झटक-मटक नटखट कर-कर, नयनन सयनन मन बहकाकर।।

फिर घट कर गहकर सरपट चल, पनघट पर झट अलि सँग जाकर।

जल भरकर सर पर घट रखकर, पग-पग चलकर खुश घर आकर।।

(मौलिक व…

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Added by Hariom Shrivastava on March 13, 2019 at 7:31pm — 5 Comments

कुण्डलिया छंद-

बेटा-बेटी  में  किया, जिसने   कोई  भेद।
उसने मानो कर लिया, स्वयं नाव में छेद।।
स्वयं नाव में छेद, भेद  की  खोदी  खाई।
बहिना से ही दूर, कर दिया उसका भाई।।
कोई  श्रेष्ठ न तुच्छ, लगें  दोनों  ही  प्रेटी।
ईश्वर  का   वरदान,  मानिये   बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on March 11, 2019 at 10:30am — 7 Comments

कुण्डलिया छंद -

बेटा-बेटी    में    करें, भेदभाव    क्यों    लोग।
सबका अपना भाग्य हैं, जब हो जिसका योग।।
जब हो जिसका योग, और प्रभु की जो मर्जी।
कौन  श्रेष्ठ  या  हेय,  धारणा  ही   ये    फर्जी।।
पुत्री  हो   या   पुत्र, नहीं   इसमें   कुछ   हेटी।
दोनों    एक    समान, आज   हैं    बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on March 10, 2019 at 10:30am — 7 Comments

सरसी छंद - "अरुणोदय"

1-

धीरे-धीरे आसमान का, रंग हो रहा लाल।

अतिमनभावन दृश्य सुहावन,है अरूणोदय काल।।

पसरा था जो गहन अँधेरा, अब तक चारों ओर।

उसे चीरकर आयी देखो, प्राणदायिनी भोर।।

2-

नवप्रभात ने फूँक दिए ज्यों, सकल सृष्टि में प्राण।

मंगलमय हो गया सबेरा, मिला तिमिर से त्राण।।

जलनिधि की जड़ता का जैसे, किया सूर्य ने अंत।

जीव-जंतु जड़-जंगम जलधर, हुए सभी जीवंत।।

3-

सागर की गहराई में भी, जीवन है संगीन।

घड़ियालों के बीच वहाँ पर, प्राण बचाती मीन।।

सूरज के आ जाने…

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Added by Hariom Shrivastava on March 8, 2019 at 1:41pm — 6 Comments

-कह मुकरिंयाँ -

महाशिवरात्रि की शुभकामनाओं सहित कुछ

- कह मुकरिंयाँ-

---------------------

1-

उसे कहें सब औघड़दानी,

फिर भी मैं उसकी दीवानी,

बड़ा निराला उसका वेश,

क्या सखि साजन? नहीं महेश !!

2-

खाता है वह भाँग धतूरा,

फक्कड़नाथ लगे वह पूरा,

पर मेरा मन उस पर डोले,

क्या सखि साजन ? ना बम भोले !!

3-

लोग कहें वह पीता भंग,

मुझ पर चढ़ा उसी का रंग,

मेरा मन उस पर ही डोले,

क्या सखि साजन ? ना बम भोले !!

4-

भस्म रमाता वह …

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Added by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 2:00pm — 6 Comments

-कह मुकरिंयाँ -

1-

उसके कारण तन में प्राण।

वही करे मेरा कल्याण।

खान गुणों की जैसे यक्ष।

क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।

2-

वह तो मेरा जीवन दाता।

हर धड़कन से उससे नाता।

है वह ईश्वर के समकक्ष।

क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।

3-

उसके कारण ही दिल धड़के।

सर्वाधिक प्रिय लगता तड़के।

जीवन का वह रक्षति रक्ष।

क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।

4-

बचपन से वह मेरे संग।

सुंदर है उसका हर अंग।

मनभावन वह लगे अधेड़।

क्या सखि साजन ? ना सखि…

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Added by Hariom Shrivastava on February 25, 2019 at 10:46am — 6 Comments

- समान सवैया या सवाई छंद -

1-

हम विश्व शांन्ति के पोषक हैं, यह बात जगत में है जाहिर।

पर पाकिस्तान सदा से ही, आतंकवाद में है माहिर।।

पुलवामा में हमला करके, मारे हैं वीर बिना कारण।

इसलिए शांति अब और नहीं, हम भी कर पाऐंगे धारण।।

2-

हज करने की बातें करता, ये सौ-सौ चूहे भी खाकर।

अनजान बना बैठा रहता, जम्मू घाटी को दहलाकर।।

ये पाकिस्तान हमेशा से, भारत को है अति दुखदायक।

है अमन चैन के पथ में भी,अब बन बैठा ये खलनायक।।

3-

तीसरा नेत्र जब भारत ने, फड़काया भर ही है…

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Added by Hariom Shrivastava on February 22, 2019 at 5:17pm — 6 Comments

