हो जाते है जब एकदम अकेले
हम अपनों की भीड़ में
तब जब दिल चाहता है कहना
किसी से बहुत कुछ
तब कोई नहीं मिलता ऐसा
जो साथ बैठकर सुने इस दिल की बाते
और कहे कि मैं हूँ न .........................
तब जब महसूस होता है
कि कोई नहीं है इस दुनिया में हमारा
तब एकदम से अचानक ...................
आ जाते है शब्द
और करने लगते हैं मुझसे बाते
तब जब दिल चाहता है जी भरकर रोना
लेकिन आंसू भी साथ देने से मना कर देते हैं
तब ये शब्द रोते है मेरे साथ…
Added by Sonam Saini on June 15, 2012 at 4:00pm — 14 Comments
लेखक की नई पुस्तक प्रकाशित हुई. कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए कि लेखक व प्रकाशक में युद्ध आरंभ हो गया. कई दिनों तक आरोप–प्रत्यारोप का दौर चला. इस घटनाक्रम से लेखन संसार दुखी हो गया. लेखन जगत ने लेखक व प्रकाशक से इस विवाद को आपस में सुलझा लेने का आग्रह किया.…
ContinueAdded by SUMIT PRATAP SINGH on June 15, 2012 at 2:00pm — 5 Comments
कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई. झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.
"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........."
दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.
"ये…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
जतिन जी ने बहुत ही लाड़-प्यार से अपने दो बेटों और एक बेटी को पाला. तीनो को बराबर उच्च शिक्षा दिलवाई, दोनों बेटे इंजिनियर और बेटी डॉक्टर बन गयी. उचित और उपयुक्त समय पर तीनो बच्चों का विवाह भी कर दिया. लड़की अपने पति के साथ विदेश चली गयी. लड़के भी बड़े बड़े शहरों में बड़ी कंपनियों में नौकरियां पाकर अपने-अपने परिवार को साथ लेकर वहीँ रहने लग गए. जतिन जी स्कूल की नौकरी पूरी करके सेवा निवृत्त हो गए और अपनी पत्नी के साथ अपने गाँव के घर में अकेले रह गए.
जब बच्चे छोटे थे तो उनके साथ बिताने…
Added by Neelam Upadhyaya on June 15, 2012 at 10:00am — 9 Comments
शब्-ए-फुरकत है उजालों की जरुरत क्या है
पास तुम हो तो इशारों की जरुरत क्या है
तुम बसे हो जो बने नूर-ए-खुदा आँखों में
इन निगाहों को नजारों की जरुरत क्या है
दिल लुटे सबके नज़र उसपे पड़ी जैसे ही
बेचने दिल ये बाजारों की जरुरत क्या है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 15, 2012 at 9:33am — 4 Comments
कोई जड़ है खोद रहा कोई डाले खाद
हंगामा ऐसा करो लोग करे फरियाद
फरियादी की आड़ में कोई झोंके भाड़
जबभी डंडा बरसे है कोई हो गया आड़
कोई का मतलब बड़ा राजनीती के लोग
आगे करके जनता को खूब लगाये भोग
आग लगी पेट्रोल में हंगामा था…
Added by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 12:00am — 6 Comments
बोतल पर क्यों डाट लगादी बाबाजी
मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी
हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी…
Added by Albela Khatri on June 14, 2012 at 8:33pm — 18 Comments
इन बारिश की बूंदों को
तन से लिपटने दो
प्यासे इस चातक का
अंतर्मन तरने दो
बरसो की चाहत है
बादल में ढल जाऊं
पर आब-ओ-हवा के
फितरत को समझने दो
फिर भी गर बूंदों से
चाहत न भर पाए
मन की इस तृष्णा को
बादल से भरने दो
Added by anamika ghatak on June 14, 2012 at 8:00pm — 4 Comments
ख्वाबों की दुकान से ख़रीदे थे अरमानो के बीज,
Added by Sarita Sinha on June 14, 2012 at 3:30pm — 4 Comments
तेरे संग के वो पल ..
सारे बीते हुए कल ..
सब याद आते हैं !! ..सब ..
वो चाँदी से पल ..
सोने में संग
सोने से पल ....
तेरे बालों की लट..
तेरा कहना वो चल हट .
सब याद आते हैं ..!!
तेरे होठों का रस ..
तेरा मिलना सरस ..
तेरा वो लड़ना
मुझसे झूठा झगड़ना ..
सब याद आते हैं ..सब .!!
वो आँखे मिलाना
वो प्यार से बुलाना ..
