2122 2122 2122 212
हो बड़े मगरूर अपनी जीत मेरी हार में
हम लुटा देते हैं हस्ती प्रेम के व्यापार में
भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है
वांच ली सारी किताबें क्या रखा है सार में
गीत बैठे तक रहे हैं झनझनाहट तार की
क्या जुगलबंदी हुई है राग सुर औ प्यार में
बाँध कर सिर पे कफ़न हैं चल पड़े कुछ…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
212 212 212 212
चार दीवारें भी हों छतों के लिये
और क्या चाहिये मुफलिसों के लिये
महफिलें भूख की हो रहीं हैं ज़बां
है सियासत मगर रहबरों के लिये
अत्ड़ियाँ पेट की घुटनों से मिल गईं
अब कहाँ तक झुकें रहमतों के लिये
जिन दरख्तों तले पल रहा आदमी
प्यार की हो नमी उन जड़ों के लिये
लाख दौलत अकूबत है हासिल जिन्हें
वो तरसते मिले कहकहों के लिये
ठोकरें नफरतें झिड़कियों के सिवा
और…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे
सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे
लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा
कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे
किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2016 at 9:00pm — 20 Comments
2122 2122 2122 212
रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक
उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक
है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक
.
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 7, 2016 at 9:30pm — 24 Comments
कहीं कुछ टूटता सा महसूस होता है
कहीं कोई डाली चटक सी जाती है
क्यों अस्तित्व खुद ही बिखर रहा है
हर शख्स जीवन से मुकर रहा है
बस एक धारा बनना चाहा
जो समेटे रहती ध्वनि कल-कल
बहती रहती सदा यूँ ही अविरल
सरोकार न होता जिसे सुख से
न दर्द होता किसी दुःख से
पहचान न होती किसी पाप की
न चाहत होती किसी पुण्य…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 3, 2016 at 4:30pm — 4 Comments
कर रहा क्या करम धर्म के नाम पर
आदमी बेशरम धर्म के नाम पर
दान की लाडली देव घर के लिये
बन गये वो हरम धर्म के नाम पर
लूटते मारते काटते आदमी
ज़न्नतों का भरम धर्म के नाम पर
कर दिये हैं फ़ना बेजुबां जानवर
कौन साईं हुये?और शनि देव है?
है बहस ये गरम धर्म के नाम पर
मिट गया बाँकपन खोइ शालीनता
भाड़ में गइ शरम धर्म के नाम पर…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 27, 2016 at 6:00pm — 9 Comments
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