साथियों,
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आद० उस्मानी जी अच्छी ग़ज़ल कही है आद० समर साहब की बात संज्ञान में लें बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, यह अभ्यास सतत बना रहे .. प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीय उस्मानी साहब, बेहतरीन गजल। बधाइयाँ।
आ. भाई शेख शहजाद जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब शेख शाहजाद उस्मानी साहब अच्छे अशआर कहे हैं ..मेरी तरफ से दिली दाद कबूल कीजिये|
ग़ज़ल पर भी कलम चला ही दी आपने आदरणीय शहजाद भाई| हार्दिक बधाई |
आदरणीय उस्मानी साहब. अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
आ० शेख शहजाद उस्मानी जी ग़ज़ल कहने के लिए बधाई स्वीकार करें
आद0 शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। मुशायरे में आपकी प्रतिभागिता देख सुखद अनुभव हुआ। बढिया प्रयास है ग़ज़ल का। बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय उस्मानीजी,गजल के लिए बधाई।गुणीजनों की सलाह पर गौर करें।
जनाब उस्मानी साहब, सुन्दर प्रयास है, अभी और समय दीजिये, ग़ज़ल तनिक कसावट चाह रही है, इस सद्प्रयास पर दिल से बधाई।
ज़ख्म कुछ यूँ दिखा गया है मुझे
इक ग़ज़ल वो सुना गया है मुझे |
था जो पत्थर मेरी नज़र में कभी
वो मुहबब्त सिखा गया है मुझे |
क़ाबू ख़ुद पे मेरा बहुत है मगर
हद से ज़्यादा तू भा गया है मुझे |
जागना ,रोना,दर्द , आँसू ,तड़प
क्या था मै ,क्या बना गया है मुझे |
ज़िन्दा भी रहना है , जुदा हो के भी
बस यही डर तो खा गया है मुझे |
चाहे जिस हाल में तू रख ऐ ख़ुदा
सब्र करना तो आ गया है मुझे |
मौलिक अप्रकाशित
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