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Nilesh Shevgaonkar's Blog (188)

ग़ज़ल नूर की - जिसका मैं मुन्तज़िर रहा पल में वो पल गुज़र गया,

२११२/ १२१२ // २११२/ १२१२ 

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जिसका मैं मुन्तज़िर रहा पल में वो पल गुज़र गया,

और वो लम्हा बीत कर अपनी ही मौत मर गया.

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मेरा सफ़र तवील है दूर हैं मंज़िलें मेरी

दुनिया फ़क़त सराय है रात हुई ठहर गया.

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कोई छुअन थी मलमली कोई महक थी संदली

ख़ुद में जो उस को पा लिया मुझ में जो मैं था मर गया.

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सारे तिलिस्म तोड़ कर अपनी अना को छोड़ कर

तेरे हवाले हो के मैं अपने ही पार उतर गया.   

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पीठ थी रौशनी की ओर साये को देखते रहे

“नूर” से जब नज़र…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2018 at 10:04pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की- दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा

२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२ 

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दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा

रह गई थीं कुछ जो बाकी तीलियाँ गिनता रहा.

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यादों के बिल से निकलती चींटियाँ गिनता रहा

था कोई दीवाना टूटी चूड़ियाँ गिनता रहा.

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मुझ से मिलता-जुलता लड़का आईने से झाँक-कर

मेरे चेहरे पर उभरती झुर्रियाँ गिनता रहा.

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होश मेरे गुम थे मैंने जब किया इज़हार-ए-इश्क़   

और वो नादान कच्ची इमलियाँ गिनता रहा.     

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एक दिन पूछा किसी ने कौन है तेरा यहाँ  

दिल हुआ रुसवा…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 4:46pm — 40 Comments

ग़ज़ल नूर की -जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे

अरकान: नामालूम 

लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह 

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जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे

दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.

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रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी

लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.   

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लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों

खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.

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तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम  …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 24, 2018 at 9:37pm — 24 Comments

नज़्म: आत्मबोध

सुझाव / इस्लाह आमंत्रित 

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जब क़लम उठाता हूँ यह सवाल उठता है

क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?

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क्या अगर कोई तितली फूल पर जो मंडराए

टूट कर कोई पत्ता शाख़ से बिछड़ जाए

तोड़ कर सभी बन्धन पार कर हदों को जब

इक नदी उफ़न जाए, दौडकर समुन्दर की

बाँहों में समा जाए तब ग़ज़ल कही जाए?

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इक  पुराने अल्बम से झाँक कर कोई चेहरा

तह के रक्खी यादों के ढेर को झंझोड़े और

इक किताब में बरसों से सहेजी पंखुड़ियाँ

यकबयक बिखर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:30am — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की -. माँ भारती की शान में,

२२१२/२२१२

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माँ भारती की शान में,

वो रोज़ नव परिधान में.

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क्यूँ राष्ट्रभक्ति खो गयी

समवेत गर्दभ गान में.

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सब हो गए कितने पतित

सोचो कथित उत्थान में.

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हर बैंक कर देंगे सफा

वो स्वच्छता अभियान में.

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इन्सानियत बाक़ी कहाँ 

अब है बची इन्सान में.  

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वो माफ़िनामे लिख गये

अपना यकीं बलिदान में.

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कैसे मसीहा देख लूँ

उस इक निरे नादान में.

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करते दहन है खूँ फ़िशां

कत्था लगा कर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:12pm — 14 Comments

ग़ज़ल नूर की- ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है

१२२२/१२२२/१२२

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ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है   

मेरा दावा है ये दुनिया ग़लत है.

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अगर मर कर मिले जन्नत तो फिर सुन

तेरा इक पल यहाँ जीना ग़लत है.

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हमारी बात का मतलब अलग था,

अगरचे आप ने समझा ग़लत है.

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मुझे है तज़्रबा तुम से ज़ियादा

मेरी मानों तो ये रस्ता ग़लत है.

