एक राजा के राज्य मे जब प्रजा का असंतोष चरम पर पहुंच गया और साम्राज्य की रक्षा करना असंभव लगने लगा तो वह जंगल मे महात्मा की शरण मे जा पहुंचा ।
"महात्मा ! विकट परिस्थिति है । उपाय बताएं ।" राजा ने हाथ जोङकर महात्मा से विनती की ।
"उपाय तो आसान है राजन ।" महात्मा ने कहा "तेरे राज्य की कौनसी सीमा सबसे ज्यादा अशांत है ?"
"कोई नही ! मेरे तो सभी पङोसी राजाओं से मधुर संबंध है । इससे बाहरी आक्रमण से देश सुरक्षित रहता है ।" राजा ने उत्तर दिया ।
"तू मूर्ख है राजन ! पङोसी देशों से संबंध मधुर हों तो देश सुरक्षित रहता है । देश की जनता सुरक्षित रहती है । लेकिन जब देश की जनता सुरक्षित रहती है, तो राजा सुरक्षित नहीं रहता । खूब अच्छी तरह समझ ले राजन यदि देश के सामने कोई समस्या नहीं होगी तो देश तेरे शासन को क्यों बर्दाश्त करेगा । इसलिए हर महान शासक लगातार युद्ध करता रहता है । इससे देश की जनता पर बोझ ज़रूर बढ़ता है लेकिन राजा का साम्राज्य सुरक्षित रहता है । सत्ता सुरक्षित रहती है ।"
"मै समझ गया महाराज ।" राजा ने कहा ।
दूसरे दिन देश की एक सीमा पर स्थित खेतों में पङोसी देश की सेना ने आग लगा दी और कई सैनिक छावनियो को भी जला दिया । देश की जनता क्रुद्ध हो उठी और सबसे ज्यादा क्रुद्ध राजा हुआ । युद्ध छिङ गया । प्रजा मे अद्भुत उत्साह अद्भुत देशप्रेम देखने मिला । सेना ने बढ़ चढ़कर युद्ध में भाग लिया । प्रजा ने अपनी सम्पत्ति, अपनी श्रेष्ठ संताने युद्ध को समर्पित कर दी । सेना ने अपने श्रेष्ठ वीर सैनिक गंवाए । किसानो की कीमती उपजाऊ जमीन बंजर हो गई । लेकिन राजा को प्रजा का अभूतपूर्व समर्थन प्राप्त हुआ । देश की हानि अवश्य हुई किंतु राजा का साम्राज्य सुरक्षित हो गया ।
". . . तो भक्तों ! जिस शासक को अपनी सत्ता सुरक्षित रखनी हो, उसे चाहिये देश को युद्ध मे झोंकता रहे. . ." इतना कहके महात्मा ने अपना प्रवचन पूरा किया ।
***
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Comment
युद्ध और साम्राज्य
kahani bahut achchi lagi
हार्दिक बधाई..
जनाब मिर्जा हाफ़िज़ साहिब सादर अभिवादन। उम्दा लघुकथा लिखी आपने। बहुत बढ़िया लगा। बहुत बहुत बधाई आपको। सादर
जनाब मिर्ज़ा हाफ़िज़ साहिब ,उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
आदरणीय हफ़ीज़ साहब, इस सशक्त लघुकथा के लिए. हार्दिक बधाई.
किस्सागोई की शैली ने इसे अतिरिक्त धार और खूबसूरती दी है.
सादर
जनाब मिर्ज़ा हफ़ीज़ बैग साहिब आदाब,बहुत अर्से बाद आपकी रचना के दर्शन हुए,कहाँ थे भाई?
बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें ।
बहुत ख़ूब.... शुक्र है महत्मा ने भक्तो कहा... मितरों sssss नहीं ;)
सादर
वर्तमान देश के कईयों चुप्पी साधे बुद्धिजीवियों के दिल का दर्द और मन की बात आपने बेहतरीन कथा में शाब्दिक किया है कड़वा सच। सदियों से चली आ रही परम्परा। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग़ साहिब।
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