अनारक्षित ट्रेन थी
खचाखच भरी थी
भरे थे लोग भूसे की तरह
सीटों पर
ऊपर सामान रखने की जगह पर
फर्श पर
लेकिन
मुझे तो जाना ही था ।
खड़ी बोली के सहारे
चार मित्रो और बलिष्ट भुजाओ की सहायता से
मैंने मार्ग बनाया ।
कितने लोग!
इतने लोग?
सब बहुत घुले मिले थे आपस में
क्या कर रहे हैं?
कहाँ जा रहे हैं?
काम से आ रहे हैं
काम पर जा रहे हैं
इतनी दूर से काम पर आ रहे है
अरे?
क्या ये साप्ताहिक गाड़ी…
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Added by मनोज अहसास on December 6, 2015 at 2:30pm —
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2122 2122 2122 212
कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन
इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन
उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है
मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन
बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ
मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन
एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल
फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन
प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है
वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे…
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Added by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 2:00pm —
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वो जाग रहे हैं
दिन है फिर भी जाग रहे हैं
अक्सर वो रात में जागते है
अँधेरी और खामोश रात में
अब वो दिन में भी जाग रहे हैं
रात रौशन जो हो रही है
उन्हें एतराज़ है इस बात पर
रात रौशन क्यों है
वो बहुत गुस्से में है
वो बहुत गुस्से में है
वो साबित करना चाहते है
वो भी प्रहरी है
सूखी हुई खेती के
और उसको काटने नहीं देगे
और अपने मुलायम आसान से उतर आये है
वो अनशन भी कर सकते है
उन्हें डायबटीज़ है मानसिक
मीठा नहीं खा…
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Added by मनोज अहसास on October 21, 2015 at 8:21pm —
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1222 1222 1222 1222
मेरी आँखों से ऎसे दर्द का रिश्ता निकल आया
जिसे रक्खा निग़ाहों में वही कतरा निकल आया
वो जिसको सारी दुनिया की खुदा ने बख्श दी दौलत
उसी के घर मेरा खोया हुआ कांसा निकल आया
न मेरे हिस्से में तेरी झलक थी इक नज़र को भी
बहुत परदे हटाये फिर भी एक पर्दा निकल आया
मैं दसरथ मांझी का किस्सा भी इस मिसरे में कहता हूँ
किसी की जिद के आगे नूर का रस्ता निकल आया
जो उसने कह दिया गर वाह बिना समझे ग़ज़ल मेरी
मेरे सिर…
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Added by मनोज अहसास on October 11, 2015 at 2:30pm —
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रोटी कपडा दयार थे सदमे
मुफलिसी मे हज़ार थे सदमे
एक मुद्दत से साथ चलते थे
जान के दावेदार थे सदमे
खूब रोया था कहके चारागर
क्यों मेरा रोजगार थे सदमे
शाइरी भी फंसी सियासत मे
पहले ही बेशुमार थे सदमे
सारी बातें गलत तबीबों की
तेरे गम का गुबार थे सदमे
उनकी आँखों से नूर बहता है
हर तरफ मेरी हार थे सदमे
आज कह डाले तेरी महफ़िल है
मुझपे तेरा उधार थे सदमे
इश्क वालो के बीच कहता हु
रौशनी मे दरार…
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Added by मनोज अहसास on September 28, 2015 at 7:32pm —
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बड़े दिनों के बाद में आखिर
उनका बुलावा आ ही गया
सरकारी शिक्षक होने का
मन में कितना हर्ष हुआ
घर से दूर जाना था मुझको
लेकिन सोचा कोई बात नहीं
यही सत्य है इस जग का
कुछ खोकर ही कुछ पाना है
रात से बेहतर होता सवेरा
भले ही बादल वाला हो
पहुँच गया जब शिक्षा मंदिर
देखकर मन बस टूट गया
ऐसा लगा
उन्नत समाज साफ़ सुथरा जीवन
कितना पीछे छूट गया
घोर कालिमा खुरदरी भूमि
श्यामपट्ट से चेहरों तक
मैले कपड़ो में नन्हा भारत
आँखों में…
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Added by मनोज अहसास on September 21, 2015 at 9:26pm —
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2212 2212 2212 12
सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया
साकी ने मेरे आंसुओं को जाम लिख दिया
सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया
खुद को मिला के आ गया दुनिया की भीड़ में