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कहानी में तो मिल जाते हैं दोनों

हक़ीक़त में जुदा होना ग़लत है.

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कहे नंगे को नंगा एक बच्चा

कहे दरबार वह बच्चा ग़लत है.  

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ग़लत साबित मुझे…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 10:25pm — 16 Comments

ग़ज़ल-नूर की -ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,

२२१२ १२२ २२१२ १२ २

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ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,

इस पार बच गया तो उस पार मार देगा.

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आदत सी पड़ गयी है अब नफ़रतों की मुझ को

इतना न मुझ को चाहो ये प्यार मार देगा.

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कितना बचाऊँ लेकिन है तज्रबा... मुकद्दर,

इक रोज़ मेरे सर पर दीवार मार देगा.

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ये हक़ बयानी का इक औज़ार था मगर अब,

सच बोल दे कलम गर अख़बार मार देगा. 

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कोचिंग की आशिक़ी में वह मुँह चिढ़ाता शनिचर,

लगता था जैसे हम को इतवार मार देगा.

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बोली बढ़ा घटा…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:00pm — 15 Comments

ग़ज़ल नूर की- ज़ालिम तुझ से डरे नहीं हैं..

22/ 22/ 22/ 22

ज़ालिम तुझ से डरे नहीं हैं,

हारे हैं .....पर मरे नहीं हैं.

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और कुछ इक दिन ज़ुल्म चलेगा,

अभी पाप-घट भरे नहीं हैं. 

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खोट है उस की नीयत में कुछ

पूरे हम भी खरे नहीं हैं.

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कौन सी जन्नत कैसी क़यामात

ये सब मौत से परे नहीं हैं.

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कहते हैं वो अपने मन की

पर मन की भी करे नहीं हैं.

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गर्दभ होते ...घास तो चरते

साहिब.. घास भी चरे नहीं हैं.

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बोल रहे हैं अपने कलम से

“नूर जी” चुप्पी धरे…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 6, 2018 at 9:33pm — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की -खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

२१२२/२१२२/२१२

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खेल सारे, हर तमाशा छोड़ कर

सब को जाना है ये मेला छोड़ कर. 

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एक क़िस्सा-गो अचानक मर गया

अपने कुछ क़िरदार ज़िंदा छोड़ कर.

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था बहुत जिन को समुन्दर पर यकीं

अब वो पछताते हैं दरिया छोड़ कर.

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मोड़ कोई इक ग़लत मुडने के बाद

याँ तलक पहुँचे हैं रस्ता छोड कर.

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उस ख़ुदा का मत दिया कर वास्ता  

जा चुका जो कब से दुनिया छोड़ कर.

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बात मेरी मान कर तो देखिये

आप अपना ये रवैया छोड़ कर.

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चाँद…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2018 at 8:02pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की--ये अजब क़िस्सा रहा है ज़िन्दगी में

२१२२/ २१२२/२१२२ 

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ये अजब क़िस्सा रहा है ज़िन्दगी में

याद आता है मुझे वो बेख़ुदी में.

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काश उन के लब मेरे होंठों को चूमें

मूँद कर आँखें.. पडा हूँ चाँदनी में.

.

जब रिहाई की कोई सूरत नहीं है

लुत्फ़ लेना सीख ही लूँ बेबसी में.

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एक जुगनू जो लड़ा था तीरगी से    

याद कर लेना उसे भी रौशनी में.

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याद कर के अपने माज़ी के पलों को

बहते हैं आँखों से आँसू हर ख़ुशी में.

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आपका अहसान मुझ पर यह बहुत है

आप ने है दर्द घोला…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 15, 2018 at 9:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल नूर की-हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा

2122 /1122 /1122 /22 (112)

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हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा 

दिल पे टूटेंगे सितम..... दर्द से भर आएगा.

