कब तलक यूँ ही गली-गली में सताई जाएँगी बेटियाँ
कभी ज़हेज़ तोकभी इज्ज़तको जलाई जाएँगी बेटियाँ
कब तलक दुल्हन बननेके लिए गैरतके खरीदारों को
सजा-धजाके किसी खिलौनेसी दिखाई जाएँगी बेटियाँ
माँ बहन बीवी और बेटी सभी हैं आखिरशतो बेटियाँ
फिर क्यूँ कब्रसे पहले हमल में सुलाई जाएँगी बेटियाँ
खुदा भी क्या सोचता होगा आलमेअर्श में बैठा- बैठा
अगले खल्कमें सिर्फ और सिर्फ बनाई जाएँगी बेटियाँ
अगर यूँ ही बेटियों को तआस्सुब से देखा जाएगा तो …
Added by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 11:50pm — 2 Comments
भीनी भीनी मीठी मीठी
मधुर सुगन्ध लिए
साहित्य विहार में बहार देवनागरी
बिखरी अनेकता को
एकता में जोड़ती है
तार तार से जुड़ी सितार देवनागरी
नेताजी,पटेल,लाला
लाजपत राय जैसे
क्रान्तिकारियों की तलवार देवनागरी
तुलसी,कबीर,सूर,
रहीम,बिहारी,मीरा,
रसखान से फूलों का हार देवनागरी
Added by Albela Khatri on June 26, 2012 at 11:00pm — 12 Comments
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
गिरने न दूंगा धरा मध्य
बाहों में ले उड़ जाऊँगा
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
मन के सूने आँगन में
मस्त घटा बन छायी हो
रीता था जीवन मेरा
बहार बन के आयी हो
जम के बरसो थमना नहीं
प्यासा न रह जाए ये…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:14pm — 1 Comment
कच्ची रोटी भी प्रेमिका की भली लगती है
बीबी अच्छी भी खिलाये तो जली लगती है |
बीबी हँस दे तो कलेजा ही दहल जाता है
प्रेयसी रूठी हुई भी तो भली लगती है |
नये - नये में बहु कितनी भली लगती है
फिर ससुर - सास को वो बाहुबली लगती है |
कलि अनार की लगती थी ब्याह से पहले
अब मैं कीड़ा हूँ और वो छिपकली लगती है |
फिर चुनी जायेगी दीवार में पहले की तरह
ये मोहब्बत सदा अनारकली लगती है |
इस शहर …
Added by अरुण कुमार निगम on June 26, 2012 at 9:14pm — 4 Comments
बहुत कुछ हमने पढ़ा है किताबों में
ज़िंदगी मगर नहीं समातीहै बाबों में
इत्मीनान हुए तो बेचैन हो उठे हम
सुकूंकी आदत होगई है इज्तेराबों में
बेपर्दा हुएतो पहचान न पाए तुमको
जोभी देखाहै वो देखा है हिजाबों में
तुम गएतो खराबातेइश्क उजड़ गया
नशा अब कहाँ बाकी रहा शराबों में
कारिज़ थे जो तेरे होगए हैं कर्ज़दार
न जाने चूक कहाँ होगई हिसाबों में
हमें धोखामिला उनसे जोथे मोतेबर
तुम सबात…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 9:00pm — 7 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 26, 2012 at 7:30pm — No Comments
भोपाल की इक सुबह...
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भोपाल की इक सुबह...जून का महीना और गर्मी का तेवर चढ़ा हुआ. किसी महानगर सी हलचल का कोई निशाँ नहीं. हाँ, इक छोटे, अलसाए से कस्बे के जीवन की मद्धम धड़कन की अंतर्ध्वनि कानों में आहिस्ता गूंजती, जैसे खामोशी अगर कभी बोलती तो यूँ बोलती. लताएं हल्के हलके अंदाज़ में सुस्त हवाओं के ताल पे डोलतीं, सडकों पे बेज़ार कुत्ते इधर उधर मुंह मारते, रुपहली धूप के गर्म होते साये मकानों पे फैलते- भोपाल की ये तस्वीर अद्भुत है. लोग कब घरों से निकल के दफ्तर…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:13pm — 2 Comments
महीनों बाद भोपाल के घर में बैठा एकांतप्रस्थ मेरा मन.....
