२१२/२१२/२१२/२१२
*
राह में शूल अब तो बिछाने लगे
हाथ दुश्मन से साथी मिलाने लगे।१।
*
जो अघाते न थे कह सहारे हमी
गाल वो भी दुखों में बजाने लगे।२।
*
दुश्मनों की जरूरत हमें अब कहाँ
जब स्वयं को स्वयं ही मिटाने लगे।३।
*
हाथ सबका ही तोड़े यहाँ फूल को
सोच माली भी काँटे उगाने लगे।४।
*
बात उसको बता कर्म की साथिया
सेज सपनों की जो भी सजाने लगे।५।
*
वोट पाने की खातिर कभी रोये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2022 at 11:30pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
*
मत कहो अब मन खँगाला जा रहा है
इस वतन से बस उजाला जा रहा है ।१।
*
फिर दिखेगा मौत का मन्जर वृहद ही
कह सुधा नित विष उबाला जा रहा है।२।
*
आसमाँ को बाँटने की हो न साजिस
जो भी नारा अब उछाला जा रहा है।३।
*
हस्र क्या होगा उन्हें भी ज्ञात होगा
जानकर जब साँप पाला जा रहा है।४।
*
बँट रहा नित किन्तु सब के पेट खाली
पास किस के फिर निवाला जा रहा है।५।
*
मान मर्दन के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 23, 2022 at 9:33pm — 4 Comments
दोहे बाल दिवस पर
***
लेता फिर सुधि कौन है, दिवस मना हर साल।
वन्चित बच्चे जानते, बस बच्चों का हाल।।
*
कितने बच्चे चोरते, निसिदिन शातिर चोर।
लेकिन मचता है नहीं, तनिक देश में शोर।।
*
भूखा बच्चा रोकता, अनजाने की राह।
बासी रोटी फेंक मत, तेरे पास अथाह।।
*
नेता करते देह का, धन के बल आखेट।
कितने बच्चे सो रहे, निसदिन भूखे पेट।।
*
बच्चे हर धनवान के, हैं सुख से भरपूर।
निर्धन के सुख खोजने, बन जाते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2022 at 10:11pm — 2 Comments
कह रहे हैं आज हम भी तानकर सीना।
प्रीत ने चलना सिखाया, प्रीत ने जीना।।
*
थे भटकते फिर रहे पथ में अकेले।
आप आये तो जुड़े हम से बहुत मेले।।
था नहीं परिचय स्वयं से, तो भला क्यों।
कौन अनजाना बुलाता आन सुख लेले।।
*
पीर ही थाती हमारी बन गयी थी पर।
आप की मुस्कान ने हर दर्द है छीना।।
*
हर चमन के फूल मसले शूल से खेले।
हम रहे अब तक महज संसार में ढेले।।
नेह के हर बोध से अनजान जीवनभर।
वासना की कोख में नित क्या नहीं झेले।।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2022 at 5:30am — 2 Comments
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।
हैं अधर पर प्यास के अंगार आ जाओ।।
*
नित्य बदली छोड़ कर अम्बर।
बैठ जाती आन पलकों पर।।
धुल न जाये फिर कहीं शृंगार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
शूल सी चंचल हवाएँ सब।
हो गयीं नीरस दिशाएँ सब।।
है बहुत सूना हृदय संसार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
हो गयी बोझिल पलक जगते।
आस खंडित आस नित रखते।।
कौल को अब कर समन्दर पार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2022 at 6:16am — 14 Comments
गीत
*****
उजाला कर दिया उसने
चलें उस ओर हम-तुम भी।।
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी बीती हमारी भी।
अभी तक ढो रहे हैं बस
वही थोपी उधारी भी।।
*
नहीं प्रयास कर पाये
कभी इससे निकलने का।
बढ़ाया हाथ उस ने जब
लगायें जोर हम तुम भी।।
**
न जाने कौन सी ग्लानी
मिटा उत्साह देती नित।
नहीं साहस जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।
*
सफलता है नहीं आयी
भला क्यों पथ हमारे ही।
तनिक मष्तिष्क से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 3:30am — 15 Comments
प्रेम रस का पान आओ फिर करें
सृष्टि का नव गान आओ फिर करें !
*
हम जले दावानलों से,
आँधियों से तुम बिखर।
आ गये हैं एक जैसी,
भाग्य की बाँधी डगर।।
*
भूल कर बीते दुखों के दर्द को
मोहिनी मुस्कान आओ फिर करें !
