Added by Lata R.Ojha on January 9, 2011 at 10:30pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on January 9, 2011 at 7:31pm — No Comments
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on January 8, 2011 at 7:20pm — No Comments
कभी कभी आधी बात सुनाने के बाद वही स्थिति हो जाती हैं , जो गुरु द्रोणाचार्य की हुई थी , उन्होंने सुना अश्वस्थामा मारा गया बाकि शब्द शंख के आवाज में दब गए , और वह समझे उनका बेटा मारा गया और इसी अघात में वह भी मारे गए , आजकल ऐसा ही हो रहा हैं लोग बाग पूरे शब्द को सुन नही रहे और आधे पे अर्थ को अनर्थ बना दे रहे हैं !
एक माँ बाप की एक ही लड़की थी , उसकी माँ औलाद (लड़का) नहीं होने के कारण रो रही थी और बेटी उसे सांत्वना दे रही थी , माँ मैं दुनिया की उस सोच को ख़त्म कर दूंगी की…
ContinueAdded by Rash Bihari Ravi on January 8, 2011 at 3:00pm — No Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 7, 2011 at 8:52pm — 2 Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 6, 2011 at 6:12pm — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on January 6, 2011 at 5:19pm — No Comments
Added by रंजना सिंह on January 6, 2011 at 1:08pm — No Comments
चुन-चुनकर भॆजा जिन्हॆं,निकलॆ नमक हराम !
सिसक रही हर झॊपड़ी, मंत्री सब बदनाम !!
मंत्री सब बदनाम, शहद घॊटालॊं की चाटी !
है गंदा इनका खून, नियत गंदी परिपाटी !!
भारत भाग्य विधाता ,भारत की अब सुन !
हॊ परसुराम अवतार, इन्हॆं मारॆ चुन चुन !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:31am — No Comments
बापू जब सॆ आपकी,पड़ी नॊट पर छाप !
पड़ॆ-पड़ॆ अब जॆब मॆं,करतॆ रहॊ विलाप !!
करतॆ रहॊ विलाप, तुम बंद तिजॊरी मॆं,
शामिल हॊ गयॆ आप,यहाँ रिश्वतखॊरी मॆं,
सत्य-अहिंसा साधक,हॆ राम नाम कॆ जापू
दॆश हुआ आज़ाद ,क्यूँ बिलख रहॆ हॊ बापू !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:29am — No Comments
नॆता खायॆं खीर अरु ,जनता चाटॆ पात !
लॊकतंत्र की छाँव मॆं,अजब निराली बात !!
अजब निराली बात, न अर्थ दिमाग मॆं चढ़तॆ,
है घायल संविधान, अनुच्छॆद संसद मॆं सड़तॆ,
सहनशीलता धन्य लात, गाली, जूतॆ सह लॆता !
निर्लज्ज नमक-हराम भ्रष्ट हैं आज कॆ नॆता !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:27am — No Comments
डाला डांका दॆश मॆं ,खुली लूट पर लूट !
पकड़ॆ गयॆ सुयॊग सॆ,आयॆं फ़ौरन छूट !!
आयॆ फ़ौरन छूट,पहुँच इनकी ऊपर की,
बात-बात मॆं खात कसम झूठी रघुबर की,
एक सॆ बढ़कर एक यहाँ नित नया घॊटाला !
अजब लुटॆरॆ मॆरॆ दॆश कॆ,घर मॆं डांका डाला !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:24am — No Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:20am — No Comments
Added by praveena joshi on January 5, 2011 at 9:01pm — 2 Comments
Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:08pm — No Comments
Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:07pm — No Comments
Added by satish mapatpuri on January 5, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है
चार पैसा उसे हुआ क्या है
पूछता फिर रहा खुदा क्या है |
हर जगह तो यही करप्शन है
रोग बढ़ता गया दवा क्या है |
तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |
तेरे जाने पर अब ये…
ContinueAdded by Abhinav Arun on January 5, 2011 at 4:16pm — 12 Comments
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