Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 10:29pm — 11 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 9:30pm — 8 Comments
खिला धूप चेहरा मदमाती वो आंखें।
सुर्ख से अधर, पर शर्माती वो आंखें॥
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देखूं जो नजर भर चुराती वो आंखें।
हटे जो नजर तो बल खाती वो आंखें॥
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लगे दर्द दिल में छुपाती वो आंखें।
छुपे राजे दिल को बताती वो आंखे॥
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क्यों ही न जाने दिल जलाती वो आंखें।
बहा अश्क फिर से बुझाती वो आंखें॥
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सब्र के अब्र को छेद जाती वो आंखें।
अब्र से आब ले बरसाती वो आंखें॥
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सुनो दोस्त मेरे मदमाती वो…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 9:30pm — 9 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2012 at 9:00pm — 6 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2012 at 7:45pm — 6 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2012 at 7:01am — 25 Comments
अपनों से जुदा अपने,होते हैं कहां प्रियवर।
अनमोल रतन धन,खोते हैं कहां प्रियवर॥
नजरों से दूरी तो,दूरी ही नहीं होती।
दिल से अलग अपने,होते हैं कहां प्रियवर॥
आंखों में आंसू हैं,अपनों के लिए ही हैं।
गैरों के लिए हम,रोते हैं कहां प्रियवर॥…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 3, 2012 at 9:30pm — 15 Comments
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