For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Coontee mukerji's Blog (41)

वह लड़की

वह लड़की!

मैं उसे बदलना चाहती थी

उसे पुराने खोह से निकालकर

पहनाना चाहती थी एक नया आवरण.

उसके बाल लम्बे होते थे

अरण्डी के तेल से चुपड़ी

भारी गंध से बोझिल

वह ढीली-ढाली सलवार पहनती थी

वह उस में नाड़ा लगाती थी

उसके नाखून होते थे मेँहदी से काले

एकाध बार सफ़ेद किनारा भी दिख जाता.

वह चलती थी सर झुकाये.

वह चुप रहती

मगर....उसके मन में सागर की लहरों

का सा होता घोर गर्जन.

आँखों में हरदम एक तूफ़ान लरजता

उसकी…

Continue

Added by coontee mukerji on July 22, 2014 at 9:12pm — 10 Comments

गा कोयल...

गा कोयल गा...

गीत प्रेम के

गा कोयल.....



मन के सुप्त तारों को जगा.

प्रकृति के वक्ष के आर-पार

अनु विस्फ़ोटक के सप्त स्वर में

अपनी गायन शक्ति भर

तीव्र सुर में गा कोयल......

ग्रीष्म की तपती धूप है

कर बादलों का आह्वान

बादल कुछ ऐसा बरसे

तरल हो धरती का कण-कण

निकले सीप से मोती

सुख-समृद्धि की बरसात हो

गा कोयल.....

बनी रहे आम्रतरु की जड़ें

वसंत में मंजरी खिली रहे

मिटे घर घर से मौत की…

Continue

Added by coontee mukerji on June 4, 2014 at 6:08pm — 10 Comments

तुम और मैं

तुम और मैं कितनी सदियों से

हाँ, कितने जन्मों से,

कितने चेहरे और रूप लिये

कभी भूले से, कभी अंजाने से.

एक युग में कभी तृण बन के

अमृत जल से बरसे कहीं,

नभ में तारे बन के चमके कभी

कितनी कहानियाँ सुनी अनसुनी रहीं.

किसका सफ़र था जो हवा बन के

गुज़र रहा था पात पात

एक गुलाब खिला था वन में

कुछ महक थी बसी मकरंद में.

एक एहसास था मन के कोने में

वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,

कितने बसेरे मिले थे…

Continue

Added by coontee mukerji on May 31, 2014 at 1:00pm — 9 Comments

गोधूली में

गोधूली में

बहुत ही कोमल स्वर में

दर्द से भरे हुए,

सूरज जब डूब रहा होता है

मैं जानती हूँ ज़िंदगी!

तुम मेरे लिये गाती हो.

छत से सूखे कपड़े उठाती हुई

बेचैन

मैं ठिठक जाती हूँ.

कुछ पल, कुछ अनबूझे सवाल

मंडराते हैं मेरे आस पास

चिड़ियों की तरह

जो दाना चुगकर, गाना गाकर

लौट जाते हैं अपने घोंसले में.

सांझ

रह जाती है कुँवारी

रात घिर आती है ज़मीं पर

गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध

और-

पसर जाता है सरसों के खेत…

Continue

Added by coontee mukerji on May 5, 2014 at 2:00pm — 10 Comments

तेरी कुएँ सी प्यास

तेरी कुएँ सी प्यास

तेरी अघोरी भूख

भिखारन, तू नित्य मेरे आँगन में आती

एक धमकी

एक चुनौती

तेरे आशीष में होती

घबराकर मैं तेरी तृष्णा पालती.

तू मेरी धर्मभीरूता को खूब पहचानती

और, मेरी सहिष्णुता का गलत मतलब निकालती.

‘’दे अपना हाथ तुझे उबार दूँ.’’

तूने तड़प कर दुहाई दी

अपने कुनबे की.

भिखारन! तेरे कितने नाज़

तेरे कुकुरमुत्ते से उगते परिवार

गोंद से चिपके तेरे रीति रिवाज़

छोड़ अब माँगने की परम्परा.

