स्वर्ग-नरक
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 23, 2012 at 6:46pm — No Comments
घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |
मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |
तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 23, 2012 at 6:02pm — 25 Comments
मंत्रालय में आग.......भाग डी. के..भाग.......!!!!!!
Added by AVINASH S BAGDE on June 23, 2012 at 4:57pm — 11 Comments
ढूंढने गया मैं खुद को
बाज़ार में
मैं न जाने कहाँ खो गया
चाँदी की खनक में
सोने की दमक में
मैं न जाने कहाँ खो गया
क्यों आया हूँ यहाँ
मैं क्या हूँ ?
मैं भूल गया
इस चमक-दमक की दुनियाँ में
मैं खुद को ही भूल गया
मैं भूल गया
मेरे हाथों में
कलम की ऐसी ताकत थी
ऊपर वाले की देन कहें
या हृदय की मेरी गागर थी
चलती थी
मेरी अश्रु स्याही से
भावो के मोती विखेरने को
समराग्नी की ताकत रखती थी
नव-निर्वाण की हुँकार…
Added by जगदानन्द झा 'मनु' on June 23, 2012 at 1:30pm — 9 Comments
निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ
रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1)
तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार
गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2)
शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात
प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3)
सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय
हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4)
शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार
निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5)
रंक का चूल्हा…
Added by rajesh kumari on June 23, 2012 at 1:00pm — 26 Comments
जय जय भारत जय जय भारत
नारद शारद करते आरत
जय जय भारत जय जय भारत
वीरों की जननी है भारत
संतों की धरनी है भारत
अब तो बस ठगनी है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
नव नव गुंडे फिरते हैं अब
घोटाले ही करते हैं अब
चोरों की सत्ता है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
आतंकी अब मौज मनाते
नक्शल वादी फ़ौज बनाते
दहशत की संज्ञा है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
गंगा की धारा है निर्मल
यमुना भी बहती है कल कल
पुस्तक में ऐसा था भारत
जय जय…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments
Added by योगराज प्रभाकर on June 23, 2012 at 10:00am — 52 Comments
गीत:
लोकतंत्र में...
संजीव 'सलिल'
*
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
संसद में गड़बड़झाला है.
नेता के सँग घोटाला है.
दलदल मचा रहे दल हिलमिल-
व्यापारी का मन काला है.
अफसर, बाबू घूसखोर
आशा न शेष है.
लोकतंत्र में शोकतंत्र का
गृह प्रवेश है...
*
राजनीति का घृणित पसारा.
काबिल लड़े बिना ही हारा.
लेन-देन का खुला पिटारा-
अनचाहे ने दंगल मारा.
जनमत द्रुपदसुता का
फिर से खिंचा केश…
Added by sanjiv verma 'salil' on June 23, 2012 at 8:10am — 11 Comments
दिल मेरा तोड़ के इस तरह से जाने वाले।
बेवफ़ा तुझको पुकारेंगे ज़माने वाले॥
प्यार में खाईं थी क़समें भी किए थे वादे,
क्या तुझे याद है कुछ मुझको भुलाने वाले॥
झांक के देख ले अपने भी गिरेबाँ में तू,
उँगलियाँ मेरी शराफ़त पे उठाने वाले॥
सर झुकाये हुए कूचे से निकल जाते हैं,
हैं पशेमान बहुत मुझको सताने वाले॥
बाद मरने…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 22, 2012 at 9:30am — 16 Comments
बारिश का मौसम
काले काले मेघ
काली काली जुल्फों के सायों की मानिंद
टिप -टिप टिप- टिप
बूँदें गिरती है
भीगी भीगी जुल्फों से टूटे मोती से
भिगोती है तन
मेरी सानों को छूती…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 6:27pm — 9 Comments
Added by rajesh kumari on June 21, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
इश्क के मजबूत दरख्त में
शक की दीमक लग गयी है
यकीन के सब्ज पत्ते
पीले पड़ पड़ के
रिश्तों की ड़ाल से बेसाख्ता गिर रहे हैं
झूठ के तेज़ झोंके
दरख्त को जड़ से उखाड़ने की फिराक में हैं
सच की माटी जड़ों का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 11:09am — 9 Comments
प्यारे मित्रो हमारे लाड़ले बाबाजी आज चार दिन की विदेश यात्रा पर जा रहे हैं इसलिए अगली मुलाक़ात 25 जून को ही होगी, परन्तु जाते जाते भी बाबाजी से रहा नहीं गया . ये आपके समक्ष अपनी नई रचना परोसने के लिए मरे जा रहे हैं . इसलिए ओ बी ओ के मंच पर प्रस्तुत है यह नूतन तुकबंदी :
बड़े…
Added by Albela Khatri on June 21, 2012 at 8:12am — 15 Comments
सानिध्य में सुदूर हर बात से मजबूर
सजग चिंतित, विराग अनुराग !
