राष्ट्रधर्म ही सार है, राष्ट्रधर्म ही मूल ,
लेशमात्र सन्देह भी, कर देगा सब धूल !
रहे राष्ट्र के प्यार में, मानव का हर कृत्य,
रोम–रोम में राष्ट्रहित, क्या अफसर क्या भृत्य !
राष्ट्रघात या द्रोह से, जग में प्रलय दिखाय,
राष्ट्रप्रेम वह शक्ति है, विश्वविजय हो जाय !
राष्ट्र इतर अस्तित्व सब, समझो है बेजान ,
राष्ट्र रहे तो सब रहे, आन बान औ शान !
लहू बहा दो राष्ट्रहित, और बहा दो स्वेद,
प्राण जाय गर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 9:30am — 13 Comments
क्यों
घबराते हो
परिवर्तन से ?
परिवर्तन तो होगा
होता रहा है, होगा बार- बार
किसी के लिए अच्छा भी हो सकता है
किसी के लिए अवांछनीय भी हो सकता है
पर सृष्टी का नियम है, बदल सकते हो क्या ?
पर एक बात जान लो, परिवर्तन से ही इंसान लड़ता है
आगे बढता है ,परिवर्तन से ही इंसान सड़ जाने से बचता है !!
क्यों
घबराते हो
समस्याओं से ?
समस्यायें तो आयेंगी
आती रही है, आयेंगी बार – बार
जीवन ऐसे ही चलता है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 10:30pm — 15 Comments
“हर बार, वह उस आखिरी ‘समोसे’ की तरह मन मसोस कर रह जाता, जिसे कोई नहीं खाता था, आखिर वह अपने डिग्री कॉलेज की क्रिकेट टीम का ‘१२ वाँ खिलाड़ी जो था’ पर आज उसने हिम्मत जुटाकर ‘कप्तान’ से कहा ‘सर’ एक बार मुझे भी खेलने का मौका चाहिए!”
“अरे यार, तुम तो टीम के अभिन्न अंग हो, तुम तो बस मैच का आनन्द लो, हां बस बीच –बीच में चाय, पानी, समोसा, कोल्डड्रिंक, जूस –वूस ले आया करो !”
“समय बदला और फाइनल मैच से ठीक एक दिन पहले कप्तान और उसका प्रिय खिलाड़ी कार दुर्घटना में जख्मीं हो गए, और उस दिन…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 23, 2015 at 2:48am — 18 Comments
“मंत्री जी, शानदार पुल बनकर तैयार है, आपके नाम की शिला भी रखवा दी है, बस जल्दी से उद्घाटन कर दीजिये !”
“अरे यार देख रहे हो कितना व्यस्त चल रहा हूँ आजकल, लेन-देन तो हो गया है न, फिर तुम्हे उद्घाटन की इतनी चिंता क्यों है ?”
“साहब, चिंता उद्घाटन की नहीं है, बारिश की है !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Added by Hari Prakash Dubey on February 20, 2015 at 3:13am — 31 Comments
घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना ,
बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!
पिया , क्यूँ रूठे हो मुझसे,
मुझे आज है तुमको मानना,
पिया निकल पड़ी हूँ घर से,
अपने दफ्तर का पता बताना !!
जिद करती हो जैसे बच्चे,
जाओ मुझे नहीं घर आना,
थोडा दूर रहो अब मुझसे ,
मेरी कीमत का पता लगाना !!
माना भूल हो गयी मुझसे,
अब माफ़ भी कर दो जाना,
कितना प्रेम करती हूँ तुमसे,
मुझे आज…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 17, 2015 at 11:04am — 17 Comments
तुम साहसी हो,
मैं यह मानकर चला,
इसी भाव को,
हृदय में धारण कर,
प्रेम पथ पर आगे बढ़ा,
भावी जीवन का स्वप्न सजोयें,
परिवार, समाज, दुनिया से लड़ा,
पर देखो आज शर्मिन्दा खड़ा हूँ ,
स्वयं की नजरों में गिरा पड़ा हूँ ,
मुझे प्यार किया तुमने, पर कह ना सकीं,
मेरा जीवन होम हुआ, पर भंग न तुम्हारा मौन हुआ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 8:52am — 16 Comments
सुबह शाम
दफ्तर काम
ढलता सूरज
उगता चाँद
रात, तुम्हारी याद
आखों से बरसात !!
कभी भूख
कभी प्यास
कभी हर्ष
कभी विषाद
तन्हाई, रात वीरान
सुलगते हुए अरमान !!
तन्हा सफर
स्ट्रीट लाईट
पाखी जलता
मन मचलता
प्यास, बैचैन करवटें
बिस्तर पर सिलवटें !!
उगता सूरज
आँखें लाल
वही सवाल
वही मदहोशी
गुम, खुद में कहीं
नहीं सुध किसी चीज़ की !!
फिर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 9, 2015 at 10:21am — 26 Comments
सोने का संसार !
उषा छिप गयी नभस्थली में,
देकर यह उपहार !
लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,
होती हैं साकार !
प्रातः- समीरण कर देता है,
नव-जीवन संचार !
लोल-लोल लहलही लतायें,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 12:16am — 19 Comments
“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”
“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”
“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:15pm — 27 Comments
Added by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |