२२१/२१२१/२२१/२१२
*
फिरती स्वयम् से पूछती राधा कहाँ गये
भक्तों के दुख को भूल के कान्हा कहाँ गये/
*
होने लगा जगत से है नित नाश धर्म का
आने का फिर से भूल के वादा कहाँ गये/
*
गोकुल हो मथुरा द्वारका कन्सों का राज है
जन-जन से ऐसे तोड़ के नाता कहाँ गये/
*
रिश्ते जहाँ में छल के ही आवास अब बने
होता सभा में मान का सौदा कहाँ गये/
*
आओ मिटाने पीर को जन-जन पुकारता
मुरली छिपाये लोक के राजा कहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2022 at 9:34am — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बोलो न आप हो गयी शमशान जिन्दगी
दुख से उबर के ओढ़ेगी मुस्कान जिन्दगी।१।
*
करते हो मुझ से प्रश्न तो उत्तर यही मेरा
होती है यार मौत का अवसान जिन्दगी।२।
*
कहते हैं सन्त मीन सी दानों को देखकर
माया के जाल फसती है नादान जिन्दगी।३।
*
आचल में मौत सासों को लेते न चूकती
भटकी कहीं जो भूल से यूँ ध्यान जिन्दगी।४।
*
जैसे विचार वैसी ही जग में बनाती है
सच है सभी की आज भी पहचान जिन्दगी।५।
*
करता रहा है प्यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2022 at 2:50pm — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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लगाओ लगाओ सदा कर लगाओ
बहुत तुच्छ है ये बड़ा कर लगाओ।।
*
अभी रोटियों को अठन्नी बची है
रहे जेब खाली नया कर लगाओ।।
*
कभी रक्त बहता दिखे घाव पर से
दवा छोड़ उस पर कटा कर लगाओ।।
*
गया बचपना तो उसे छोड़ना मत
युवापन बुढ़ापा ढला कर लगाओ।।
*
घटा धूप बारिश तजो चाँदनी मत
मिले मुफ्त क्यों ये हवा कर लगाओ।।
*
जो पीते पिलाते उन्हें मुफ्त बाँटो
न पीते हुओं पर नशा कर लगाओ।।
*
विलासी लगा है उदासी नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2022 at 7:28am — 4 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
समझ मत उसे यूँ बुरा और होगा
तपेगा दुखों में खरा और होगा।।
*
उजाला कभी जन्म लेगा वहाँ भी
अँधेरा कहाँ तक भला और होगा।।
*
रवैय्या है बदला यहाँ चाँद ने अब
रहेगा कहीं पर पता और होगा।।
*
लहू में है उस के वही साहूकारी
कहा और होगा लिखा और होगा।।
*
करो जुर्म जमकर ये अन्धेर नगरी
सजा को तुम्हारी गला और होगा।।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 18, 2022 at 6:40am — 6 Comments
दोहे
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मुख सा सम्मुख और के, रखिए शब्द सँवार
सुन्दर शब्दों के बिना, कहते लोग गँवार।१।
*
युद्ध शब्द से जन्मते, और शब्द से शान्ति
महिमा अद्भुत शब्द की, जिससे होती क्रांति।२।
*
कोई शब्दों में भरे, अद्भुत सहज मिठास I
कोई रीता रख उन्हें, देता अनबुझ प्यास।३।
*
कोई सज्जन कह गया, बात बड़ी गम्भीर।
जीवन घायल मत करो, शब्दों को कर तीर।४।
*
कोई छाया दे सदा, कर शब्दों को पेड़।
कोई शब्दों से यहाँ , बखिया देत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2022 at 5:30am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ
ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।
*
कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा
इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।
*
कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में
ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।
*
नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का
बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।
*
कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी
यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 2:19pm — 3 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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जब कोई दीवानगी ही आप ने पाली नहीं
जान लो ये जिन्दगी भी जिन्दगी सोची नहीं।।
*
पात टूटे दूब सूखी ठूठ जैसे हैं विटप
शेष धरती का कहीं भी रंग अब धानी नहीं।।
*
भर रहे हैं सब हवा में आग जब देखो सनम
फूल होगा याद में बस गन्ध तो होगी नहीं।।
*
तैरती है प्यास आँखों में सभी के रक्त की
हो गये हैं लोग दानव पी रहे पानी नहीं।।
*
राजशाही साम्यवादी लोकशाही दौर सब
भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2022 at 7:22pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पानी नहीं नदी से जिन्हें रेत चाहिए
रचने को सेज अन्न का हर खेत चाहिए।२।
*
औषध नहीं पहाड़ से पत्थर खदान कर
कंक्रीट के नगर को वो समवेत चाहिए।२।
*
दो पल के सुख दे छीनले पूरी सदी को जो
सब को विकास नाम का वो प्रेत चाहिए।३।
*
छाया से पेड़ की नहीं लकड़ी से प्यार है
कुर्सी को जंगलों की सभी बेत चाहिए।४।
*
धरती को नोच चाँद को रौंदा उन्हें यहाँ
रीती नदी में नीर का संकेत चाहिए।५।
*
वैभव नगर का साथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2022 at 6:40am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
अब झूठ राजनीति में दस्तूर हो गया
जिस का हुआ विरोध वो मशहूर हो गया।१।
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जनता के हक में बोलते जो काम बोझ है
नेता के हक में काम वो मन्जूर हो गया।२।
*
कहते हो वोट शक्ति का पर्याय है अगर
क्यों लोक आज देश का मजबूर हो गया।३।
*
जो चाहे मोल दे के करा लेता काम है
कानून जैसे देश का मजदूर हो गया।४।
*
जनता न राजनीति की मन्जिल बनी कभी
उपयोग उस का राह सा भरपूर हो गया।५।
*
होता भला न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2022 at 3:30am — 2 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
*
सियासत को आता है तलवार पढ़ना
उसे भी सिखाओ तनिक प्यार पढ़ना।।
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किसी दिन सभी कुछ यहाँ फूक देगा
सिखाओ न अब तुम ये अंगार पढ़ना।।
*
वही झूठ हर दिन वही दुख भरा है
सुखद कब लगेगा ये अखबार पढ़ना।।
*
शिखर खोजते है बहुत लोग लेकिन
किसी को न भाता है आधार पढ़ना।।
*
कभी तो पढ़ेगा वो संसार घर हैं
जिसे आ गया घर को संसार पढ़ना।।
*
जमाने को अच्छा अगर कर न पाये
समझ लो हुआ सबका बेकार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2022 at 2:53am — 9 Comments
२१२२/२१२२/२१२
*
जो नदी की आस लेकर जी रहे हैं
एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं।१।
*
है बहुत धोखा सभी की साँस में यूँ
परकटे विश्वास लेकर जी रहे हैं।२।
*
जो पुरोधा हैं यहाँ स्वाधीनता के
साथ अनगिन दास लेकर जी रहे हैं।३।
*
भोग में डूबे स्वयम् उपदेश देकर
कौन ये सन्यास लेकर जी रहे हैं।४।
*
जिन्दगी उन को लुभा ले हर्ष देकर
जो मरण की आस लेकर जी रहे हैं।५।
*
एक दिन तो ईश को सुनना पड़ेगा
जीभ में अरदास लेकर जी रहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2022 at 10:50am — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
सीमित से दायरे में न पल भर उड़ान हो
उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।
*
दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के
राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।
*
केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए
इस को नहीं जरूरी बड़ा खानदान हो।३।
*
मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें
इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।
*
जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे
जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।
*
हिस्से में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खंडित करे न देश को तलवार मजहबी
आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।
*
मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना
करते रहे हैं लोग जो व्यापार मजहबी।।
*
जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा
इन्सानियत से दूर हो सन्सार मजहबी।।
*
माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो
इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।
*
समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है
बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।
*
करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
*
नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं
दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।
*
तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय
मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।
*
हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है
सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।
*
तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से
बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।
*
जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही
कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments
दोहे -पिता
*****
पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस
वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।
*
जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव
सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।
*
जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह
अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।
*
डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात
सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।
*
नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह
हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।
*
पत्थर से व्यवहार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो
अब रक्त डूबी इस में न कोई कहानी हो।।
*
होता अगर हो प्यार का आबाद हर नगर
हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।
*
भटको न आस पास के रंगीं नजारे देख
पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।
*
हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर
कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।
*
किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे
मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो
*
दिल है जवाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments
आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा
अब एक दूसरे को चिढ़ाया न जाएगा।।
*
यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है
वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।
*
मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं
आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।
*
बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा
सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।
*
संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं
कोई भी भेद-भाव हो गाया न जाएगा।।
*
होगी समान न्याय की जब रीत देश में
तब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बाबर से यार जो भी बुलाने पे आ गये
इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।
*
अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी
अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।
*
पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को
ये कौन लोग देश जलाने पे आ गये।३।
*
कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश
गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये।४।
*
गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर
पत्थर से आज शान्ति उड़ाने पे जा गये।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो
बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।
*
इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर
घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।
*
चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या
जाफर न घर में आप के, पैदा कलाम हो।।
*
दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में
अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।
*
छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ
सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।
*
नफरत लिए न भोर के बैठी हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं
मीनारें नफरतों की ये ढहती नहीं कहीं।।
*
जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा
इतिहास खोद बस्तियाँ मिलती नहीं कहीं।।
*
होली में कब वो रंग में डूबा था पूछ मत
अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।
*
मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह
आये हैं ऐसी राह जो खुलती नहीं कहीं।।
*
मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें
बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं।।
*
बाबर ढहाया तोड़ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments
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