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Rahul Dangi Panchal's Blog (41)

ग़ज़ल- काश अपना भी घौंसला होता।

२१२२ १२१२ २२



काश अपना भी' घौंसला होता।

मैं किसी घर का' लाडला होता।



माँ पिता जी की' गोद में मैं भी।

खेलता कूदता पला होता।



वासना को कहें मुहब्बत सब।

अब नहीं इश्क बावला होता।



शक्ल से तो बडा भला है वो।

काश दिल से जरा भला होता।



उम्र तन्हाँ न यूँ गुजरती गर।

इक कदम का भी' हौसला होता।



मैं न कहता कभी खुदा से दोस्त।

आज इंसाफ अगर चला होता।



शुक्र है वो यहाँ नहीं वरना।

जलजला और जलजला… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 26, 2015 at 9:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल- कर्म की योग्यता नहीं देतें।

२१२२ १२१२ २२

आजकल सभ्यता नहीं देतें।

बाप भी शिष्टता नहीं देतें।



पेड,पौधें,नदी,जलाशय अब।

स्वर्ग का रास्ता नहीं देतें।



चार पन्नें किताब के मित्रों।

कर्म की योग्यता नहीं देतें।



क्या करूं इस समाज में जी कर।

लोग गर साम्यता नहीं देतें।



तब तलक चुप नहीं रहेंगे हम।

जब तलक सच जता नहीं देतें।



खोल बैठें दुकान अध्यापक।

दाम बिन शिष्यता नहीं देतें।



बात क्या है?जहान को रब जो।

आप अपना पता नहीं… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 25, 2015 at 4:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल- हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।

बडी जालिम है' पलकों पर मे'री बादल बनाती है।



निगाहे गर्म वो उसकी मसीहा भी है' कातिल भी।

कभी मरहम लगाती है कभी घायल बनाती है।



महकता है चमन सारा तुम्हारे तन की' खुशबू से।

तुम्हारी ही नकल से शाखे गुल कोंपल बनाती है।



जहाँ सहरा बनाया है खुदा तेरे फरिश्तों ने।

वहाँ उस शख़्स की मौजूदगी जंगल बनाती है।



हवा तेरा बदन छूकर अगर छू ले किसी को फिर।

ते'रा आशिक बनाती है ते'रा कायल… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 7:48am — 18 Comments

गीत- इश्क का जला/एक कोशिश

मुखडा -१६
अन्तरा- १४
इश्क का जला,इश्क का जला।
इश्क का जला, इश्क का जला ।

दिल से मेरे निकले धुआँ
कैसे करूं ये गम बयाँ
ये बेबसी की दास्ताँ
है कौन समझेगा यहाँ
जो अब तलक दिल में रहा
वो भी न मुझको पढ़ सका
इश्क का जला------

इक बार भी सोचा नहीं
परखा नहीं समझा नहीं
दिल से कभी देखा नहीं
तूने मुझे जाना नहीं
मजबुरीयों ने रोक रक्खा
है मेरा हर रास्ता
इश्क का जला-------

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Rahul Dangi Panchal on July 18, 2015 at 11:58pm — 4 Comments

ग़ज़ल-नजर मिल रही थी तो दिल डर गया।

१२२ १२२ १२२ १२



नजर मिल रही थी तो दिल डर गया।

नजर से बचे तो जिगर मर गया।।



अभी पाँव रक्खा ही था इश्क में।

बडी तेज सर पर से पत्थर गया।।



कदम कोई अपना मेरी कब्र पर।

जहाँ पर जिगर था वहाँ धर गया।।



नजर थी,बला थी, वो क्या थी मगर।

उसे सोचते सोचते मर गया ।।



जमाने ने सर पर बिठाया उसे।

जरा सी उछल कूद जो कर गया।।



फना हो गयी है शराफत या रब।

या है ही नहीं तू या फिर मर गया।।



हँसाने की कोशिश करों उसको… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 8, 2015 at 10:44pm — 11 Comments

