अभिचार सा
करता
छिड़कता जल
चला था,
शून्य पथ
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी
बेहद सुरत
कुछ धुरंधर
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी
ढह ना पाई
रोशनी पर
ना हुई
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शपथ
Added by राजेश 'मृदु' on February 28, 2013 at 12:31pm — 9 Comments
बोल मेरे अर्पण
तुझको क्या लुभाए
डैनें बांध रहना
या उड़ना जग उठाए
मूड़ता जो माथा
है वह अनादि गाथा
आवर्त की ये रूनझुन
पथ में सभी ने पाए
रोहित न हो तू लोहित
आकर है तू तो शोभित
स्वर दे जरा गमक दे
अनहद तुझे बुलाए
इक दृष्टि अपलक दे
सोंधी सी इक धमक दे
यह चक्र जो अनघ है
सबको ही आजमाए
नीरव निशा जो रहती
श्यामल सी चोट सहती
भासित उसी से…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 10:54am — 4 Comments
जब शिवजी का ध्यान भंग करने के लिए मदनदेव को कहा गया तो वे राजी तो हो गए किंतु उनका मन गहरी सोच में पड़ गया उनकी कशमकश को दर्शाने के लिए चौपाईयां लिखी जिसमें आवश्यक सुधार आदरणीय अम्बरीष जी ने सुझाया जिसके बाद इसे ओबीओ के पटल पर रखने का साहस कर पा रहा हूं ।…
Continue
Added by राजेश 'मृदु' on February 8, 2013 at 12:07pm — 5 Comments
*मध्यमेधा का
एक चम्मच सूरज उठाए
कर्मनाशा आहूतियों को
जब भी मढ़ना चाहा
राग हिंडोल के वर्क से
अतिचारी क्षेपक
हींस उठे
पिनाकी नाद से
और डहक गया
सारा उन्मेष.......
तकलियां.....
बुनती ही रहीं
कुहासाछन्न आकाश
बिना किसी अनुरणन के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*मध्यमेधा- मध्यम वर्ग की मेधा (बांग्ला शब्दार्थ)
Added by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 1:53pm — 10 Comments
मन में अक्षय स्नेह सभी के
समरस भाव प्रवणता है
फिर भी जाने क्योंकर सबने
बांटी कलुष,कृपणता है
छूत-पाक का लावा-लश्कर
हुलस चूम कब यम आया
कसक धकेले, सदा अकेले
बूंद-बूंद कब ग़म आया
फंसा जुए में गला सभी का
पगतल अतल विकलता है
जाने फिर भी हर लिलार पर
किसने मली खरलता है
तपिश उड़ेले स्वाद कषैले
लिए जागते दीप कहां
रूचिर अधर पर लुटे प्राण को
मिला दूसरा सीप…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:19am — 10 Comments
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