2122 1212 22 / 112
आज सोया है शहर घर कर के !
खूब रोया खुदा महर कर के !!
क्या बुरा हो गया सनम मुझ से
देखता कब है वो नज़र कर के !
ज़हरीला बन गया हरेक रिश्ता याँ
खत्म हो हर अजाब मर कर के !
हम हैं मारे उसी की बेरुखी के
जिसको देखा नज़र वो भर कर के !
कोई है बात जो लगी दिल को
मिलता कोई नहीं खबर कर के !
क्या करू मिल के ज़िन्दगी से मैं
खौलता खून है …
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 3, 2021 at 12:46am — 2 Comments
1212 1122 1212 22 / 112
तमाम उम्र सहेजी मगर वो बेकार है
अजीब बात है शाइर डगर वो बेकार है
सुहाने चाँद की रातों सफर वो बेकार है
लो अब कहूँ तो कहूँ क्या असर वो बेकार है
बिना किताब बिना बिम्ब काव्य की सर्जना
जो खोलता है मआनी नगर वो बेकार है
नयी - नयी है ये दुल्हन बहार सावनी अब
नया चलन है सो सहवास घर वो बेकार है
हमारे गुरू जी अभी सुन बहुत बड़ी जीत हैं
हवा चहक तो रही…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 27, 2021 at 8:30am — No Comments
221 2121 1221 212
रस्मो- रिवाज बन गयी पहचान हो गयी
वो दिलरुबा थी मेरी जो भगवान हो गयी
मक़तल बना है शहर वो रफ्तार ज़िन्दगी,
मुश्किल हुई है जीस्त कि श्मशान हो गयी
हर शख्स वो अकेला ही दुनिया में आजकल,
क्या वो करें जो कह सकें गुलदान हो गयी
सुन राजदाँ बहुत हुई बेज़ार ज़िन्दगी,
कासिद नहीं आया जबाँ कान हो गयी
जाहिल बने रईस वो हक़दार देश के,
अब हार-जीत उनकी खुदा शान हो…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 22, 2021 at 7:30am — 1 Comment
11212 11212 11212 11212
तुम्हें कह चुका हूँ, मैं दोस्तो मेरे साथ आज बहार है !
है महर खुदा की वो आसरा सो खिवैया ही तो कहार है !
थी नहीं कभी रज़ा जिसकी होड़ - उड़ान में कभी ज़िन्दगी,
कहूँ कैसै वो रहा साथी मेरा जहाँ, सदा बारहा वो तो हार है !
न तुम्हें कोई भी है फिक्र गाँव- गली का वो न लिहाज़ है,
न वो शर्म माँ कि न बाप की, न तुम्हें जड़ों से ही प्यार है !
न वो मानता है किसी भी सोच को जानता नहीं मर्म…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 12, 2021 at 10:05am — No Comments
2122 2122 2122 212
बह्रे रमल मुसम्मन महफूज़:
हिब्ज जिसको राजधानी क्या ज़रूरत धाम की !!
सारी दुनिया है उसी की कब रज़ा हुक्काम की !!
ज़िन्दगी तो दोस्त बस जिन्दादिली का नाम है,
मौज़िजा हो जायेगा यारा इबादत राम की !!
साथ जीते भारती हम मत करें नाहक मना,
अन्त भी होगा यहीं या रब मलानत जाम की !!
आइना टूटा हुआ है, यार देखोगे क्या तुम ?
इल्म की छाया नही है हर खिताबत नाम की !!
कब…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 8:53pm — No Comments
2122 2122 2122 212
बह्रे रमल मुसम्मन महफूज़:
हिब्ज जिसको राजधानी क्या ज़रूरत धाम की !!
सारी दुनिया है उसी की कब रज़ा हुक्काम की !!
ज़िन्दगी तो दोस्त बस जिन्दादिली का नाम है,
मौज़िजा हो जायेगा यारा इबादत राम की !!
साथ जीते भारती हम मत करें नाहक मना,
अन्त भी होगा यहीं या रब मलानत जाम की !!
आइना टूटा हुआ है, यार देखोगे क्या तुम ?
इल्म की छाया नही है हर खिताबत नाम की !!
कब…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 8:09pm — No Comments
212 212 212 212
जो चला वो नमाज़ी फँसा रह गया !
दूरियाँ घट गयीं फासला रह गया !!
ज़िन्दगी बंदगी हो सकी गर खुदा,
दूर था प्यार वो पास आ रह गया !!
ना रहा कोई अपना जहाँ दोस्त जाँ,
जीस्त होती रही दिल जला रह गया !
क्या हुआ गर तुम्हारा वो सर झुक गया,
झूठ का दम रहा बेमज़ा रह गया !!
साजिशें चाहे जितनी करे कोई याँ,
सर मरासिम का पर बारहा रह गया !