उसने उदासियां का मेरी दाम लिख दिया
इस ज़िन्दगी के घाव कितने कम लगे मुझे
मैंने तड़फती सोच मे जब राम लिख दिया
हाथों के ज़ख्मो पेट की सिलवट को देखकर
घबरा के चारागर ने भी आराम लिख दिय
लपटों मे घिर न जाये कहीं…
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Added by मनोज अहसास on September 9, 2015 at 4:00pm —
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2122 1212 22
आज इस बात पर ही हँसते है
अश्क़ खुशियों से कितने सस्ते है
तुझसे मिलने में वो ही बंदिश है
सारी दुनिया में जितने रस्ते है
वो मुझे रात दिन सताते है
तेरी आँखों से जो बरसते है
जब तेरा ज़िक्र कहीं आता है
होठ कुछ कहने को तरसते है
चल ज़रा बेखुदी में चलते है
बस वहीँ इश्क़ वाले बसते है
मुझमे रोती थी उनकी नादानी
वो मेरी बेबसी पे हँसते है
देखकर तेरे चेहरे की जर्दी
बेबसी मुठ्ठियों…
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Added by मनोज अहसास on September 1, 2015 at 2:30pm —
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2122 2122 2122 212
लड़खड़ाहट चाहता हूँ मैं संभल जाने के बाद
धूप दिल में चुभ रही है दिन निकल जाने के बाद
सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का
और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद
ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत
खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद
खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम
ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद
सर छुपाये फिर रहा था रौशनी में दर-ब-दर
चाँद सा खिलने लगा गम शाम ढल जाने के…
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Added by मनोज अहसास on August 13, 2015 at 9:30pm —
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पढ़ा है दर्द की आँखों में तराना तेरा
तुझको मालूम हो शायद मेरा बेरंग सफ़र
मैंने हर लम्हा तेरी याद को पेशानी दी
तुझपे कुर्बान रही मेरी अकीदत की नज़र
मैं सुलगता हूँ तेरा साथ निभाने के लिए
हलाकि कुछ भी नही बाकि है जलने को इधर
ख़त्म हो चुकी इक रस्म की सांसो के लिए
ज़बी हर लम्हा ढूंढती है तेरी रहगुजर
तुझको पा लेना किसी हाल में मुमकिन ही न था
तुझको खोने की तमन्नाये उठी पर कैसे
जब थे मजबूर किसी बात की परवाह न थी
आज इन जमते हुए…
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Added by मनोज अहसास on August 9, 2015 at 10:39pm —
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2122 2122 2122 212
इश्क़ मे बेहाल होकर इतना हासिल हो गया
तेरी आहट से यहाँ हर लम्हा महफ़िल हो गया
फैसला करना मुझे ये आज मुश्किल हो गया
दिल से मुझको गम मिला या गम से यूँ दिल हो गया
रात सी चादर लपेटे बर्फ से वो सामने
आखिरी लम्हा मेरा जीने के काबिल हो गया
यूँ तो उसने बेबसी के सब फ़साने लिख दिए
ये नहीं कह पाया कैसे खुद का कातिल हो गया
डबडबाया कुछ ज़रा फिर जज्ब सब कुछ हो गया
किस कदर महफूज़ उन झीलों का साहिल हो गया…
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Added by मनोज अहसास on July 26, 2015 at 4:00pm —
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2122 2122 2122 212
या तो चाहत इश्क़ में थी या खुदा पाने में थी
एक समंदर की सी तमन्ना आँख के दाने में थी
बेगुनाही एक जिद इक़बाल जब तेरी ख़ुशी
और मेरी हर सजा तेरे बिछड़ जाने में थी
होश के इस फैसले से क्या मुझे हासिल हुआ
ज़िन्दगी की हर ख़ुशी छोटे से पैमाने में थी
सांस लेता है ये जाने कौन किसका जिस्म है
ज़िन्दगी तो अपनी तेरे गम के वीराने में थी
ये नहीं हासिल हुआ या वो नहीं मुमकिन हुआ
कशमकश ये हर घडी इस दिल को थर्राने में…
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Added by मनोज अहसास on July 13, 2015 at 8:30am —
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सुबह आयी
तेरे इंतज़ार की खुशबू लेकर
फिर तमाम दिन मुझे तेरा इंतज़ार रहा
शाम आयी
तेरे ना आने की मायूसी लेकर
फिर तमाम रात अंधेरो मे ढूढ़ा है तुझे
और बांधी है उम्मीद अगली सुबह से
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
आज आया है
तो मेरी आँखों में चमक ही नहीं
बुझ गया है तेरा इंतज़ार
जला कर खुद को
तुझको पाने को लगाया था खुद को दाँव पर
ऐसा लगता है
तुझ को पाया है खोकर खुद को
मेरी ज़िन्दगी के हसीन पल
तू कहाँ था?