गजल- दिलबर का दीदार जिन्दगी

२२ २२ २२ २२



कहीं पे' ठण्डी' बयार जिन्दगी ।

कहीं लगे अंगार जिन्दगी ।।



पतझड और बहार जिन्दगी ।

सुख दुख का व्यापार जिन्दगी ।।



जाने कितने रंग से' खेलें।

होली का त्यौहार जिन्दगी ।।



नानी माँ की गोद में' है तो।

इमली,आम,अचार जिन्दगी ।।



इश्क के' मारों से जो पूछा।

दिलबर का दीदार जिन्दगी ।।



उनके होंटों के साहिल पर।

फूलों सी रसदार जिन्दगी ।।



कौन समझ पाया है इसको।

उलझन का संसार जिन्दगी ।।…

Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on July 1, 2015 at 2:00pm — 18 Comments

गजल--मेरी किस्मत के पन्नों में कोई हरकत नहीं दिखती।

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

बहुत दिन हो गये अब भी कहीं राहत नहीं दिखती।

मे'री किस्मत के' पन्नों में को'ई हरकत नहीं दिखती।।

***

सभी मन्दिर में' मस्जिद,चर्च में दिल ले के' भटका हूँ।

किसी मजहब में' दुनिया के मुझे कुदरत नहीं दिखती।।

***

ते'री फुरकत के' तीरों ने किया हैं आश तक घायल।

मुझे अफसोस है तुझको मे'री हालत नहीं दिखती।।

***

सनम इक जख़्म रो रो कर बडी जिद करता' है मुझसे।

कहाँ से ला के' दूँ तुझको इसे गुरबत नहीं दिखती।।

***

हमारी जे़ब में… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on June 26, 2015 at 9:30pm — 18 Comments

गजल---दिल है जो तेरा आशिक उसकी खता नहीं है ।।

२२१ २१२२ २२१ २१२२



हूँ जो नशे में धुत मैं मय का नशा नहीं है।

यह इब्तिदा-ए-उल्फत है इन्तिहा नहीं है ।।



किस ओर जाके खोले बोतल शराब की ये।

उनकी गली से अब तक हम आशना नहीं है ।।



ऐसा करूं मैं क्या जो तू खुद गले लगा ले।

तू ही बता दे मुझको, मुझको पता नहीं है ।।



है मय ये तेरी आँखें सावन है तेरी जुल्फे।

दिल है जो तेरा आशिक उसकी खता नहीं है ।।



हर रोज सोचता हूँ कह दूँ मैं आज उनसे।

अब प्यार तो बहुत है पर हौसला नहीं है… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 11:00pm — 18 Comments

गजल-सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।

221 2122 221 2122



नाकामयाबी मेरी तकदीर बन गयी है।

अब जिन्दगी ये गम की तस्वीर बन गयी है।।



मरहम समय का भी कुछ आराम दे न पाया।

ये चोट अब जिगर की जागीर बन गयी है।।



उलझी पडी है उल्फत की बेडियों में साँसें।

यादों से मिल के धडकन भी तीर बन गयी है।।



सुनती है गर कहीं तू इक बार आ के मिल ले।

रो रो के मेरी हालत गम्भीर बन गयी है।।



हँसता हुँ तब भी चहरा छोडें नहीं उदासी।

सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।।



आँखों ने… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on June 16, 2015 at 7:30pm — 26 Comments

गजल- आन बान शान पर तो मर मिटो या मार दों!

२१२१ २१२१ २१२१ २१२



भारती की मूरती को आज फिर संवार दों!

आर्यवर्त की रिदा को दूध सा निखार दों!!



जिन्दगी ये देश की है देश पर निसार दों!

जितनी बार भी मिले कि उतनी बार वार दों!!



गाडते चलो अमर तिरंगे को सितारो तक!

मानचित्र हिन्द का ब्रह्माण्ड पे उभार दों!!



जो सिमट गये वतन की राह में वे कह गये!

आन बान शान पर तो मर मिटो या मार दों!!



लोग जो अभी तलक जगे नहीं जगा दो अब!

देश की गली गली में जाके तुम पुकार दों!!