बख्श…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 4:08pm — No Comments
ग़जलः
2122 2122 2122 212
मुन्तज़िर थे हम मगर मिलना मयस्सर ना हुआ
वस्ल तो तय थी नसीबा पर हमारा ना हुआ
चाँद रातों में तड़पता वस्ल की खातिर कोई
वो मुहर लब पर हुई कब वो नज़ारा ना हुआ
चाँदी की दीवारें आड़े आईं आशिक प्यार के
मुफलिसों को प्यार का या रब सहारा ना हुआ
जो पहुँचना था हमें अफलाक की ऊँचाइयों,
रह गये बैठे जमीं कोई हमारा ना हुआ ।
टूटती साँसे रही मकतल बना अस्पताल अब,
ज़िन्दगी तेरा भरोसा…
Added by Chetan Prakash on June 2, 2021 at 11:30am — 4 Comments
" कूड़े मल इस दुकान को मैंने खरीद लिया है, अब से एक हफ़्ते में खाली कर देना"
" क्या.... क्या बकवास कर ती हो, मैं कई वर्ष पुराना किरायेदार हूँ, मेरी रोज़ी - रोटी चलती है, यहाँ से! बिल्कुल खाली नहीं करूँगा" ! कूड़े मल कस्बे का बड़ा किराना व्यापारी था! बूढ़े, कमज़ोर राम आसरे का मूल किरायेदार था जिसको उसने किराया देना बंद कर दिया था! हारकर राम आसरे ने दबंग, झगड़ालू औरत सुनहरी देवी को आधी कीमत अग्रिम लेकर पावर आफ अटार्नी कर दी थी!
कूड़े मल अब परेशान था! भागा-भागा अपने वकील साहब के…
ContinueAdded by Chetan Prakash on April 11, 2021 at 4:00am — 1 Comment
2122 1212 22/ 112
भारती धर्म अपना क़द करे हैं !
माँ की खायी कसम न मद करे हैं !
तीरगी को हटाया जाँ हमी ने,
रघुवंशी हम उजालों क़द करे है !
मोमबत्ती भी जिनसे जल न सकी,
सूरज होने का दावा ज़द करे हैं !
जाने क्या वो अँधेरों के हामी
वरिष्ठों के है अदु वो हद करे हैं !
सावन अंधे जुड़ाव हो कैसे ?
है रतौंधी उन्हें अहद करे…
ContinueAdded by Chetan Prakash on April 7, 2021 at 9:30am — No Comments
दूर तक फैला हुआ है, राज सम्यक शान्ति ।
हूर जीवन - धौंकनी है, गूँजता वन शान्ति ।।
नीर सूखा नालियों का, आँख ज्यौं पानी नही ।
लाज जैसे मर गयी हो, आजमा जीवन कहीं ।।
एक चुप पसरा हुआ है, पर्वतों से घाट तक ।
देखिय़े तट सखिविहीना, कृष्ण-राधा ठाठ तक ।।
ज़िन्दगी यदि मर रही है जग, मारता मन आज मद ।
आदमी रहता यहाँ खुश, मन प्रकृति वन मौज- मद ।।
गाँव की शालीनता मिल जायगी क्या शहर में ।
हैं खुशी छोटी मगर सुख,…
ContinueAdded by Chetan Prakash on March 22, 2021 at 12:00am — No Comments
उतरा है मधु मास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !
जन गण के तन मन सुरा घुली
गुनगुनी धूप की चोट लगी
कली खुल, वन प्रसफुटित हुई,
मुस्काय बेला चमेली है !
उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!
कमल खिले हैं सरोवरों मेंं
मौज करे हम नावों में
मगन चिड़िया झील के तन हैं
वर बसन्त, प्रकृति मुस्काई है !
उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!