*
सोच मन पर क्या न बीती,
और घायल मन न कर।।
तय करें फिर साथ मिलकर,
जिन्दगी का यह सफर।।
*
नव सृजन को पथ मिला साथी मिले
नीड़ का निर्माण आओ फिर करें !
*
हम रहे साथी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 23, 2022 at 5:00am — 6 Comments
तुम कह देती एक बार
प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।
*
मिट जाती जन्मों की प्यास
छा जाता मन में उजास।
खो जाते सकल संत्रास
पूरित होती स्वर्णिम आस।।
*
पीड़ा हो जाती तार - तार
तुम कह देती एक बार
प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।
*
पोंछ देती तुम नयन गीले
पड़ जाते सब आबंध ढीले।
हो जोते हरित, सब पर्ण पीले
मृत्यु कहती , जा और जी ले।।
*
मन से लेती जो पुकार
तुम कह देती एक …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 22, 2022 at 8:30pm — 6 Comments
२२१/२१२१/२२१/२१२
*
अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए
जीवन को एक दृढ़ नया आधार दीजिए।।
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व्याख्या गुणों की कीजिए दुर्गुण निथार के
सारे जगत को मान्य हो वह सार दीजिए।।
*
पथ से परोपकार व सच के न दूर हों
नैतिक बलों की शक्ति का संचार दीजिए।।
*
अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए।।
*
गुरुकुल बृहद सा गेह है मुझको लगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2022 at 7:30am — 6 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
***
न मन के सहारे रहे साथ अपने
न सुख के पिटारे रहे साथ अपने।।
*
कभी साथ देने न मझधार आयी
कि सूखे किनारे रहे साथ अपने।।
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बहारें भले मुह फुलाती हों अब भी
खिजां के नजारे रहे साथ अपने।।
*
खुशी ने जो पाले अछूतों में गिनते
दुखों के दुलारे रहे साथ अपने।।
*
नदी नीर मीठा लिए गुम गयी पर
समन्दर वो खारे रहे साथ अपने।।
*
भले आज फैली अमा हर तरफ हो
कभी चाँद तारे रहे साथ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 29, 2022 at 9:30pm — 8 Comments
सिन्दूर कह न सिर्फ सजाने की चीज है
पुरखे बता गये हैं निभाने की चीज है।।
*
इससे बँधा है जन्मों का रिश्ता जमाने में
हक और सिर्फ प्रीत से पाने की चीज है।।
*
भरते ही माग इससे जो विश्वास जागता
भूली जो पीढ़ी उसको बताने की चीज है।।
*
मन में जगाता प्रेम समर्पण के भाव को
केवल न रीत सोच निभाने की चीज है।।
*
इससे हैं मिटाती दूरियाँ केवल न देह की
ये दो दिलों को पास में लाने की चीज है।।
*
छीनो न भाव इसका भले आधुनिक हुए
ये तो जमीर नर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2022 at 6:18am — 5 Comments
२२१/२१२१/२२१/२१२
*
फिरती स्वयम् से पूछती राधा कहाँ गये
भक्तों के दुख को भूल के कान्हा कहाँ गये/
*
होने लगा जगत से है नित नाश धर्म का
आने का फिर से भूल के वादा कहाँ गये/
*
गोकुल हो मथुरा द्वारका कन्सों का राज है
जन-जन से ऐसे तोड़ के नाता कहाँ गये/
*
रिश्ते जहाँ में छल के ही आवास अब बने
होता सभा में मान का सौदा कहाँ गये/
*
आओ मिटाने पीर को जन-जन पुकारता
मुरली छिपाये लोक के राजा कहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2022 at 9:34am — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बोलो न आप हो गयी शमशान जिन्दगी
दुख से उबर के ओढ़ेगी मुस्कान जिन्दगी।१।
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करते हो मुझ से प्रश्न तो उत्तर यही मेरा
होती है यार मौत का अवसान जिन्दगी।२।
*
कहते हैं सन्त मीन सी दानों को देखकर
माया के जाल फसती है नादान जिन्दगी।३।
*
आचल में मौत सासों को लेते न चूकती
भटकी कहीं जो भूल से यूँ ध्यान जिन्दगी।४।
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जैसे विचार वैसी ही जग में बनाती है
सच है सभी की आज भी पहचान जिन्दगी।५।
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करता रहा है प्यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2022 at 2:50pm — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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लगाओ लगाओ सदा कर लगाओ
