मैं बंजारन खोज रही हूँ
तेरे निशाँ
यह रेत के टीले
मिटा रहें है जो निशानियाँ ,
घूम घूम कर तलाश रही हूँ
तेरे कदमों के चिह्न
जो कभी हुआ करते थे
इन्हीं रेतीली ज़मीन पर |
आती थी आवाज़ तुम्हारी
दूर से ही
पुकारते हुए दौड़े चले आते थे ,
तुम अपने घर से
मुझसे मिलने को ,
गवाह है -
यह यहाँ की सर ज़मीं |
वो कटीले पौधे
जो चुभ जाते थे तुम्हें
आज भी यहीं हैं
देखती हूँ इनपर
तुम्हारा सुखा…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 20, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
राजू ! हाँ यही तो नाम था उस बच्चे का जिससे मैं मिली थी कुछ वर्षो पहले । अक्सर उसे अख़बार बाँटते हुए देखा था । बारह -तेरह वर्ष का बच्चा । गाड़ियों के पीछे भागता , सिग्नल होने पर गाड़ियों के कांच से अखवार ख़रीदने की गुहार करता । उसके साथ एक बच्ची शायद उसीकी बहन थी । कई बार सोचती थी रुक कर उससे बात करूँ । मासूम सा चहरा ,अपनी बहन का हाथ थामकर ही सड़क पार करता था ।
एक दिन उसी रास्ते से गुज़र रही थी पर वो लड़का नहीं दिखा । उसकी बहन के हाथों में अखबार थे । गाड़ी से उतर कर मैंने उसको अपने पास बुलाया ।…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 30, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 29, 2016 at 10:18am — 8 Comments
यह 1980-81 की बात है । मैं दसवी क्लास में थी । स्कूल का आखरी टूर था । पता चला कि नेपाल जाना था । स्कूल के टूर साल में दो बार होते थे गर्मी और विंटर की छुट्टियों में । दिसम्बर में जाना तय हुआ था । प्रिंसिपल सर ने घोषणा की कि दिल्ली , आगरा , पटना , गया से समस्तीपुर होते हुए नेपाल जाना होगा । हम क्लास में आपस में बाते करने लगे थे । अपने अपने मनसूबों के साथ हम में एक उत्साह था । यह स्कूल का आखरी टूर था । हम सब जल्द ही बिछड़ने वाले थे । मेरे मन में था मैं भी जाऊं । पर कैसे ?? एक नोटिस मिलता था ।…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 7:00am — 9 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 22, 2016 at 9:23pm — 8 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 15, 2016 at 6:22pm — 1 Comment
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2016 at 3:30pm — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 10, 2016 at 2:32pm — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2016 at 2:59pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 6, 2016 at 11:00am — 3 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 5:46pm — 8 Comments
" तुमसे कुछ भी कहना बेकार है । तुम कभी नहीं सुधर सकते । जाने कितनी बार जेल जा चुके हो , हर बार कहते हो बस यह आखरी चोरी है , फिर वही करने लग जाते हो । तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार वालों को जो परेशानियाँ होती है , तुमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया ......।"रमेश अपने दोस्त को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर वह दोस्त तो !!!
"बन्द करो अपनी शिक्षा दिक्षा नहीं सुनना तुमसे कोई भाषण । मेरी मर्ज़ी जो चाहूँ करूँ । बचपन से करते आया हूँ । घर में किसीने नहीं रोका अब यह मेरी बेरी बीवी जब से आई है…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 4, 2016 at 3:30pm — 11 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 3, 2016 at 7:00am — 1 Comment
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 2:30pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2016 at 7:48am — 8 Comments
इस बार सावन कुछ और होगा
सखियों की छेड़ छाड़
और
और पिया का संग होगा |
झूलों पर गुनगुनाते गीत होंगे
फूलों के खुशबू
और
और पिया से मिलन होगा |
गुन गुनाएंगे पत्ते भी
हरी हरी डालियों पर
बिजली जब भी चमकेगी
पिया के आग़ोश में
यौवन पिघलेगा|
अधरों पर अधर
गीतों की फुहार होगी
सावन में लहेरिया पहने
सजन से मिलने की ख्वाहिश
सजन होंगे प्रीत होगी
अब के सावन कुछ और होगा |
नाचेंगे मोर बागों…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 6:30pm — 3 Comments
मेरी जान
बनकर दुल्हन
बनी ठनी
सजी संवरी
मृदु मुस्कान
भर चली ।
मेरी लाडो
बन दुल्हन
घर चली |
वीरान आँगन
वो मेरा
कर चली ।
मेरी जान
अपने सजन की
हो चली ।
घर बाबुल का
पीछे छोड़
चल पड़ी…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2016 at 8:30pm — 8 Comments
एक चंचल
दूजा शांत
करे युद्ध
दो मन |
उड़ान भरता
ख्वाब बुनता
चंचल चितवन
एक मन |
सोचता रहता
कार्य करता
शांत बैठा
दूजा मन |
कैसा युद्ध
कौन जाने
कई माने
कई अनजाने |
कभी सावन
कभी ग्रीष्म
कभी बसंत
कभी शरद |
बदलता रहता
आक्रोश करता
खामोश बैठता
कैसा मन !
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 1, 2016 at 7:23pm — 2 Comments
खुशियों में , गम के साये में
जीना सीखना होगा
प्यार में , नफरत के साये में
संभल कर खुद को ही चलना होगा
इज़हार ख़ुशी का न गम की नुमाईश
एक साथ दोनों को पीना होगा
भ्रम बनकर सतायेंगी गर यह
इस चक्र से निकल कर आगे बढ़ना होगा
जीवन को समझकर बढ़ना होगा
सोच कर हर कदम रखना होगा |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 5:30pm — 3 Comments
पानी नहीं है , प्यास लगी है
मुन्ने को देखो प्यास लगी है
घर के सारे घड़े खाली पड़े है
बाहर के नल भी सूखे पड़े है
मुन्ने को मैं कैसे समझाऊं
प्यास उसकी मैं कैसे बुझाऊं
गर्मी भी तो बढ़ रही है
बस्तियां जैसे जैसे गढ़ रहीं है
वन उपवन हमने काट दिए है
और जाने कितने विनाश किये है
अब भुगत रहे मासूम यह बच्चे
कौन समझें यह तो अक्ल के कच्चे
अक्ल वाले सब कहाँ गए…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 11:00pm — 1 Comment
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