पाश्च… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 6:26pm — 25 Comments

गजल-लोग अब आपका बोलते है मुझे!

212 212 212 212



आपके नाम से टोकते है मुझे!

लोग अब आपका बोलते है मुझे!!



रोज में इक नजर देखते भी नहीं!

रात में चाँद से पूछते है मुझे!!



जख्म के पेड को फिर हरा कर चले!

किस तराजू में वे तोलते है मुझे!!



मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!

आज तक भी कई कोसते है मुझे!!



नाम दिल से मिटा तो दिया पर सनम!

दर्द बेघर हुए घूरते है मुझे!!



लगता है सांस दो चार ही रह गयी!!

जिस नजर से सभी देखते है मुझे!!



पूछ 'राहुल'… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 9:10pm — 20 Comments

गजल- जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन

212 212 212 212

एक है जान हम टुकडे दो जानेमन!
कैसे समझाए हम आपको जानेमन!!

हो नहीं सकते तुम दूर मुझसे कभी!
जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन!!

तुम दुआ हो मेरी मेरे अरमान हो!
जिन्दगी बन्दगी तुम ही हो जानेमन!!

देख लूं जो तुझे साँस आ जाती है!
जाएँगे मर अगर तू न हो जानेमन!!

तुमको 'राहुल' पे अब भी यकीं गर नहीं!
चीर कर दिल मेरा देख लो जानेमन!!

मौलिक व अप्रकाशित!

Added by Rahul Dangi Panchal on January 16, 2015 at 10:26pm — 26 Comments

गजल- मुझे शायरी में पुकार दे!

११२ १२ ११२ १२



तु गजल में थोडा खुमार दे!

तु जरा सा और सँवार दे!!



तेरे लफ्ज तेरी जमीन है!

इन्हें आँसुओं से निखार दे!!



उसे भूल जा है जो बेवफा!

ये लिबास गम का उतार दे!!



यूं घुमा फिरा के न बात कर!

मुझे साफ साफ नकार दे!!



मैं बिगड गया मुझे डाँट माँ!

मेरी जिन्दगी को सुधार दे!!



या खुदा तु कह दे घटाओं से!

मेरे खेत को भी दुलार दे!!



कि मैं दफ्न हूँ मेरे शे'र में!

मुझे शायरी में पुकार… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on January 13, 2015 at 3:00pm — 44 Comments

गीत- जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है

२१२ २१२ २१२ २१२



जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है!

साल दर साल दिल का यही हाल है!!

मुझको तो इससे कुछ फर्क पडना नहीं!

ये गया साल है या नया साल है!!



स्याही किस्मत के उस पेज पर जा गिरी!

जिस पे तस्वीर थी मेरे दिलदार की!

या खुदा तुझसे ये क्या खता हो गयी!

मेरी किस्मत से वो अब जुदा हो गयी!

अब मुकद्दर मेरा दोस्त कंगाल है!

जिन्दगी ये मेरी गम का जंजाल है......



नाम ही है सुना मैनें देखी नहीं!

शक्ल से तो कभी क्या बला है खुशी!

है… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on January 6, 2015 at 10:30pm — 11 Comments

गजल - मेरा दिल है कि गम का कारखाना है!

१२२२ १२२२ १२२२

मेरा दिल है कि गम का कारखाना है!
जगह यह अब सनम का कारखाना है!!

वे आँखे जुल्फ़,पलकें, रंग,लब,भौंहे!
वो चहरा है कि बम का कारखाना है!!

नहीं है सच यहाँ कुछ भी जो दिखता है!
ये दुनिया बस वहम का कारखाना है!!

गई है माँ तु जिस दिन से खुदा के घर!
ये घर तब से सितम का कारखाना है!!

कि इंसां तो ख़ताओं का है इक पुतला!
खुदा 'राहुल' रहम का कारखाना है!!

मौलिक व अप्रकाशित!

Added by Rahul Dangi Panchal on January 3, 2015 at 11:00am — 21 Comments

गजल- वरना मेरा इबादत से रिश्ता नहीं!

