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Akhand Gahmari's Blog – June 2014 Archive (5)

गजल सितम देखो

हमें वो वेवफा कह कर बुलाते है सितम देखो

चुरा कर नीद रातो की सताते है सितम देखो



कभी मै देखता भी तो नहीं था जाम के प्‍याले

कसम दे कर मुझे अपनी पिलाते है सितम देखो



बडे अरमान से जिसने  बनाया आशिया मेरा

वही उस आशिये को अब जलाते है सितम देखो



न रूठे वो कभी हमसे हमारे साथ चलते थे

मगर अब साथ गैरो का निभाते है सितम देखो



खुले जो लब कभी जिनके हमारा नाम ही निकले

न जाने क्‍यो वही हमको भुलाते है सितम देखो

मौलिक व…

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Added by Akhand Gahmari on June 30, 2014 at 8:00am — 19 Comments

बनाया था महल मैनें गजल

1222 1222 1222 122

हमारे प्‍यार को वो अब निभाती भी नहीं है

जलाये क्‍यों हमारा दिल बताती भी नहीं है

लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी

कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है

बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो

पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है

बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्‍दगी में

मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है

करें किससे शिकायत जिन्‍दगी की हम बताओ

कभी भी प्‍यार से मुझको बुलाती भी नहीं है

मौलिक व अप्रकाशित अखंड…

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Added by Akhand Gahmari on June 16, 2014 at 2:09pm — 17 Comments

खोने नही़ं देती

1222   1222  1222   1222



किसी की याद रातो मे हमें सोने नहीं देती

कसम उसने दिया था जो हमे रोने नहीं देती



चली थी साथ मेरे जो कभी इक हमसफर बन कर

न जाने पास अपने क्‍यों हमें होने नहीं देती



सिखाया था हमें जिसने जमाने में रहें कैसे

वही अब प्‍यार भी हमको वहाँ बोने नहीं देती



नहीं है प्‍यार मुझसे अब मगर नफरत जरा देखो

किसी को लाश भी मेरी वो अब ढोने नहीं देती



हमारे गीत में छुपकर हमेशा जो चली आती

बने आवाज दिल की वो हमें खोने…

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Added by Akhand Gahmari on June 15, 2014 at 1:30am — 5 Comments

आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं

सोचते ही रहे खेत जोता नहीं

प्‍यार के फूल क्‍यों कोई बोता नहीं



लुट गई देख अबला कि अस्‍मत यहाँ

शर्म से कोई आँखे भिगोता नहीं



तोड़ कर कोई जाता न दिल प्‍यार में

साथ अपनो का अब कोई खोता नहीं



सोच हैरान क्‍यों रोज इज्‍जत लुटे

चैन की नी़ंद क्‍यो़ं कोई सोता नहीं



क्‍या भरोसा करें हम किसी का सनम

आदमी आदमी का ही होता नहीं



बात में बात सबकी मिलाता रहूँ

आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं

मौलिक एवं…

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Added by Akhand Gahmari on June 7, 2014 at 6:30pm — 3 Comments

कुहरा धना है गजल तरही गजल

2122 2122 2122

मत कहो आकाश में कुहरा धना है

जाल धुमते बादलो ने बस बुना है



धूप की चादर अभी फैली फिजा में

चाँदनी को चाँद से मिलना मना है



भूल से भी हम न तड़़पाये तुझे थे

दे गवाही आज वो तेरा अना है



फूल भी रोने लगे तब से चमन में

रौद देगा माली ही जब से सुना है



नींद भी तब से नहीं आती किसी को

आदमी शैतान ही जब से बना है



आज ये सुन  शर्म खुद रोने लगा क्‍यों

औरतो ने राह पर  बच्‍चा जना है



मौलिक एवं…

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Added by Akhand Gahmari on June 1, 2014 at 1:00am — 13 Comments

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