काम कर, कुछ काम कर…

Continue

Added by coontee mukerji on January 29, 2014 at 5:00pm — 18 Comments

शुभ नवल वर्ष

पूर्व संध्या की हुई विदाई

भाव भीनी भीनी

राजा जी का महल जागा

नव वर्ष की कर अगवानी

*

मंदिर का बजा घण्टा

ले टीका चंदन का

धूप दीप कर्पूर की आरती

पूरी घाटी महकी चंदन सी

*

सूरज अलसाता जागा

बादलों का मोह न छोड़ा

रहा दिन सोया सोया

सांझ पर न पहरा कोई

*

कुछ बुँदों की टीप टाप

पवन में सुर न जागा

आधि दुनिया में हो-हल्ला

आधि दुनिया खोयी खोयी.

*

कहीं आदि कहीं अंत

कहीं मातम कहीं खुशी

दक्षिणी…

Continue

Added by coontee mukerji on December 30, 2013 at 10:30pm — 17 Comments

चितवन

चितवन

1

सांझ की पड़ी चितवन कटारी

उतर आयी रात आंगन

बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास

रात की रानी महके

हरसिंगार की झूमर लहके

तारों की बरात लिये

आया कोई पुच्छल तारा

देख सुहानी रात मतवाली

पैरों बाँध घुँघरू

बिरहनी संग यह कैसा परिहास

2

बहक रहा चाँद

लहरों पर थिरक रही चाँदनी

सागर तट पर नाच रहा पवन

बाँध के पैजन

चट्टानों के गृह सखी

चल रहा सम्मोहन

बिन पिया कैसे हो हिय उल्लास

3

दूर गगन से

कोई…

Continue

Added by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:44pm — 12 Comments

मैं रात का एक टुकड़ा हूँ

मैं रात का एक टुकड़ा हूँ

मैं रात का एक टुकड़ा हूँ

आवारा

भटक गया हूँ शहर की गलियारों में.

जिंदगी सिसक रही है जहाँ

दम घोटूँ

एक बच्चा हँसता हुआ निकलता है

बेफ़िक्र, अपने नाश्ते की तलाश में.

सहमा रह जाता हूँ मैं मटमैले कमरों में.

(2)

मैं क्या करूँ

सूरज निकलता है

भयभीत होता हूँ पतिव्रताओं की आरती से

मुँह छिपाये मैं छिप जाता हूँ

कभी धन्ना सेठों की तिज़ोरी में तो

कभी किसी सन्नारी के गजरों में.…

Continue

Added by coontee mukerji on December 9, 2013 at 6:07pm — 21 Comments

अमर पुष्प

अमर पुष्प

कुछ बातें ऐसी थीं

कुछ ठहरी हुई कुछ चंचल

कुछ कही हुई

कुछ अनकही.

कुछ सपने

पलकों में थे बिखरे

ख्यालों की लम्बी दरिया में

कुछ बातें थी उपली.

मैं तुम्हें देखती थी

मुस्काते नयनों से

तुम भी देखते थे

पर रहते थे मौन.

तुम्हारे आस-पास

बन तितली उड़ती रहती

तुम्हारे हृदय का पट न खुला

मैं पहेली बूझ न सकी.

तुम्हारी चुप्पी ने

मेरे कितने सवालों को…

Continue

Added by coontee mukerji on November 30, 2013 at 2:39am — 20 Comments

उतर रही लक्ष्मी घर आँगन

उतर रही लक्ष्मी घर आंगन

सावन भादो बरस गये

हर्षित हुई अवनी.

नृत्य कर रही है वह खेतों में

धानी चुनरी पहन.

मिली किसानों को फ़सलों का सौगात

बीत गये अंधकार भरे दिन.

गा रही है हर सुबह

उषा, मृदु स्वर में असावरी.

उल्लसित है सब का मन.

कर पितरों को जल तर्पण

भगवती को सुगंधित अर्ध्य अर्पण

तुलसी बीरवा तले दीप जला

त्यौहारों का है मौसम

सखी! सतरंगी परिधान पहन

चल हाट! मोल ले चूड़ियाँ

सिंदूर टिकुली मेहेंदी महावर

और…

Continue

Added by coontee mukerji on November 2, 2013 at 5:07pm — 12 Comments

बचपन, पंछी और किसान

बचपन, पंछी और किसान

बचपन

अकेला बचपन,

न कोई संगी न साथी.