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एक दूजे को जो देखेंगे अगर हम यूँ ही 

किसी चेहरे का किसी पर तो असर आएगा.

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अपनी आँखों से हटा ले ये अना की पट्टी

तुझ को हर शख्स तेरा अक्स नज़र आएगा.

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सोच के गहरे समुन्दर में लगा ले गोते,   

उथले पानी में कहाँ हाथ गुहर आएगा?  

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रूह को अश्क-ए-नदामत से कभी धो कर देख,   

हुस्न हस्ती का तेरी और निखर आएगा.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2017 at 8:30am — 24 Comments

ख़त हमारे अगर जलाता है ; ग़ज़ल नूर की

२१२२/ १२१२/ २२ (११२)

ख़त हमारे अगर जलाता है

राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.

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हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,

कौन अपनों के काम आता है?

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सुन रखी होगी आग जंगल की

क्यूँ शरर को हवा दिखाता है.

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शम्स मुझ सा शराबी है शायद 

शाम ढलते ही डूब जाता है.

.

ज़र्द चेहरा है बाल बिखरे हैं

इस तरह कौन दिल लगाता है.

.

देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा

ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.

.

इस पे चलता है रब्त का धंधा

कौन क्या…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2017 at 1:00pm — 34 Comments

ग़ज़ल नूर की - किसी साधू के गहरे ध्यान से हम

२१२२, १२१२, २२ (११२) +१ 

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किसी साधू के गहरे ध्यान से हम

बैठे रहते है इत्मिनान से हम.

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तुम हो इक टूटती हुई दीवार

एक ढहते हुए मकान से हम.

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गर ख़ुदा को वहाँ नहीं पाया,   

लौट आयेंगे आसमान से हम.   

.

बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें

ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.

.

बुतकदे में जलाने को दीपक

जाग जाते हैं इक अज़ान से हम.   

.

एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत 

साथ में थे बड़े जवान से हम. 

.

वस्ल का पल, ये…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2017 at 8:18am — 21 Comments

ग़ज़ल- हिंदी तुकांत के साथ एक प्रयोग (..अण ,, क़ाफ़िये पर संभवत: पहली ग़ज़ल है इस मंच पर)

२२/२२/२२/२२/



कर्म अगर साधारण होगा

कैसे नर...नारायण होगा.

.

सच्चाई की राह चुनी है

पग पग दोषारोपण होगा.

.

जिस के भीतर विष का घट है  

उस पर छद्म-आवरण होगा.

.

कठिनाई भी बहुत ढीठ है  

इस से जीवन भर रण होगा.

.

बस्ती बाद में सुलगाएँगे  

पहले प्रेम पे भाषण होगा.   

.

मन में दृढ़ विश्वास न हो फिर  

कैसे कष्ट निवारण होगा.

.

दसों दिशाओं में शासन है

शासक .. शायद रावण होगा.

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उजड़ेगा…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 3:52pm — 29 Comments

ग़ज़ल नूर की-तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी

२२१२, १२२; २२१२, १२२ (अरकान का क्रम भिन्न भी हो सकता है)

.

तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी

तृष्णाओं से भरे इक मरुथल में रात काटी.

.

जब रौशनी बढ़ा कर चन्दा ने उस को छेड़ा

शरमा के चाँदनी ने बादल में रात काटी. 

. `    

चुगली न कर दे बैरन थी जान कश्मकश में

बाहों में थे पिया और पायल में रात काटी.

.

साजन का नाम जपते अधरों का थरथराना,     

बिरहन के मुख पे फैले काजल में रात काटी.

.

हर कूक ने उठाई है हूक मेरे दिल में …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 1:27pm — 19 Comments

ग़ज़ल नूर की- सीने से चिमटा कर रोये,

२२, २२, २२, २२ 

.

सीने से चिमटा कर रोये,

ख़ुद को गले लगा कर रोये.

.

आईना जिस को दिखलाया,  

उस को रोता पा कर रोये.

