For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Rajesh kumari's Blog – February 2013 Archive (10)

आवरण

जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर

टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
 छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||

Added by rajesh kumari on February 25, 2013 at 12:07pm — 22 Comments

बेटियाँ (कुछ दोहे )

घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल| 

दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||

बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|

बेटी से बेटे मिलें  ,बेटा आँखें खोल||

घर की रौनक…

Continue

Added by rajesh kumari on February 23, 2013 at 10:33am — 15 Comments

सुषुप्त मन में

उफ्फ ये स्वप्न!!

हृदय विदारक

कैसे जन्मा

सुषुप्त मन में ?

रेंगती संवेदनाएं  

कंपकपाएँ

जड़ जमाएं  

भयभीत मन में

अतीत है या

भावी  दर्पण

उथल पुथल है

मन उलझन में

गर…

Continue

Added by rajesh kumari on February 19, 2013 at 10:00am — 24 Comments

कागज

कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|

आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)



मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|

शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||



भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|

मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||



टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|

कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||



फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|

कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||



रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…

Continue

Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments

प्रीत दिवस(कुछ दोहे )

प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |

प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?

सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |

निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||

पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |

अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||

युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |

खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||

पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |

प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…

Continue

Added by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments

ऋतुराज बसंत(कुण्डलिया)

पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले

*******************************************

Added by rajesh kumari on February 12, 2013 at 10:30am — 16 Comments

मुकद्दर का घोड़ा 122, 122 22 रदीफ के साथ (ग़ज़ल,छोटी बहर पर एक प्रयास )

122, 122 22 (ग़ज़ल)

जमाया हथौड़ा रब्बा 

कहीं का न छोड़ा रब्बा 

बना काँच का था नाज़ुक 

मुकद्दर का घोड़ा रब्बा 

हवा में उड़ाया उसने 

जतन से था जोड़ा रब्बा

तबाही का आलम उसने 

मेरी और मोड़ा रब्बा  

बेरह्मी से दिल को यूँ 

कई बार तोड़ा रब्बा  

रगों से लहू को मेरे

बराबर निचोड़ा रब्बा

चली थी  कहाँ मैं देखो   

कहाँ ला के छोड़ा रब्बा

मुकद्दर पे ताना कैसे

कसे मन निगोड़ा रब्बा 

लगे ए …

Continue

Added by rajesh kumari on February 7, 2013 at 10:00am — 27 Comments

सिर्फ़ एक चटक रंग (कहानी)

मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी  ये…

Continue

Added by rajesh kumari on February 6, 2013 at 10:30am — 25 Comments

हंत! व्यथित है चित्रकारी (क्षणिका)

तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो शृंगार रस में डुबोकर तूलिका,
मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग-अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत ! व्यथित है चित्रकारी
**********************

Added by rajesh kumari on February 4, 2013 at 1:00pm — 13 Comments

(ग़ज़ल) ,कमी तो रहेगी 122 122 122 122

यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी 

उदासी जहन  में जमी तो रहेगी 

 

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी 

 

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी 

 

करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में 

हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी 

 

 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

 

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक…

Continue

Added by rajesh kumari on February 2, 2013 at 8:16pm — 28 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service