मुँह अंधेरे माता पिता घर से निकल जाते,

कर जाते मुझे आया के हवाले;

शाम को वे घर आते थके मांदे,

मैं रूठती अभिमान करती

तब पिता बड़े प्यार से कहते-

‘’बेटे! हम काम करते हैं तुम्हारे ही

उज्ज्वल भविष्य के वास्ते.’’

पंछी

सूनी आँखें ताक रही थीं

सूना आकाश,

बंद मुट्ठी में भुरभुरी हो कर,

बिखर रहे थे ज़मीन पर,…

Continue

Added by coontee mukerji on July 24, 2013 at 1:32pm — 6 Comments

मेरी पाती

मेरी पाती

मेरे नन्हे नन्हे पाँव,

पगडंडियों पर लम्बी दौड़,

पलकों में तिरती सुनहरी तितली,

फूलझड़ी से सपने -

सखी ! आज मैं उन सपनों को

मैके के झरोखों में टाँक आयी हूँ.

नभ का विस्तार,

धरती अम्बर का मिलन,

झिलमिल तारे पुँज,

सब मुझे लुभाते -

सखी ! मैं सितारों की चुनरी ओढ़

बाबुल का आकाश छोड़ आयी हूँ.

समुद्र की उत्ताल तरंगें,

रेत पर खींची लकीरें,

मेरे चुने हुए रंगीन सीपों का झुरमुट -…

Continue

Added by coontee mukerji on July 22, 2013 at 2:14am — 17 Comments

प्रकृति का नर्तन

प्रकृति का नर्तन

(उत्तराखण्ड आपदा के संदर्भ में)

हमने भी देखा है,

माथे पर स्वर्ण-टीका लगाये

संध्या को,

शैल-शिखरों पर अभिसार करते हुए.

देवदार कुछ लजीले, कुछ शरमाए

चीड़ चंचल उत्पात करे,

मौन इशारे करते कुछ बहके -

देखा है रात ने,

भँवरे को कमल संग रमन करते हुए.

प्रातः मधुरस लिये भँवरा

गुँजन करता चमन चमन,

इस कान में कुछ स्वर

उस सुमन को देता कुछ मकरंद.

सौगात बाँटता वन उपवन…

Continue

Added by coontee mukerji on July 6, 2013 at 12:30pm — 4 Comments

कैलकुलेटर

कैलकुलेटर

‘’सुनती हो बेगम! सोने का दाम मार्केट में बहुत गिर गया है’’

‘’तो मैं क्या करूँ मियाँ?’’

‘’अजी बेगम जल्दी से तैयार हो जाओ ,मार्केट चलते हैं आज तुम्हें सोने से लाद दूँगा’’

‘’क्या.....?’’ राधा मुँह बाये हाथ में करछी पकड़े पति के पास आयी जो बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था.

‘’क्या कहा आपने? मुझे सोने से लादोगे? एक जोड़े कंगन के लिये तो सारी जिंदगी तरस गयी.’’ इतना कहकर राधा अपनी नाराज़गी जताती हुई दुबारा रसोईघर में चली गयी.

महिपाल पत्नी को मनाने के लिये उसके…

Continue

Added by coontee mukerji on June 30, 2013 at 9:24pm — 16 Comments

यह घर तूम्हारा है

यह घर तुम्हारा है

1

फूलों के हिंडोले में बैठ कर

घर आयी पिया की ,

तमाम खुशियों और सपनों को ,

झोली में भर कर .

दहलीज़ पर कदम रखते ही

मेरे श्रीचरणों की हुई पूजा

चूल्हे पर दूध उफ़न कर कहा –

‘’ बधाई हो ! लक्ष्मी का घर में आगमन हुआ है ‘’

सबने शुभ शकुन का स्वागत किया .

बड़े जनों ने कहा – ‘’ आज से यह घर तुम्हारा है .’’

कुछ दिनों बाद -

मेरी कल्पनाओं ने उड़ान भरनी चाही

सपनों ने अपने पंख फैलाये

तब –

उड़ने को मेरे पास आकाश…

Continue

Added by coontee mukerji on June 27, 2013 at 5:24pm — 19 Comments

मैं नदी

मैं नदी –

पहाड़ों से उतरी,

उन्मुक्त बहती

कल कल करती मतवाली

मैं नदी -

गाँव खलिहानों से होती

बच्चों की किलकारियों सी,

खेतों में ठुमकती

मैं नदी -

सरदी की धूप,

षोडसी की चोटी सम लम्बी

लहराती इठलाती बलखाती

मैं नदी जो कभी थी.

