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कितने तल्ख हैँ लम्हे
तेरे प्यार के वगैर
यह ग़म की आंधियां
यह तीरगी के साये
जैसे कोई ख़लिश
हो हवाओँ मेँ..
डसती हैँ मुझको पल-पल
पुरवाइयां
तेरी यादोँ की
बे रंग सी लगती है
ज़िंदगी अब तो
कुछ भी तो नहीँ जैसे
इन फिज़ाओँ मेँ...बिन तेरे!
(मौलिक व अप्रकाशित)
__आबिद अली मंसूरी
जब चले थे कभी
Posted on November 9, 2016 at 10:25pm — 4 Comments
तुमसे ही तो है
Posted on November 5, 2015 at 9:00pm — 8 Comments
Posted on November 5, 2015 at 1:23pm — 11 Comments
कौन सुनता है
Posted on November 3, 2015 at 8:30pm — 18 Comments
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आपसे मित्रता मेरे लिए हर्ष की बात है। हार्दिक धन्यवाद।
thank u .....
आदरणीय आबिद जी आपका हार्दिक आभार !