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वाह मोहतरम मसऊद साहिब, बेहतरीन ग़ज़ल हुई दिली मुबारक़बाद कुबूल फरमाएँ
आद0 हाफिज मसूद जी सादर अभिवादन। आपके हवाले से एक बेहतरीन ग़ज़ल मिली पढ़ने को। शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल कीजिये
वाह हाफिज साहब रह वो ऐसी दिखा गया बहुत बेहतरीन गजल बधाई कुबूल कीजिए
आ. भाई हफिज मसूद जी, उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
आदरणीय हाफ़िज़ मसऊद साहब, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
दाग़ आने लगे नज़र खुद ही ।
आईना वो दिखा गया है मुझे ।।
आदरणीय हाफ़िज़ मसूद मुहम्मदाबादी जी, आपकी एक अच्छी ग़ज़ल से आयोजन भी आबाद हुआ. दिली दाद क़बूल करें>
सादर
मह्मुदाबादी साहब मुबारबाद पेश करता हूँ बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है |
आदरणीय महमूदाबाद साहब। बेहतरीन गजल के लिए बधाइयाँ।
दाग़ आने लगे नज़र खुद ही ।
आईना वो दिखा गया है मुझे ।।.....इस अशआर पर खास दाद कबूल फरमायें।
//रह वो ऐसी दिखा गया है मुझे।
ढ़ंग जीने का आ गया है मुझे।।//
जनाब हाफ़िज़ साहब, आपकी ग़ज़ल में शेर दर शेर धीरे धीरे उतरता चला गया, अच्छी ग़ज़ल कही है. बहुत बहुत बधाई। तनिक रह को लेकर भ्रम है, क्या राह को रह कहने में कोई विशेष उद्देश्य है क्योंकि राह के साथ भी मिसरा हो सकता था। ..
राह ऐसी दिखा गया है मुझे।
मोहतरम हाफ़िज़ मसऊद साहब ..इस मुरस्सा कलाम के लिए ढेर सारी मुबारकबाद कबूल फरमाइए ..दुसरे शेर में ताकाबुले रदीफ़ का ऐब है ..नज्रेसानी करलें|
दाग़ आने लगे नज़र खुद ही ।
आईना वो दिखा गया है मुझे ।। वाह! वाह!! बहुत ख़ूब ! लाजवाब शे'र ।
.शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आदरणीय हाफ़िज़ मसूद जी ।
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