212 212 212 212



मैं तो मरता हुँ पर प्यार मरता नहीं!

इश्क का भूत मन से निकलता नहीं!!



हाल क्या हो गया देख रो रो मेरा!

सबको दिखता है पर तुझको दिखता नहीं!!



किस गली किस शहर में कहाँ पे है तू!

दिल मेरा मुझसे अब ओर थमता नहीं!!



हो जो बस में मेरे तो मैं नफरत करूं!

क्या करूं आपसे प्यार घटता नहीं!!



लोग कहते है मौसम सुहाना है अब!

सबको लगता है पर मुझको लगता नहीं!!



साँस आती नहीं उसको देखें बिना!

उसको देखें बिना… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on January 1, 2015 at 9:56pm — 12 Comments

गजल - कि तब जाके सुदर्शन को पडा मुझको उठाना था!

1222 1222 1222 1222



मेरी कुछ भी न गलती थी मगर दुश्मन जमाना था!

जमाने को मुझे मुजरिम का यह चोला उढ़ाना था!!



मेरे हाथों में बन्दूकें कहाँ थी दोस्त मेरे तब!

मैं तो बच्चों का टीचर था मेरा मकसद पढ़ाना था!!



हजारों कोशिशे की बात मैनें टालने की पर!

कहाँ टलती? रकीबों को तो मेरा घर जलाना था!!



मेरा भी था कली सा एक नन्हा,फूल सा बेटा!

वही मेरा सहारा था वही मेरा खजाना था!!



उतर आये लिये हथियार घर में जब अधर्मी वें!

कि तब जाके… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on December 29, 2014 at 10:00am — 39 Comments

गजल- बिना तेरे किसकी इबादत करेंगे!

१२२ १२२ १२२ १२२

बहुत दुख दिये है कि नफरत करेंगे!
तेरी अब कभी हम न चाहत करेंगे!!

जरा सोच इतना लिया होता जालिम!
बिना तेरे किसकी इबादत करेंगे!!

समझ ही न पाये मुहब्बत मेरी तुम!
कि मर के भी तुमसे मुहब्बत करेंगे!!

वे बच्चें हैं उन पर न गुस्सा करो यूं!
वे नादां वही फिर शरारत करेंगे!!

तु जिसके लिए इतना पागल है 'राहुल'!
अदा प्यार की वो न कीमत करेंगे!!

मौलिक व अप्रकाशित!

Added by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 2:10pm — 22 Comments

गजल-ये नहीं शायरी के पन्नें है!

2122 1222 22

ये मेरी जिन्दगी के पन्ने हैं!
ये नहीं शायरी के पन्ने हैं!!

ये नशेमन है मेरी आहों के!
ये तेरी बेरुखी के पन्ने हैं!!

मुफलिसी बेबसी की ये चींखे!
तीरगी इस गली के पन्नें हैं!!
ंंंंंं
ये तो बच्चों की लाशे है या रब!
ये तेरी खामुशी के पन्ने हैं!!

ना समझ हो अभी क्या समझोगे!
मेरे कागज सभी के पन्ने हैं!!

देखनी हो जिसे दुनिया 'राहुल'!
मुझको पढ़ ले इसी के पन्ने हैं!!

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Rahul Dangi Panchal on December 20, 2014 at 7:30pm — 25 Comments

गजल- वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है

2212 122 1222

हर शेर में ये दरकार रखनी है!
वो बेवफा तो हर बार रखनी है!!

अशआर शेर अशआर रखनी है!
वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है!!

जब तक वो खुदखुशी कर न ले मुझको!
हर लफ़्ज एक तलवार रखनी है!!

बीमार हूँ तो हँस कर दिखाऊं क्यूं!
ये नज़्म भी तो बीमार रखनी है!!

तू मर अभी नहीं सकता ऐ'राहुल'!
के बात और दो चार रखनी है!!


मौलिक व अप्रकाशित!

Added by Rahul Dangi Panchal on December 11, 2014 at 10:00pm — 14 Comments

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