बहुत तुच्छ है ये बड़ा कर लगाओ।।
*
अभी रोटियों को अठन्नी बची है
रहे जेब खाली नया कर लगाओ।।
*
कभी रक्त बहता दिखे घाव पर से
दवा छोड़ उस पर कटा कर लगाओ।।
*
गया बचपना तो उसे छोड़ना मत
युवापन बुढ़ापा ढला कर लगाओ।।
*
घटा धूप बारिश तजो चाँदनी मत
मिले मुफ्त क्यों ये हवा कर लगाओ।।
*
जो पीते पिलाते उन्हें मुफ्त बाँटो
न पीते हुओं पर नशा कर लगाओ।।
*
विलासी लगा है उदासी नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2022 at 7:28am — 4 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
समझ मत उसे यूँ बुरा और होगा
तपेगा दुखों में खरा और होगा।।
*
उजाला कभी जन्म लेगा वहाँ भी
अँधेरा कहाँ तक भला और होगा।।
*
रवैय्या है बदला यहाँ चाँद ने अब
रहेगा कहीं पर पता और होगा।।
*
लहू में है उस के वही साहूकारी
कहा और होगा लिखा और होगा।।
*
करो जुर्म जमकर ये अन्धेर नगरी
सजा को तुम्हारी गला और होगा।।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 18, 2022 at 6:40am — 6 Comments
दोहे
****
मुख सा सम्मुख और के, रखिए शब्द सँवार
सुन्दर शब्दों के बिना, कहते लोग गँवार।१।
*
युद्ध शब्द से जन्मते, और शब्द से शान्ति
महिमा अद्भुत शब्द की, जिससे होती क्रांति।२।
*
कोई शब्दों में भरे, अद्भुत सहज मिठास I
कोई रीता रख उन्हें, देता अनबुझ प्यास।३।
*
कोई सज्जन कह गया, बात बड़ी गम्भीर।
जीवन घायल मत करो, शब्दों को कर तीर।४।
*
कोई छाया दे सदा, कर शब्दों को पेड़।
कोई शब्दों से यहाँ , बखिया देत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2022 at 5:30am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ
ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।
*
कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा
इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।
*
कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में
ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।
*
नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का
बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।
*
कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी
यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 2:19pm — 3 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
जब कोई दीवानगी ही आप ने पाली नहीं
जान लो ये जिन्दगी भी जिन्दगी सोची नहीं।।
*
पात टूटे दूब सूखी ठूठ जैसे हैं विटप
शेष धरती का कहीं भी रंग अब धानी नहीं।।
*
भर रहे हैं सब हवा में आग जब देखो सनम
फूल होगा याद में बस गन्ध तो होगी नहीं।।
*
तैरती है प्यास आँखों में सभी के रक्त की
हो गये हैं लोग दानव पी रहे पानी नहीं।।
*
राजशाही साम्यवादी लोकशाही दौर सब
भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2022 at 7:22pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पानी नहीं नदी से जिन्हें रेत चाहिए
रचने को सेज अन्न का हर खेत चाहिए।२।
*
औषध नहीं पहाड़ से पत्थर खदान कर
कंक्रीट के नगर को वो समवेत चाहिए।२।
*
दो पल के सुख दे छीनले पूरी सदी को जो
सब को विकास नाम का वो प्रेत चाहिए।३।
*
छाया से पेड़ की नहीं लकड़ी से प्यार है
कुर्सी को जंगलों की सभी बेत चाहिए।४।
*
धरती को नोच चाँद को रौंदा उन्हें यहाँ
रीती नदी में नीर का संकेत चाहिए।५।
*
वैभव नगर का साथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2022 at 6:40am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
अब झूठ राजनीति में दस्तूर हो गया
जिस का हुआ विरोध वो मशहूर हो गया।१।
*
जनता के हक में बोलते जो काम बोझ है
नेता के हक में काम वो मन्जूर हो गया।२।
*
कहते हो वोट शक्ति का पर्याय है अगर
क्यों लोक आज देश का मजबूर हो गया।३।
*
जो चाहे मोल दे के करा लेता काम है
कानून जैसे देश का मजदूर हो गया।४।
*
जनता न राजनीति की मन्जिल बनी कभी
उपयोग उस का राह सा भरपूर हो गया।५।
*
होता भला न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2022 at 3:30am — 2 Comments
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