चाहे करता भाग्य ही, जीवन भर संयोग
उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।
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सद्कर्मों की चाल से, माता देकर त्राण
गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।
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कर्म भाग्य दोनों रहें, जब बन पूरक रोज
पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।
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सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान
उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।
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गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क
या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।
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गर्भ काल सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2025 at 1:30pm — No Comments
तेरी बात अगर छिड़ जाती
जाने तुमको क्या क्या कहता
सूरज चंदा तारे उपवन
झील समंदर दरिया कहता
कहता तेरे होंठ गुलाबी
जैसे सूरज निकल रहा है
कहता बदन तुम्हारा ऐसा
जैसे सोना पिघल रहा है
मै तुमको सम्मोहक कहता
मै मनभावन रत्ना कहता
कहता तेरा रूप बहारों
की तरुणाई के जैसा है
और बदन, कहता संगमरमर
सी चिकनाई के जैसा है
तुमको पूनम की रातों का
जगमग जगमग चंदा कहता
तेरे…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 7, 2025 at 8:30pm — No Comments
बेटी को बेटी रखो, करके इतना पुष्ट
भीतर पौरुष देखकर, डर जाये हर दुष्ट।१।
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बेटा बेटा कह नहीं, बेटी ही नित बोल
बेटा कहके कर नहीं, कम बेटी का मोल।२।
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करती दो घर एक है, बेटी पीहर छोड़
कहे पराई पर उसे, जग की रीत निगोड़।३।
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कर मत कच्ची नींव पर, बेटी का निर्माण
होता नहीं समाज का, ऐसे जग में त्राण।४।
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बेटी को मत दीजिए, अबला है की सीख
कर्म उसी के गेह से, रहे चाँद तक चीख।५।
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बेटों को भी दीजिए, कुछ ऐसे सँस्कार
बेटी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2025 at 1:27pm — No Comments
नाम भले पहचान है, किन्तु बड़ा है कर्म
है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।
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महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर
नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।
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नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास
पुण्य कर्म आशीष को, गंगा माई पास।३।
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केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास
सूरज जैसा कर्म ही, देता नाम उजास।४।
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दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव
किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।
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लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2025 at 5:40pm — No Comments
चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया
जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया
जरा सोचो कभी झगड़े भला करते किसी का क्या
कभी बारूद या गोले बसा पाए किसी को क्या
तबाही ही तबाही है दिखाने को वही आया
जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया
मतों का भिन्न हो जाना सही है मान लेते हैं
सभी चिंतन जरूरी हैं इसे भी जान लेते हैं
मगर कट्टर नहीं अच्छा जताने को यही आया
जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आया
चला है देख लो कैसा…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on January 5, 2025 at 10:30pm — No Comments
शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान
आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।
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मौसम का क्या हाल है, पर्वत पूछे नित्य
ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।
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धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन है चहुँ ओर
गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।
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चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद
तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।
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फैला चादर धुन्ध की, हो मौसम गम्भीर
कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।
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पीते गटगट चाय सब, पहने मोजे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2025 at 2:23pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . जीवन
पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।
अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।
ठहरी- ठहरी जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।
टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।
विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।
टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।
अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।
मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।
पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।
क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।
सुशील सरना / 3-1-25
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments
दोहा पंचक. . . संघर्ष
आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।
फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।
नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।
उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।
ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।
लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।
किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।
चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।
अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments
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