(कल पुलवामा हमले में शहीद 42 जवानों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए) - एक कुण्डलिया छंद-

मारे पाकिस्तान ने, अपने वीर जवान। जिसकी निंदा कर रहा, सारा हिंदुस्तान।। सारा हिंदुस्तान, हुआ है हतप्रभ भारी। धरी रह गयी आज, चौकसी सभी हमारी।। हुए जवान शहीद, बयालिस आज हमारे। जन-जन की यह माँग, पाँच सौ भारत मारे।। (मौलिक व अप्रकाशित) **हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on February 15, 2019 at 10:48am — 4 Comments

कुण्डलिया छंद -

1-

जिसको ईश्वर की नहीं, कोई भी परवाह।

वह चल पड़ता है यहाँ, पाप कर्म की राह।।

पाप कर्म की राह, मगर फिर ठोकर खाता।

करके सत्यानाश, सही पथ पर वह आता।।

लोकलाज या शर्म,आज आखिर है किसको।

करता वही कुकर्म,न ईश्वर का भय जिसको।।

2-

हो जाता जो आदमी, लालच में पथभ्रष्ट।

वही भोगता बाद में, जीवन में अति कष्ट।।

जीवन में अति कष्ट, मगर हो जाता अंधा।

झूठ कपट छल छिद्र,पाप का करता धंधा।।

सीधा सच्चा मार्ग, नहीं उसको फिर भाता।

लालच में पथभ्रष्ट, आदमी…

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Added by Hariom Shrivastava on February 1, 2019 at 7:08pm — 3 Comments

कुण्डलिया छंद -

1-

जन्मों तक होता नहीं, यात्राओं का अंत।

सभी सफर में हैं यहाँ,सुर नर संत महंत।।

सुर नर संत महंत, जन्म जिसने भी पाया।

पंचतत्व की एक, मिली सबको ही काया।।

मन में ईर्ष्या द्वेष, लिए अवसर जो खोता।

यात्रा में वह जीव, अस्तु जन्मों तक होता।।

2-

यात्रा का वर्णन करूँ, या फिर लिखूँ पड़ाव।

लिख दूँ सभी उतार भी, या फिर सिर्फ चढ़ाव।।

या फिर सिर्फ चढ़ाव, लिखूँगा विवरण पूरे।

कार्य हुए जो पूर्ण, और जो रहे अधूरे।।

हानि-लाभ सुख-दुक्ख, बराबर सबकी…

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Added by Hariom Shrivastava on January 25, 2019 at 12:00pm — 1 Comment

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर - एक कुण्डलिया छंद -

बेटी से परिवार है, बेटी से संसार।
बेटी है माता-बहिन, बेटी ही है प्यार।।
बेटी ही है प्यार, यही लछमी कहलाती।
वहीं बनाती स्वर्ग,जहाँ ये जिस घर जाती।।
सदा निभाती फर्ज, न होने देती हेटी।
पीहर सँग ससुराल, सदा महकाती बेटी।।
(मौलिक व आप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on January 24, 2019 at 8:11pm — 2 Comments

- कुण्डलिया छंद -

हो जाए कोई स्वजन, अगर  अचानक दूर।

तब निश्चित यह मानिए, है कुछ बात जरूर।।

है कुछ बात जरूर, वरन  ऐसा क्यों होता।

जो बनता अनजान, वही अपनों को खोता।।

सिर्फ जरा सी बात, चोट दिल को  पहुँचाए।

मीठे   हों यदि  बोल, गैर अपना हो…

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Added by Hariom Shrivastava on April 16, 2018 at 5:00pm — 8 Comments

कुण्डलिया छंद -

कैसी खिचड़ी पक रही, कैसा है ये खेल।
घी खिचड़ी किसको मिले, किसको खिचड़ी तेल।।
किसको खिचड़ी तेल, कौन खायेगा रूखी।
जनता जो है आम, रहेगी फिर भी भूखी।।
खिचड़ी की औकात, कभी भी थी क्या ऐसी।
अब यह चर्चा आम, पकेगी खिचड़ी कैसी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on November 4, 2017 at 12:21pm — 6 Comments