2

समय का बदलता रूप -

हाइटेक का ज़माना,

तरक्की की चरमसीमा,

बलिदान स्वरूपा

मैं नदी अधुना.

झुलसती गरमी

बीच शहर,

कूड़े का ढेर

अछूत सी पड़ी,

मैं नदी…

Continue

Added by coontee mukerji on June 22, 2013 at 3:05am — 15 Comments

आकाशदीप

आकाशदीप
‘’ आओ ! आओ ! मेरे पास आओ ! ! ‘’
हर शाम आकाश का निमंत्रण आता ,
उसे पाने का हर सम्भव प्रयास ,
साम दाम दण्ड भेद मैंने अपनाया .
मन की तृष्णा कहूँ या कमज़ोरी ,
सबने उन्नति कह स्वागत किया .
मेरे रास्ते में अनेक तारेपुंज थे ,
पर आजीवन एक ही लक्ष्य है साधा .
आकाशदीप पाने हेतु पथ में ,
कितने तारे टूटे कितने हुए धूल ,
आया भी हाथ में एक बुझा दीपक ,
लोभ में नष्ट हुआ जीवन समूल .
( मौलिक व अप्रकाशित रचना )

Added by coontee mukerji on June 10, 2013 at 11:13am — 1 Comment

दान का माहात्म्य

दान का माहात्म्य

मैं बचपन से अपनी माँ के साथ प्रवचन संकीर्तन में जाती थी . वहाँ दान की महिमा खूब गहराई से

समझायी जाती थी . मुझे ईश्वर भक्तों पर अपार श्रद्धा होती . बड़ी होकर जब मैं कमाने योग्य हुई तब अपने वेतन के पैसों का एक हिस्सा दान कर देती . बहुत जल्द ही मैं मशहूर हो गयी . आये दिन भक्तों का मेला मेरे घर में लगा रहता . उनकी सेवा कर मैं धन्य हो जाती .

मेरे गाँव में ISKCON ने भव्य मंदिर के साथ एक आश्रम बनाया . उसमें बहुत सारे भक्त रहने लगे . वहाँ दान की प्रक्रिया खूब चलती .…

Continue

Added by coontee mukerji on June 6, 2013 at 10:05pm — 8 Comments

ख्वाबों के दिन

ख्वाबों के दिन

ख्वाबों के दिन

कब मन को तड़पाते नहीं !

सुबह की पहली किरण

जब खिड़की पर थाप देती,

चिड़ियों की चहचहाहट से

जब खुलती हैं आँखें -

ज़िंदगी एक नयी करवट लेती हुई

बिस्तर की सलवटों पर

सिकुड़ी सिमटी सी , क्यों

तटस्थ हो जाती है ?

वक़्त का हर पल

एक सुनहरा ख्वाब दिखलाता है.

कुछ सपनों के दिन,

कुछ अधूरी रातें,

खुले नैनों के द्वार से

कहाँ दौड़े चले जाते है ?

एक कसमसाहट सी होती है -

अंगड़ाई…

Continue

Added by coontee mukerji on June 3, 2013 at 10:21pm — 11 Comments

अचानक



उस दिन अचानक

न मैंने कुछ सोचा था ,

न वक्त ने कुछ तय किया था .

आकाश भी नीला था

उसने भी तो कुछ सोचा नहीं था -

फिर राह में आ गया बादल

हम आपस में टकरा गये

न उसने कुछ कहा

न मैंने कुछ कहा .

हवा धीरे धीरे बह रही थी ,

मुझे देख ठिठक गयी ,

पर, मैं अभिमानिनी ,

जैसे कुछ सुनने की अपेक्षा ही नहीं .

कुछ दूर चल कर बादल रूका ,

वह चाहता था मुझसे कुछ सुनना ,

पर , मैंने कुछ न कहा.

एक अंतराल बाद

जिसमें समय की…

Continue

Added by coontee mukerji on May 31, 2013 at 4:00pm — 14 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service