प्रतिकूल मंचन, मुलाक़ात सज्जन
फिर वहीँ आचार विचार संचन !
दिशाहीन नाव, अथाह सागर
मस्ती तूफ़ान ज्यों यादगार मगर !
अद्वैत, असहाय , निरुपाय
कुमकुम की कली तेज धुप अलसाय !
मधुर मिलन फिर वही चिंतन
अनुराग अपार तेजधार बहाव !
धूमिल क्षितिज , कलरव
अभिनव राग हज़ार बार !
हरित निष्प्राण मंद वायु यार
…
Added by Raj Tomar on June 20, 2012 at 10:58pm — 12 Comments
नीम में लगती दीमक
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण
एक दूजे पे विश्वास नहीं
रिश्तों का प्रबल क्षरण
जुड़ने के आसार नहीं
घर घर छिड़ा अब रण
मीठा स्वप्न संसार नहीं
चन्दन लिपटत न भुजंग
शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 5:30pm — 14 Comments
जुम्मन अब्बू से बोला
दो पैसा बदलूँ चोला
निठल्लू जवान खाते गोला
सुधरो जल्दी तुमको बोला
पैसा न एक मेरे पास
कमाओ खुद छोडो आस
धंदा कोई न आता रास
बाजार करता न विश्वास
जेब कटी की सारी कमाई
पुलिस ले उडी भाई
युक्ती सुन्दर तुम्हे बताता
बन जा नेता का जमाता
अच्छी है ये तुम्हरी सीख
मांगनी पड़े अब न भीख
छुट भैया में बड़ा लोचा
करूँ धंधा कई बार सोचा
पनवाडी ने करा खाता बंद
सब बोले धंदा है मंद
माल मुफ्त अब…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु
जिसमे सराबोर रहते थे
इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,
कहाँ गई वो माटी की सुगंध
जिससे जुडी रहती थी जिंदगी
कहाँ गए वो आँगन
जिनमे हर रोज जलते थे
सांझे चूल्हे
जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी
जो परिचायक थी
उस घर की एकता और सम्रद्धि की
जिसमे खिल खिलाता था बचपन
लगता है वक़्त की ही
नजर लग गई…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 20, 2012 at 11:43am — 18 Comments
मेरे शहर की बारिश
लेकर आती है
ठंडी हवा के झोंकों में लिपटी
माटी की सोंधी खुशबू
बेसाख्ता बरसती बूँदें
समेटे प्यार दुलार भरी ठंडक
और तन बदन भिगोती
मन तक भिगो जाती है
लेकिन किसी को ये सब झूठ लगता है
क्यूंकि ये लेकर आती है
घरों की टपकती
छत की टप-टप
तेज़ हवा के झोंको से सरसराहट
दरवाजों पे आहट
बिरह की आग
सखी की याद
धुत्कार भरी तपिश
भिगोती है तन बदन…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 20, 2012 at 10:40am — 9 Comments
वो एक बड़ा अफसर है. अफसर है तो जाहिर सी बात है शहर में रहता है. पिता एक साधारण से किसान है. खेती करते हैं, सो गाँव में रहते है. अफसर बेटा अपने परिवार में बहुत व्यस्त है इसलिए गाँव जाकर पिता का हाल-समाचार लेने का समय नहीं है. बेटे से मिले बहुत दिन हो गए तो पिता ने विचार किया शहर जाकर खुद ही उससे मिल आया जाये. शहर में बेटे के रहन सहन को देख कर पिता बहुत खुश हुवे. अगले दिन गाँव वापस आने का विचार था लेकिन पोते-पोती की जिद से और रुकना पड़ा. एक - दो दिन तो ठीक ठाक बीत गए. किन्तु फिर बेटे के अफसरी…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on June 20, 2012 at 10:00am — 11 Comments
बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाई !
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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ
धरती अम्बर प्रकृति कहे
गोद उठा लो भेद भाव खो
सोन परी हिय मोद भरे !
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हहर-हहर…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:56am — 16 Comments
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