.

इक बस्ते की चोर जेब में,

ख़त तेरा दफ़ना कर रोये.

.

इक मुद्दत से ज़ह’न है ख़ाली,

हर मुश्किल सुलझा कर रोये.



तेरी दुनिया, अजब खिलौना,

खो कर रोये, पा कर रोये. 

.

सीखे कब आदाब-ए-इबादत,

बस,,,, दामन फैला कर रोये.

.

हम असीर हैं अपनी अना के,

लेकिन मौका पा कर रोये.

.

सूरज…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2017 at 9:00pm — 28 Comments

ग़ज़ल नूर की-मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर

२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२ (अरकान सही क्रम में हैं या नहीं ये मुझे नहीं पता)



मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर

रुसवाई यानी हो भी तो रुसवा किए बग़ैर. 

.

रुख्सत किया है ज़ह’न से यादें लपेट कर, 

तन्हा किया है आप ने तन्हा किए बग़ैर.

.

झुकिए अना को छोड़ के गर इल्म चाहिए,

मिलता नहीं सवाब भी सजदा किए बग़ैर.

.

जिस दर पे पूरी होतीं मुरादें तमाम-तर  

हम वाँ से लौट आये तमन्ना किए बग़ैर.

.

मुझ को न हो गुरूर मेरे नूर का कभी  

रौशन…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 26, 2017 at 11:30am — 27 Comments

ग़ज़ल नूर की -जैसे धुल कर आईना फ़िर चमकीला हो जाता है,

22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 2 

.

जैसे धुल कर आईना फ़िर चमकीला हो जाता है,

रो लेता हूँ, रो लेने से मन हल्का हो जाता है.

.

मुश्किल से इक सोच बराबर की दूरी है दोनों में,

लेकिन ख़ुद से मिले हुए को इक अरसा हो जाता है.

.

फोकस पास का हो तो मंज़र दूर का साफ़ नहीं रहता,

मंजिल दुनिया रहती है तो रब धुँधला हो जाता है.

.

मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे में कोई काम नहीं मेरा

अना कुचल लेता हूँ अपनी तो सजदा हो जाता…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2017 at 2:30pm — 55 Comments

ग़ज़ल नूर की -दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है

२१२२,१२१२,२२ (११२)

.

दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है

तेरी यादों को पाल रक्खा है.

.

रोज़ मरता हूँ..और मरता हूँ 

फिर भी ख़ुद को सँभाल रक्खा है. 

.

यूँ तो अंजाम जानता हूँ मगर

एक सिक्का उछाल रक्खा है.

.

मैं तेरी शोख़ियाँ पकड़ लूँगा

मैंने आँखों में जाल रक्खा है.

.

तेरे मिलने तलक जुदाई का

फ़ैसला मैंने टाल रक्खा है. 

.

ख़ूब पीता हूँ..छक के पीता हूँ

ख़ुद का कितना ख़याल रक्खा है.

.

और सारा कुसूर अँधेरे का…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 1, 2017 at 11:36am — 30 Comments

ग़ज़ल नूर की - हैरान क्या करेगा कोई मोजज़ा मुझे

२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२



हैरान क्या करेगा कोई मोजज़ा मुझे,

दुनिया का हर तमाशा लगे ख़्वाब सा मुझे.

.

हालाँकि ख़ुशबू इल्म-ओ-अदब की नहीं हूँ मैं,

लेकिन बिख़रने का है बहुत तज़रिबा मुझे.

.

इक रोज़ मैं ही तेरे किसी काम आऊँगा,

गरचे तू मानता ही नहीं काम का मुझे.

.

तेरे कहे पे चल पड़ा हूँ आँखें मूँदकर

ठोकर लगे तो मौला मेरे थामना मुझे.

.

ये कौन मेरे हिज्र को करता है और तवील,

जीने की फिर ये कौन दुआ दे गया…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on August 2, 2017 at 9:37am — 19 Comments

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