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शाम इक दुल्हन की तरह सजी संवरी महक रही है. डूबते सूरज की लालिमा के घूंघट ने उसे और भी युवा बना दिया है, पीतवर्णी क्षितिज जैसे उसकी सुडौल बाहें हैं, सारी धरा इस दुल्हन की सौम्य काया, नीड़ों को लौटते पक्षियों का कलरव जैसे दुल्हन के आभूषणों की कर्णप्रिय ध्वनियाँ हैं, कोयल की आवाज़, जैसे दुल्हन की पाजेब की खनक. अस्तमान सूर्य के अर्धचन्द्राकार वलय से विकीर्ण…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:10pm — 2 Comments
दिन किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह है...
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दिन किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह है जिसपे हर सुबह हम सवार हो जाते हैं. रोज़ का बंधा बंधाया सफर सुब्ह से शाम तक का और फिर वापिस अपने अपने घरों में. सुबह की निकली ट्रेन दोपहर के स्टेशन आ चुकी है, कुछ थकी थकाई, सांसे थोड़ी ऊपर नीचे, चेहरे पे सफर की धूल और आँखों में रुकते-दौड़ते रहने की थकान. लोग अपने अपने मुकामों के प्लेटफोर्म पे उतर कर न जाने क्या ढूँढते रहते हैं, क्या कदो-काविश (भाग-दौड़) है, क्या कारोआमाल…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 6:00pm — No Comments
हज़ार जिगर को तेरे मिलने की चाहत हो
काम क्या बने जब न अपनी किस्मत हो
मैंने अक्सरहा रोटी और कपड़ों से पूछा है
ज़रूरतोंके दाफिएके लिए कितनी दौलतहो
क्यूँ अभीसे ही तू सूफियाना हुआ जाता है
ऐ दिल तुझे कोई ख्वाहिश कोई हसरत हो
हसरतों को लूटकर करते हो मिजाजपुरसी
दुआ है तुझेभी जूनूँ हो दर्द हो मुहब्बत हो
लो ऐलान करदिया कि आगए हैं बाज़ारमें
ज़िंदगी तवाइफ़ है मेरी, अबतो इनायत हो
ज़िंदगी भर रहे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:26pm — 4 Comments
जिन्दगी है उलझी तेरे तुर्रा -ए-तर्रार की तरह
और इतनी साफ़ कि पढ़लो अखबार की तरह
एहसासेतवाफ़ेरोजोशब ये सोना- जागना अपना
भटकते हैं दर- दर तम्सीलके किरदारकी तरह
आना ही था तो आ जाता जैसे नींद रातों को
तू ज़िंदगीमें क्यूँ आया फ़स्लेबेइख्तेयारकी तरह
तुझसे बिछड़नाभी हो गोया कोई कारेखुदकुशी
और तुझसे इश्क निभानाभी वस्लेनारकी तरह
दर्दकी दास्ताँ रहगई खतोंकी तहरीर की तरह
प्यार हमारा टूट गया मुंहबोले इकरारकी…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:06pm — 6 Comments
सोचने लगती हूँ तो लगता है जैसे कल की ही बात है, बारहवीं के पेपर देकर फ्री हुई तो खूब मस्ती हो रही थी | एक दिन मम्मी ने कहा “चल हेमा अजित भैया के घर चलते हैं, भाभी का फ़ोन आया था भैया कई दिनों से ऑफिस नहीं गए उनकी तबियत ठीक नहीं है | मैंने कहा चलो चलते हैं | मामाजी के यहाँ मुझे हमेशा अच्छा लगता था, बस उनकी एक ही आदत शराब पीने वाली मुझे अच्छी नहीं लगती थी | मैंने मम्मी से पूछा कि मामाजी क्या अब भी शराब पीते हैं |मम्मी…
ContinueAdded by savi on June 26, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
कुछ बातों की कोई इम्तेहा नहीं होती
होती है बस, कमोबेश वफ़ा नहीं होती
करो बहबूदीकी तमन्ना और भूलजाओ
जिसमें हो एहसान वो दुआ नहीं होती
माँ माँ होतीहै लहुलुहान होकर भी माँ
