1)
मन उदास है
पता नहीं, क्यों..
झूठे !
पता नहींऽऽ, क्योंऽऽऽ..?
2)
कितना अच्छा है न, ये पेपरवेट !
कुर्सी पर कोई आये, बैठे, जाये…
Added by Saurabh Pandey on February 3, 2014 at 5:30pm — 12 Comments
मन के सुख-दुख, पीर भी, कैसे पायें भाव
टिप-टिप अक्षर आज के, टेक्स्ट हुए बर्ताव
चिट्ठी से तब भाव मन, होता था अभिव्यक्त
दिल के आँसू वाक्य थे, शब्द-शब्द थे रक्त
वह भी अद्भुत दौर था, यह भी अद्भुत दौर
’अब’ कार्डों से भाव सब, ’तब’ अमराई…
Added by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 4:30pm — 32 Comments
पीपल की छाँव में खीर खाये एक अरसा हो गया है
मन फिर से चंचल है
तुम आओगी न, सुजाता !
उसके होने न होने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ना था,
ऐसा तो नहीं कहता
लेकिन क्या वो
कोई आम, अशोक, महुआ या जामुन नहीं हो सकता…
Added by Saurabh Pandey on January 27, 2014 at 8:00pm — 31 Comments
बिस्तर-करवट-नींद तक
रिस आया बाज़ार
हर कश से छल्ले लिए
बातें हुई बवण्डरी
मुदी-मुदी सी आँख में
उम्मीदें कैलेण्डरी
गलबहियों के ढंग पर
करता कौन विचार..…
Added by Saurabh Pandey on January 18, 2014 at 3:30am — 26 Comments
'मैं-तुम’ के शुभ योग से, 'हम’ का आविर्भाव
यही व्यष्टि विस्तार है, यही व्यष्टि अनुभाव
यही व्यष्टि अनुभाव, ’अपर-पर’ का संचेतक
’अस्मि ब्रह्म’ उद्घोष, ’अहं’ का धुर उत्प्रेरक
’ध्यान-धारणा’ योग, सतत…
Added by Saurabh Pandey on January 7, 2014 at 1:00am — 24 Comments
दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..
साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है
क्या हुआ साथ चलें या न चलें…
Added by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:00am — 22 Comments
प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार
सामासिक दृढ़ भाव ले, आह्लादित संसार
सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ
मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ
शाश्वत मनस स्वभाव…
Added by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 4:20pm — 42 Comments
Added by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 11:30pm — 58 Comments
मिसरों का वज़न - २१२२ १२१२ ११२/२२
रौशनी का भला बखान भी क्या !
दीप का लीजिये बयान भी, क्या.. ?!
वो बड़े लोग हैं, ज़रा तो समझ-- …
Added by Saurabh Pandey on December 16, 2013 at 11:00am — 54 Comments
1)
आपस के संवाद में, कितने ही मंतव्य !
कुछ तो हैं संयत-सहज, अक्सर हैं वायव्य
अक्सर हैं वायव्य, शब्द से चोट करारी
वैचारिक …
Added by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 2:00am — 55 Comments
यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय ईशावस्योपनिषद के रूप में प्रसिद्ध है जिसके पन्द्रहवें श्लोक के माध्यम से सूर्य की महत्ता को प्रतिस्थापित किया गया है.
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥
हिरण्मयेन पात्रेण यानि परम…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on November 7, 2013 at 12:00am — 48 Comments
सामने
द्वार के
तुम रंगोली भरो
मैं उजाले भरूँ
दीप ओड़े हुए.. .
क्या हुआ
शाम से
आज बिजली नहीं
दोपहर से लगे टैप…
Added by Saurabh Pandey on October 27, 2013 at 1:00am — 30 Comments
बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत
तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से…
Added by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 2:00am — 43 Comments
तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं उन्मादी मूढ़वत, रहा ढूँढता संग
सहज हुआ अद्वैत पल, लहर पाट आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध
होंठ पुलक जब छू रहे, रतनारे …
Added by Saurabh Pandey on June 22, 2013 at 2:00am — 51 Comments
(छंद - मनहरण घनाक्षरी)
गोमुखी प्रवाह जानिये पवित्र संसृता कि भारतीय धर्म-कर्म वारती बही सदा
दत्त-चित्त निष्ठ धार सत्य-शुद्ध वाहिनी कुकर्म तार पीढ़ियाँ उबारती रही सदा
पाप नाशिनी सदैव पाप तारती रही उछिष्ट औ’ अभक्ष्य किन्तु धारती गही सदा …
Added by Saurabh Pandey on June 8, 2013 at 8:30pm — 33 Comments
ये साँझ सपाट सही
ज्यादा अपनी है
तुम जैसी नहीं
इसने तो फिर भी छुआ है.. .
भावहीन पड़े जल को तरंगित किया है..
बार-बार जिन्दा रखा है
सिन्दूरी आभा के गर्वीले मान को…
Added by Saurabh Pandey on April 22, 2013 at 12:00am — 42 Comments
ओबीओ परिवार सम, शारद के सब भक्त
’सीख-सिखाना’-अर्चना, भाव गहन हों व्यक्त
भाव गहन हों व्यक्त, आज का दिन पावन है
नदिया धारे धार, जिये नित परिवर्तन है…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 10:30am — 33 Comments
सुधीजनो,
तोटकाचार्य आदिशंकर के प्रथम चार शिष्यों में से थे. ’आचार्यदेवोभव’ सूत्र के प्रति अगाध भक्ति के माध्यम से समस्त ज्ञान प्राप्त कर आप आदिशंकर के अत्यंत प्रिय हो गये. आगे, आदिशंकर ने बद्रीनाथधाम की स्थापना कर आपको वहीं नियुक्त किया था.
तोटकाचार्य विरचित तोटकाष्टकम् --इसे श्रीशंकरदेशिकाष्टकम् भी कहते हैं-- दुर्मिल वृत्त में है.
तोटकाष्टकम् का आधुनिक वाद्यों के साथ समूह-गान प्रस्तुत…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 11:30am — 12 Comments
आज दि. 03/ 03/ 2013 को इलाहाबाद के प्रतिष्ठित हिन्दुस्तान अकादमी में फिराक़ गोरखपुरी की पुण्यतिथि के अवसर पर गुफ़्तग़ू के तत्त्वाधान में एक मुशायरा आयोजित हुआ. शायरों को फिराक़ साहब की एक ग़ज़ल का मिसरा --तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं-- तरह के तौर पर दिया गया था जिस पर ग़ज़ल कहनी थी. इस आयोजन में मेरी प्रस्तुति -
********
दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥
निग़ाहें भेड़ियों के दाँत सी लोहू*…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on March 3, 2013 at 8:00pm — 65 Comments
ई-पत्रिका ओपेन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम (प्रचलित संज्ञा ओबीओ) अपने शैशवाकाल से ही जिस तरह से भाषायी चौधराहट तथा साहित्य के क्षेत्र में अति व्यापक दुर्गुण ’एकांगी मठाधीशी’ के विरुद्ध खड़ी हुई है, इस कारण संयत और संवेदनशील वरिष्ठ साहित्यकारों-साहित्यप्रेमियों, सजग व सतत रचनाकर्मियों तथा समुचित विस्तार के शुभाकांक्षी नव-हस्ताक्षरों को सहज ही आकर्षित करती रही है.
प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकरजी की निगरानी तथा…
Added by Saurabh Pandey on January 31, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
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