शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
हमने जिसको अपना समझा, पीठ मे खंजर उसने घोपा है।
आज बता दो उनको की, अब ये आखिरी धोखा है।
अब फूल नही हाथो मे तलवार हमे उठाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो…
Added by बसंत नेमा on January 18, 2013 at 3:30pm — 7 Comments
इंसानो की बस्ती
हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,
लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।
इंसानियत दफन हो गई, हैवानियत सब पे भारी है,
आत्मा है गिरवी सबकी, बेईमानो कि साहूकारी है,
बहता है लहु सडको पर, पानी की बुँदे बिकती है
लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।
नारी ही नारी की आज, दुश्मन बन के बैठी है,
बच गई कोख मे तो, आग के हवाले…
ContinueAdded by बसंत नेमा on January 4, 2013 at 4:30pm — 4 Comments
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