बाण चलाया कामदेव ने
घायल चम्पा गुलमोहर…
Added by Chetan Prakash on March 5, 2021 at 1:30am — 3 Comments
चम्पई गंध बसे मन, स्वर्णिम हुआ प्रभात ।
कौन बसा प्राणों, प्रकृति, तन - मन के निर्वात ।।
धूप हुई मन फागुनी, रजनीगंधा रात ।
नद-नाले मचलते वन,गंगा तीर प्रपात।।
रजत रश्मियाँ हँसे नद, चाँद झील के गात ।
काँप जाय है चाँदनी, बरगद हृदय आत ।।
पोर- पोर टेसू हुआ, प्राणों बसे पलाश ।
गुलाबी रंग मन अहा, घर नीला आकाश ।।
रंग - बिरंगी छटा वन, सतरंगा आकाश ।
इन्द्रधनुष रच रहा, पत्ती फूल पलाश।।…
Added by Chetan Prakash on February 28, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
यह दुनिया है, या जंगल
आजकल पेशोपेश में हूँ,
इन्सान और जानवर का
भेद मिटता जा रहा है
मौका पाते ही इन्सान
हैवान बन जाता है
अकेले किसी अबला को
कही बेसहारा पाकर
कुत्तों सा टूट पड़ता है,
नोच डालता है अस्मत
किसी बेवा की, किसी कुंवारी की
परम्परा की बेड़िया काटकर शैतान
उजालों के अन्तर्ध्यान होने पर
बोतल से जिन्न निकलकर
विराट राक्षस होकर सड़क पर
आ जाता है,
मानवों का भक्षण करने
सड़क पर आ जाता…
Added by Chetan Prakash on February 12, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
राधे इस बार गाँव लौटा तो उसने देखा कि उसके दबंग पड़ौसी ने वाकई उसके दरवाजे पर अपना ताला जड़ दिया था ।
दर असल जयसिंह उसे कहता, " काम जब करते ही शहर में हो तो मकान हमें दे दो" कभी कहता, " मान जाओ, नहीं तो तुम्हारे जाते ही अपना ताला डाल दूंगा ।"
राधे को एकाएक कुछ सूझा, बच्चों और पत्नि को वहीं खड़े रहने को कहा, खुद भागा-भागा अपने दोस्त करीमू के पास जा पहुँँचा और बोला, " भाई करीमू, चल, चल जल्दी कर, बच्चे ठंडी रात मे घर से बाहर खड़े है, ताला खोल" ! चाबी मुझ से रास्ते मे खो गयी, इस…
Added by Chetan Prakash on February 5, 2021 at 5:00pm — 2 Comments
1212 1212 1212 1212
नज़र कहीं निशाना ताज़ हो रहा बवाल है
मदद नहीं किसान की गरीब घर सवाल है।
ज़मीं सदा इन्हीं की मौत है गरीब की यहाँ
वो मर रहा है भूख से जनाब याँ बवाल है।
कि आइये कभी गंगा तटों जमुन जहान में
वो ज़िन्दगी रहती कहाँ सनम कहाँ कवाल है।
लड़़ो मरो हक़ूक हित दिखाइये वो जख्म भी
जो माँगते थे मिल गया वो फिर कहाँ सवाल है ।
तुम्हारी ही बिरादरी तुम्हारे ही युवा जहाँ
जवान खौफ वो रहा…
Added by Chetan Prakash on February 4, 2021 at 6:30pm — 2 Comments
शेर की सवारी
और ज्यादा दिन
मौत है नजदीक तेरी
गिन रहा दिनमान है,
तोड़ देगा आन तेरी
यही उसका काम है
जिन्दगी देता अगर
मौत उसका फरमान है।
कहावते और मुहावरे
बुज़ुर्ग दे गये बावरे
सुनोगे उनको
गुनोगे सबको
जीवन सफल हो जाएगा
उद्धार होगा तुम्हारा
देश भी रह जाएगा
दोस्त,
कहानियाँ गर पढ़ो तो
तो पंचतंत्र की
जीवन अमृत हो जाएगा
तू अमर हो जाएगा
साथी,
परमार्थ भी हो जाएगा ।
धर्म हो या संस्कृति…
Added by Chetan Prakash on February 4, 2021 at 7:30am — 4 Comments
स्वार्थ रस्ता रोके बैठे है.....!
कई दिनों से सोन चिरैया
गुमसुम बैठी रहती है
देख रही चहुँ ओर कुहासा
भूखी घर बैठी रहती है
चौराहे पर बंद लगे हैं
स्वार्थ रस्ता रोके बैठे हैं !
कितने बच्चे कितने बूढ़े
कितनों के रोज़गार छिने हैं
लोग मर गए बिना दवा के
हार गए जीवन से हैं...
जंतर मंतर रोज रचे हैं
हँसते हँसते रो दे ते हैं !
तोड़ रहे कानून …
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 2, 2021 at 2:02pm — 5 Comments
221 1221 1221 122
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आग़ाज मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इजाज़त है हलाहल भी नहीं है।
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है ज़माने
इन्सान बनेगा कोई अटकल भी नहीं है ।
आसान नहीं होता जहाँ रोटी जुटाना,
तू मौज मनाता दुखी बेकल भी नहीं है |
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीँ पड़ता
मुँहजोर है औलाद उसे कल भी नहीं है |
है एक मुसीबत वो निभाने हैं मरासिम,
अब वक्त बचा क़म है, वो दल-बल भी नहीं…
Added by Chetan Prakash on December 5, 2020 at 7:30am — 2 Comments
2 2 1 1 2 2 1 1 2 2 1 1 2 2
आग़ाज़ मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इज़ाज़त है तो हलचल भी नही हैं
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है, ज़माने
ऐसी तो खुदाया यहाँ हलचल भी नहीं है
आसान नहीं होता जहाँ रोटी का कमाना
इस ओर तो तेरी कहीं हलचल भी नहीं है
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीं आता
औलाद ने उस ओर की हलचल भी नहीं है
है एक मुसीबत वो निभाने हैं, मरासिम
सुन वक़्त बचा क़म है वो हलचल भी…
Added by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:00pm — 5 Comments
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