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Rajesh kumari's Blog – February 2013 Archive (10)

आवरण

जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर

टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
 छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||

Added by rajesh kumari on February 25, 2013 at 12:07pm — 22 Comments

बेटियाँ (कुछ दोहे )

घर सूना कर बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल| 

दूजे घर की बेटियाँ ,कर देती खुशहाल||

बेटा !बेटी मार मत ,बेटी है अनमोल|

बेटी से बेटे मिलें  ,बेटा आँखें खोल||

घर की रौनक…

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Added by rajesh kumari on February 23, 2013 at 10:33am — 15 Comments

सुषुप्त मन में

उफ्फ ये स्वप्न!!

हृदय विदारक

कैसे जन्मा

सुषुप्त मन में ?

रेंगती संवेदनाएं  

कंपकपाएँ

जड़ जमाएं  

भयभीत मन में

अतीत है या

भावी  दर्पण

उथल पुथल है

मन उलझन में

गर…

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Added by rajesh kumari on February 19, 2013 at 10:00am — 24 Comments

कागज

कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|

आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)



मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|

शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||



भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|

मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||



टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|

कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||



फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|

कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||



रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…

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Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments

प्रीत दिवस(कुछ दोहे )

प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |

प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?

सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |

निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||

पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |

अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||

युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |

खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||

पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |

प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…

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Added by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments

ऋतुराज बसंत(कुण्डलिया)

पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले

*******************************************

Added by rajesh kumari on February 12, 2013 at 10:30am — 16 Comments

मुकद्दर का घोड़ा 122, 122 22 रदीफ के साथ (ग़ज़ल,छोटी बहर पर एक प्रयास )

122, 122 22 (ग़ज़ल)

जमाया हथौड़ा रब्बा 

कहीं का न छोड़ा रब्बा 

बना काँच का था नाज़ुक 

मुकद्दर का घोड़ा रब्बा 

हवा में उड़ाया उसने 

जतन से था जोड़ा रब्बा

तबाही का आलम उसने 

मेरी और मोड़ा रब्बा  

बेरह्मी से दिल को यूँ 

कई बार तोड़ा रब्बा  

रगों से लहू को मेरे

बराबर निचोड़ा रब्बा

चली थी  कहाँ मैं देखो   

कहाँ ला के छोड़ा रब्बा

मुकद्दर पे ताना कैसे

कसे मन निगोड़ा रब्बा 

लगे ए …

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Added by rajesh kumari on February 7, 2013 at 10:00am — 27 Comments

सिर्फ़ एक चटक रंग (कहानी)

मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी  ये…

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Added by rajesh kumari on February 6, 2013 at 10:30am — 25 Comments

हंत! व्यथित है चित्रकारी (क्षणिका)

तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो शृंगार रस में डुबोकर तूलिका,
मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग-अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत ! व्यथित है चित्रकारी
**********************

Added by rajesh kumari on February 4, 2013 at 1:00pm — 13 Comments

(ग़ज़ल) ,कमी तो रहेगी 122 122 122 122

यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी 

उदासी जहन  में जमी तो रहेगी 

 

हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर 

वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी 

 

नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा 

मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी 

 

करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में 

हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी 

 

 

भले मौन हो जाए  तेरा नसीबा 

कहीं ना कहीं सरग़मी  तो रहेगी 

 

वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ 

रगो  में झलक…

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Added by rajesh kumari on February 2, 2013 at 8:16pm — 28 Comments

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