जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर
टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||
Added by rajesh kumari on February 25, 2013 at 12:07pm — 22 Comments
घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल|
दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||
बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|
बेटी से बेटे मिलें ,बेटा आँखें खोल||
घर की रौनक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 23, 2013 at 10:33am — 15 Comments
उफ्फ ये स्वप्न!!
हृदय विदारक
कैसे जन्मा
सुषुप्त मन में ?
रेंगती संवेदनाएं
कंपकपाएँ
जड़ जमाएं
भयभीत मन में
अतीत है या
भावी दर्पण
उथल पुथल है
मन उलझन में
गर…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 19, 2013 at 10:00am — 24 Comments
कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)
मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||
भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||
टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||
फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||
रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…
Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments
प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |
प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?
सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |
निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||
पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |
अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||
युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |
खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||
पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |
प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments
पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले
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Added by rajesh kumari on February 12, 2013 at 10:30am — 16 Comments
122, 122 22 (ग़ज़ल)
जमाया हथौड़ा रब्बा
कहीं का न छोड़ा रब्बा
बना काँच का था नाज़ुक
मुकद्दर का घोड़ा रब्बा
हवा में उड़ाया उसने
जतन से था जोड़ा रब्बा
तबाही का आलम उसने
मेरी और मोड़ा रब्बा
बेरह्मी से दिल को यूँ
कई बार तोड़ा रब्बा
रगों से लहू को मेरे
बराबर निचोड़ा रब्बा
चली थी कहाँ मैं देखो
कहाँ ला के छोड़ा रब्बा
मुकद्दर पे ताना कैसे
कसे मन निगोड़ा रब्बा
लगे ए …
ContinueAdded by rajesh kumari on February 7, 2013 at 10:00am — 27 Comments
मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी ये…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 6, 2013 at 10:30am — 25 Comments
तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो शृंगार रस में डुबोकर तूलिका,
मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग-अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत ! व्यथित है चित्रकारी
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Added by rajesh kumari on February 4, 2013 at 1:00pm — 13 Comments
यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी
उदासी जहन में जमी तो रहेगी
हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर
वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी
नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी
करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में
हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी
भले मौन हो जाए तेरा नसीबा
कहीं ना कहीं सरग़मी तो रहेगी
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 2, 2013 at 8:16pm — 28 Comments
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