बच्चोंके लिए कभी आब्लापा नहींहोती
गरीबों केलिए ज़्यादा गिज़ा नहीं होती
अमीरों केलिए भूखकी दवा नहीं होती
अगर न होती भूल आदमोहव्वा से तो
रंगभरी और दुःखभरी दुनिया नहींहोती
काश कि औरत न होती रागिबेपैदाइश
और…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on June 26, 2012 at 5:00pm — 3 Comments
आग उगलते सूरज का रथ
दौड़ रहा था
अनवरत, अन्तरिक्ष पर
पीछे जन्म लेते
धूल के गुबार ने ढक
दिए सब वारि के सोते
कुम्भला गए दम घोंटू
गर्द में कोमल पौधों के पर
चिपक गए परिधान बदन से
हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ
उसके अश्वों के स्वेद सितारे
छितरा गए सागर की चुनरी पर
मिल गए खारे सागर की बूंदों से
जबरदस्त उबाल उठा
सागर के अंतर में
प्यासी धरा की आहें
कर बैठी आह्वान
मंथन से मुक्त होकर
उड़ चला वो वाष्पित आँचल…
Added by rajesh kumari on June 26, 2012 at 2:30pm — 15 Comments
कितनी महंगी रेल हो गई बाबाजी
पैसेन्जर भी मेल हो गई बाबाजी
आदर्शों को फांसी दे दी दिल्ली ने
नैतिकता को जेल हो गई बाबाजी
सुख के बादल बिखर गये हैं बिन बरसे
दुःख की धक्कमपेल हो गई बाबाजी
नकल हो रही पास आज विद्यालय में
और पढ़ाई फेल हो गई बाबाजी
आई पी एल की हाट में हमने देखा है
खिलाड़ियों की सेल हो गई बाबाजी
खादी वाले खड़े - खड़े खा जाते हैं
भोली जनता भेल हो गई बाबाजी
लोकराज ने लज्जा का…
Added by Albela Khatri on June 25, 2012 at 5:00pm — 41 Comments
मैं जानता हूं
आप कुछ नहीं कर सकेंगे
पढ़ कर, सोचेंगे थोड़ा
या हो सकता है
बिल्कुल भी नहीं देंगे ध्यान
सही भी है
आपकी भी अपनी हैं परेशानियां
ऐसे में मेरे लिए कहां होगा समय
लेकिन फिर भी बताता हूं आपको
अपने मन की बात
बहुत परेशान करती है
छोटी-छोटी बातें
हो कोई बड़ी समस्या
तो की जा सकती है तैयारियां
मांगी जा सकती है मदद
लेकिन क्या करूं
जब समस्याएं हो छोटी-छोटी और
फैला दूं हाथ - मांगू मदद
तब लगता है
आखिर अब मैंने क्या…
Added by Harish Bhatt on June 25, 2012 at 2:42pm — 9 Comments
हांग कांग की छटा है प्यारी बाबाजी
पर भारत की बात ही न्यारी बाबाजी
प्यार मिला, सम्मान मिला इस महफ़िल में
ओ बी ओ पर मैं बलिहारी बाबाजी
रूपया रोक न पाया ख़ुद को गिरने से
डॉलर ने वो बाज़ी मारी बाबाजी
ममता,ललिता,सुषमा तीनों गायब हैं
तन्हा रह गये अटल बिहारी बाबाजी
कौन बनेगा सदर हमारे भारत का
ये भी संकट है इक भारी बाबाजी
चाट पकौड़ी खाओ, किरपा आएगी
कहते बाबा लीलाधारी बाबाजी
'अलबेला' की इस…
Added by Albela Khatri on June 25, 2012 at 10:00am — 33 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on June 24, 2012 at 2:30pm — 22 Comments
मुक्तक काव्य "कमला "
मन वीणा को झंकृत करती, मीठा स्पंदन हो कमला
छंदों में रस वर्षा करती, रस अभिवंदन हो कमला
निर्झर की पावन झर झर तुम, हंसती हो सरगम जैसा
साधक है खुद स्वर तेरे तो, तुम स्वर गुंजन हो कमला
तन मलयागिर का चन्दन सा, मुखड़ा कुंदन है कमला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 10:40am — 7 Comments
ऐ गम ! जा के ढूंढ़ ले कोई दूसरा घर ,
Added by Ajay Singh on June 24, 2012 at 10:01am — 7 Comments
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