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ये जो इंसान आज वाले हैं (एक ही रदीफ़ पर दो गज़लें ---'राज')

2122  1212  22

(१)

 ये जो इंसान आज वाले हैं

कुछ अलग ही मिजाज वाले हैं

 

रास्तों पर अलग अलग चलते  

एक ही ये समाज वाले हैं

 

दस्तख़त से बनें मिटें रिश्तें   

कागजी ये रिवाज वाले हैं

 

रावणों की मदद करें गुपचुप

लोग ये रामराज वाले हैं

 

रोज खबरों में हो रहे उरियाँ

ये बड़े लोकलाज वाले हैं

 

मुंह छुपाते विदेश में जाकर  

जो  बड़े कामकाज वाले हैं

 

भूख होती है क्या वो क्या जानें   

वो जो  मोटे अनाज वाले हैं

 

 

(२ )

 

काम तो चालबाज़  वाले हैं

नाम  उनके फ़राज़ वाले हैं

 

आज फलफूलते वही रस्ते

वो भले  एतराज़  वाले हैं

 

अब परस्तार भी बटे देखो

ये भजन ये नमाज़  वाले हैं

 

कश्तियों को न रास्ता देते

ये जो चौड़े जहाज़  वाले हैं

 

कारनामे छपें सदा जिनके

वो कहें हम लिहाज़ वाले हैं 

 

देश भर में अलापते फिरते

खोखले वो जो साज़ वाले हैं

 

काम  यकदम करें भला कैसे  

उनके ओहदे तो नाज़ वाले हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2017 at 11:13pm
आदरणीया राजेश जी दोनों ही ग़ज़लें शानदार हैं सादर बधाई के साथ
Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 11, 2017 at 12:20pm

आदरणीया  rajesh kumari जी,
बेहतरीन व्यंग्य, हकीकत बयां करतीं शानदार ग़ज़लों के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा |  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 10, 2017 at 8:01pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीया
ये जो इंसान आज वाले हैं
कुछ अलग ही मिजाज वाले हैं..बेहतरीन मतला

अब परस्तार भी बटे देखो
ये भजन ये नमाज़ वाले हैं..बहुत ही उम्दा शेर..
Comment by Mohammed Arif on August 10, 2017 at 2:39pm
दस्तख़त से बनें मिटें रिश्तें
कागजी ये रिवाज वाले हैं । सच है, सच है । रिश्तों की बुनियादें कहाँ टिकी हैं आप हम सब जानते हैं
रावणों की मदद करें गुपचुप
लोग ये रामराज वाले हैं। सच है मोहतरमा । आजकल देश में राम जी के नाम का तवा बहुत गरम है । चाहे जो रोटियाँ सेंक रहा है राम के नाम पर ।
मुंह छुपाते विदेश में जाकर
जो बड़े कामकाज वाले हैं । आज देश के जितने भी आर्थिक लुटेरे हैं वे सब विदेशों में ऐश कर रहे हैं । हिजड़ी सरकार उनके आगे तालियाँ बजा रही है ।
देश भर में अलापते फिरते
खोखले वो जो साज़ वाले हैं । बहुत ख़ूब!बहुत ख़ूब !! आजकल देश में ऐसे ही साज़ बज रहे हैं मोहतरमा ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा । ऐसे नवप्रयोगधर्मिता का परिचय देती रहे ।
Comment by नाथ सोनांचली on August 10, 2017 at 1:10pm
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, दोनों ग़ज़लें शानदार हुई हैं,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Ravi Shukla on August 10, 2017 at 12:48pm

आदरणीया राजेश जी , दोनों गज़लें अच्छी हुईं है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Gajendra shrotriya on August 9, 2017 at 10:05pm
//अब परस्तार भी बटे देखो
ये भजन ये नमाज़ वाले हैं//
वाहह!क्या बात है!
अच्छे अशआर कहे हैं आदरणीया राजेश कुमारीजी । बहुत बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 9, 2017 at 6:42pm

आदरणीया राजेश जी , वाह वा ! दोनों गज़लें अच्छी हुईं है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on August 9, 2017 at 6:26pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,दोनों ग़ज़लें शानदार हुई हैं,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2017 at 6:10pm
बेहतरीन कटाक्ष करती, हक़ीक़त बयां करती दोनों शानदार ग़ज़लों के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी। अपनों में ही छिपे व दिखाई दे रहे स्वार्थी/ढोंगी/अवसरवादी/अमानवीय/दानवी या विभीषण जैसे लोगों पर करारे कटाक्ष करते अशआर की लड़ियां बार-बार पढ़ने और ज़ोर-ज़ोर से सुनाने को मन कर रहा है। सादर।

शेख़ शहज़ाद उस्मानी
(९-८-२०१७)

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