साथ लेकर…
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Added by मनोज अहसास on July 1, 2015 at 1:45pm —
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आज दोपहरी जब कमरे पर
पहुँचा थका थकाया सा
सबसे पहले पहुँच गया था
वहाँ कोई भी अभी नहीं था
चला के पँखा लेट रहा था
चीं चीं की आवाज़ सुनी तो
बाहर जाकर देखा मैंने
दो चिड़ियाएँ फुदक रही है
चीं चीं चीं चीं
पास गया तो उड़ जाती थी
फुदक फुदक फिर आ जाती थी
पहले कभी नहीं देखा था
आज यें पहली बार मिली है
याद तुम्हारी दिला रहीं है
मेरी बिटिया
चिड़िया सी बिटिया
तेरी बोली इन चिड़ियों में मिल सी गयी है
घुल सी गयी है
इनके आजाने पर…
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Added by मनोज अहसास on June 16, 2015 at 5:48pm —
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1222 1222 1222 1222
हमे ये गम हमारी ही खताओं से मिला होगा
सहारे इस कबूलत के नज़र को हौसला होगा
खुदा हमको ही लौटा देता है फेकें हुए पत्थर
हक़ीक़त जानकर किससे भला शिकवा गिला होगा
दुआ ये करता हूँ दिल में न कोई अब कभी उतरे
ज़रा नज़दीकियों से फिर नया एक फासला होगा
तसव्वुर बोझ बन जाये ज़माने मे तो फिर क्या हो
फक़त इस्लाह के हाथों से तब अपना भला होगा
बता'अहसास'तेरी बज़्म से उठ जाता तो कैसे
कदम कुछ जम…
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Added by मनोज अहसास on June 6, 2015 at 5:00pm —
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घर सजाते रहे ग़र मुझे चीर कर सारी दुनिया किसी दिन उजड़ जायेगी
हम हरें हैँ तो रौशन है सारा जहाँ वरना जीवन की सूरत बिगड़ जायेगी
हम खड़े धूप में तुमको छाया दिये फल मुहब्बत से तुमको सब दे दिये
तुमने अंधी कटाई न रोकी अगर तुमसे मीठी सी छाया बिछड़ जायेगी
साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी
हमसे बारिश मिले हमसे महके चमन बिन हमारे अधूरा रहे आचमन
हम न…
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Added by मनोज अहसास on June 4, 2015 at 11:41pm —
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मेरी बेटी
तपता सूरज
जब माथे पर सुलग रहा है
दो बातें अपने सीने की तेरे हिस्से मे रखता हूँ
ये सूरज एक बड़ा परीक्षक
ये सूरज एक बड़ा तपस्वी
ये सूरज एक सत्य अटल है
ये सूरज एक महा अनल है
इस सूरज के संरक्षण मे
जीवन के सब अर्थ खुलेगे
इस सूरज के साथ तू चलना
देख गगन से शब्द मिलेगें
चुपके चुपके....सुलग सुलग कर
चमक में हिस्सा मिल जाता है
तपते रहने से रंग जीवन का
एक ना एक दिन खिल जाता है
तपना जीवन को रंगना है
वरना सब फीका…
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Added by मनोज अहसास on May 26, 2015 at 7:16pm —
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122 122 122 122
हक़ीक़त नहीं मैं धुँआ चाहता हूँ
तिरी ओर से बस दगा चाहता हूँ
तु मुझको सफ़र में कही छोड़ देना
फकत दो कदम को सना चाहता हूँ
जहाँ तक मुझे तोड़ देगा ज़माना
वहीँ तक सदा की हवा चाहता हूँ
नहीं साथ तेरा अगर ज़िन्दगी में
तिरी रहगुजर में कज़ा चाहता हूँ
ज़रा तोड़कर ये परत बेबसी की
कहीं दूर अब मै उड़ा चाहता हूँ
फ़क़ीरी मेरी वो कदम से लगा लें
अमीरी का उनकी नशा चाहता हूँ
बहुत…
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Added by मनोज अहसास on May 23, 2015 at 4:30pm —
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जैसी ज़मीन हो गयी वैसा ही वो हुआ
दूरी से नहीं बेरुखी से आसमां हुआ
पत्थर का शहर हाथ में खंज़र लिए हुए
रोता था मेरी याद में सर नोचता हुआ
ऐसी भी भरी भीड़ न देखी कभी दिलबर
एक ज़िन्दगी में दर्द का मेला लगा हुआ
वैसे तो तुझे भूल भी जाऊ मै जिंदगी
लेकिन ये तेरी याद का जीवन बना हुआ
उस पार का भी गम मेरी आँखों में है मगर
लेकिन ये कफ़न वक़्तका मुझपर पड़ा हुआ
जाता नहीं है आँख से मंज़र कभी भी वो
मै ख़त जला रहा था उसी का लिखा…
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Added by मनोज अहसास on May 22, 2015 at 5:30am —
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तेरे दामन से लगाकर मै भरी आँखों को
ज़िन्दगी भर की तसल्ली का नतीजा चाहूँ
रौशनी तेरी ज़िन्दगी में ठहर जाये अगर
कौन सी चीज़ मैं मालिक से हमेशा चाहूँ
जो सुबह मुझको मिली है मै करू क्या इसका
बिन तेरे जीत ज़माने की भला क्या चाहूँ
हिज्रकी रात में भी आँख न जल जाये अगर
और मै चुपचाप तेरे गम में उबलना चाहूँ
हो सके तो मेरे ही दिल को बदल दे मालिक
अपने हिस्से से बड़ा और मैं कितना चाहूँ
रात का ज़िक्र ना कर मेरे हसीं दिल तनहा
मैं…
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Added by मनोज अहसास on May 20, 2015 at 4:48pm —
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