पुरानी सभी बातें बताना ..
याद आते हैं ..सब ..
तेरे आंसू के धारे
गिरते गालों सहारे ..…
Added by Raj Tomar on June 14, 2012 at 1:56pm — 6 Comments
करोड़ों दिलों पर राज करने वाले शहंशाह-ए-ग़ज़ल एवं लोक लाड़ले स्वर सम्राट जनाब मेहदी हसन के देहावसान से हमें बहुत दुःख पहुंचा है .
उनकी आत्मिक शान्ति के लिए परम पिता से प्रार्थना करते हुए एक ग़ज़ल के रूप में दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि :
आँख ग़ज़ल…
Added by Albela Khatri on June 14, 2012 at 11:30am — 12 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on June 13, 2012 at 11:09pm — 20 Comments
35 वर्ष की सेवा के बाद 31 जनुअरी ,2002 को कलक्टर कार्यलय में अधीक्षक पद से सेवा-निवृत ज्ञान स्वरुप भार्गव का कार्यलय में भव्य विदाई समारोह हुआ | स्वयं कलक्टर साहिब ने उनके कार्य की प्रशंसा की और उन्हें सफा, माला पहनकर स्वागत किया | कुछ साथी उन्हें घर तक छोड़ने आये, जहाँ द्वार पर परिवार के सदश्यों ने उनकी आरती उतार अन्दर ले गए| वहां स्वल्पाहार का आयोजन हुआ| ज्ञानस्वरूप ने अपने पोते-पोतियों,अपने बहिन-बहनोई और दोहिते को भेंट-उपहार देकर विदा किया|
दूसरे दिन से श्री भार्गव अपनी पेंशन…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 13, 2012 at 10:30pm — 2 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on June 13, 2012 at 8:30pm — 11 Comments
ओ बी ओ परिवार के समस्त स्वजनों को अलबेला खत्री का विनम्र प्रणाम .
एक शो और एक शूटिंग के चलते मैं तीन दिन सूरत से बाहर रहा . इसलिए यहाँ हाज़िरी नहीं दे पाया . परन्तु अच्छा ये रहा कि महा उत्सव में एक कुंडलिया और एक घनाक्षरी मैंने टी वी पर भी सुनाई तो लोगों ने ख़ूब सराहा . बाबाजी वाली एक ग़ज़ल भी …
Added by Albela Khatri on June 13, 2012 at 7:27pm — 24 Comments
जीडीपी से नौकरी,
ये अर्थशास्त्र कभी समझ न आया,
क्यों उगलते हैं कारखाने काला धुंआ,
जीडीपी ने कभी नहीं बताया,
सोचो ज़रा आसमान में,
सुराख किसने है बनाया,
क्यों झुलसाती है सूरज की किरणे इतना,
जीडीपी ने कभी…
Added by अरुण कान्त शुक्ला on June 13, 2012 at 7:00pm — 7 Comments
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चली शीतल पवन
आशाएं तरंगित हो गयी
बरसेगा धरती पे जल
किसान चलाएगा हल
डालेगा बीज खेतों में
स्वर्णिम होगा घर घर
बरखा बूँदें गिरने से
धरा तो गीली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चला पानी धरती पर
अमूल्य है ये निर्मल जल
हो जाए कहीं बेकार नहीं
बना के मेड़ों पर बंद
जल निकास नाली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 3:00pm — 11 Comments
(सर चकराए)
राधे माँ के लटके झटके
नित्यानंद के देखो नखरे
निर्मल बाबा के अजीब उपाय
देख के भईया सर चकराए
बाबाओं की गजब कमाई
अपार दौलत शोहरत पायी
गरीब तलाशता गोबर में दाना
बाबाओं नें लुटिया डुबाई
साधू नहीं यह स्वादु हैं
भोली जनता इनकी बाजू हैं
मृदुवाणी से बस में करते है
और झोलियाँ अपनी भरते हैं
कोई तन लूटे कोई मन लूटे
सब धन लूटे चुपचाप
उनकी चिकनी चुपड़ी बातों से
हो रहे हम बर्वाद
यह बाबा फसल बटेरे हैं…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on June 13, 2012 at 2:53pm — 4 Comments
उसने यारों मुझको पागल कर रखा है।
उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है॥
अश्क़ों की बारिस को अब मैं रोकूँ कैसे,
आँखों को सावन का बादल कर रखा है॥
ख़ुद ही बढ़…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 13, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
मासूम सी कली तू बगिया में खिली है
थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है
चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए
खा गया था काल तुम थे रो…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 1:22pm — 8 Comments
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