सार छंद -

गांधी के सपनों का भारत, कौन बनाए पूरा।

देखा था जो राष्ट्रपिता ने, सपना रहा अधूरा।।

जात-पाँत का भेद मिटेगा,अमन चैन आएगा।

श्रमजीवी घर में दो रोटी, सुबह शाम खाएगा।।1।।



सब हाथों को काम मिलेगा, हर घर में उजियारा।

कृषक और मजदूर कभी भी, फिरे न मारा-मारा।।

हस्तशिल्प लघु उद्योगों को, मूल्य मिलेगा पूरा।

चढ़े न कर्जा कभी कृषक पर, खाये भाँग धतूरा।।2।।



धर्म पंथ में बाँटा किसने, क्यों तकरार मचाई।

वितरण भी असमान हो रहा, बढ़ती जाती खाई।।

जैसे यहाँ… Continue

Added by Hariom Shrivastava on November 3, 2017 at 3:23pm — 10 Comments

सरसी छंद -

1-

जब से जीवन में आया है, साथी तेरा प्यार।

तब से शीतल और सुगंधित,चलने लगी बयार।।

उठने लगा ज्वार नस-नस में, आभासित मधुमास।

प्रिय मैं तो धनवान हो गया, तुम हो मेरे पास।।

2-

आँखों ही आँखों में अलिखित, जब हो गया करार।

ख्वाब हकीकत होते देखा, मैंने पहली बार।।

पंख लगे मेरी खुशियों को, रहा न पारावार।

आसमान में उड़ा ले गया, साथी तेरा प्यार।।

3-

जीवन की अनजान डगर पर, कदम बढ़ाए साथ।

हम दोंनों ने थाम लिथा था, इक दूजे का हाथ।।

कभी-कभी संघर्षों… Continue

Added by Hariom Shrivastava on September 22, 2017 at 7:05pm — 4 Comments

दोहे - (गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष में)

आई है गुरु पूर्णिमा, इसका लें संज्ञान।

गुरु हैं सागर ज्ञान के, जान सके तो जान।।1।।



कोई कितना भी रहे, अद्भुत प्रतिभावान।

गुरु ही उसे निखारते, जान सके तो जान।।2।।



मठाधीश जो बन गए, बाँट रहे हैं ज्ञान।

उनके असली रूप को, जान सके तो जान।।3।।



गुरु की महिमा जानिए, गुरु बिन मिले न ज्ञान।

गुरु में प्रभु का रूप है, जान सके तो जान।।4।।



गुरु चाहें तो डाल दें, मुर्दे में भी जान।

क्षमताएं उनकीं अनत, जान सके तो जान।।5।।

(मौलिक व… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 9, 2017 at 6:34pm — 5 Comments

दुमदार दोहे --

1-

कौन सुखी संसार में, जिसे न हो व्यवधान।

होती बुद्धि विवेक से, हर मुश्किल आसान।।

निरापद किसको देखा।।

2-

विपदा हो जब सामने, मुश्किल में हो जान।

ऐसे में हिम्मत रखें, सँग में प्रभु का ध्यान।।

आपदा टल जाएगी।।

3-

मुश्किल का मिलता नहीं, जब कोई भी तोड़।

अंदर ही अंदर वही, लेती रक्त निचोड़।।

आदमी घुटता रहता।।

4-

होती मुश्किल वक्त में, रिश्तों की पहचान।

सब दिन होते हैं नहीं, हरदम एक समान।।

परख सबकी हो जाती।।

5-

चुप रहकर… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 8, 2017 at 11:46pm — 7 Comments

कुण्डलिया छंद - (जी एस टी पर)

1-

आया है जी एस टी, ऐसा एक विधान।

सुगम रहेगा टैक्स यह, मिटे सभी व्यवधान।।

मिटे सभी व्यवधान, प्रणाली सरल रहेगी।

फैलेगा व्यापार, चैन की गंग बहेगी।।

कर की दरें समान, हटा जाँचों का साया।

भारत भर में आज, एक ऐसा कर आया।।

2-

सारी जनता खुश हुई, जागी आधी रात।

लगता है जी एस टी, बदलेगा हालात।।

बदलेगा हालात, यही कहकर भरमाया।

ऐसे खुश हैं लोग, लगा जैसे कुछ पाया।।

बना दिया माहौल, प्रचारित करके भारी।

देना होगा टैक्स, मगर खुश जनता… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 2, 2017 at 12:30am — 5 Comments

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