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Umesh katara's Blog – March 2015 Archive (11)

दफन है बहुत आग सीने में जिसके ------ग़ज़ल उमेश कटारा

122 122 122 122



बहुत हो चुकी हैं शराफत की बातें

चलो अब करें कुछ व़गाव़त की बातें

....

हसद है उन्हें अब मेरी शौहरतों से

जो करते कभी थे रियाज़त की बातें

.....

दफन है बहुत आग सीने में जिसके

वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें

.....

बुजुर्गों की सेवा जरूरी बहुत है

करो सिर्फ इनकी इवादत की बातें

......

मुआफी के काबिल नहीं बेवफाई

न मुझसे करो तुम नदामत की बातें

......

जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया

वो करने लगा है…

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Added by umesh katara on March 31, 2015 at 7:30pm — 17 Comments

सब्जी वाला है वो

गरीब है 

पर स्वाभिमानी बहुत है 

सब्जी की ढकेल 

शहर की कोलोनियों में 

घुमाता है

जोर जोर से सब्जियों के

नाम की आबाज

लगाता है

आखिर में ले लो साहब

कहकर जरूर चिल्लाता है

कुछ आदतें हो गयी हैं

उस पर हावी

कल की सब्जियों को भी 

कह जाता है ताजी

कुछ सब्जियाँ

पूरी बिक चुकी होती हैं

उनका भी नाम पुकार जाता है

बीच बीच में पानी के छींटों से

सब्जियों को सँवार जाता है

ऊँचे लोगों की नीची हरकतों को 

बखूबी पहचानता है

लाखों…

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Added by umesh katara on March 26, 2015 at 7:46pm — 24 Comments

ग़ज़ल---तू आज नहीं आयी तो जान ये जानी है

221 1222 221 1222



तू आज नहीं आयी तो जान ये जानी है

मैं रोज कहूँ ऐसा ये बात पुरानी है

......

कुछ वादे तेरे झूठे कुछ तोड दिये मैंने

ये कैसी मुहब्बत है ये कैसी कहानी है

...

बस चाँद सितारे हैं जो साथ जगे मेरे 

उनके ही सहारे से अब याद भुलानी है

..

जिस रोज उतर जाये उस रोज चले आना

कुछ दिन ही चलेगा बस ये जोश जवानी है

....

सच यार कहूँ दिल से हैं  बात ये सब झूठी

तेरा मैं  दिवाना हूँ तू मेरी दिवानी है

--------------…

Continue

Added by umesh katara on March 23, 2015 at 9:30am — 18 Comments

तिनका तिनका तार तार

गौर से देखो रेगिस्तान को 

मीलों दूर तक

बिखरा पडा है

अपनी सुन्दरता सँवारे हुये

कितनी सदियों से 

आँधी तूफानों से

अनवरत लडा है

कई बार साजिशें हुयीं है

सहरा की धूल को 

दूर उडा ले जाने की 

इसके अस्तित्व को 

हमेशा के लिये 

मिटाने की

पानी के लिये 

प्यासा ही जी रहा है

पानी ने भी कसर नहीं छोडी है

इसे बहाकर दूर ले जाने में 

कई बार गुजरा है 

इसके वक्ष स्थल से होकर

मगर रेगिस्तान का 

स्वाभिमान तो…

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Added by umesh katara on March 19, 2015 at 8:00am — 22 Comments

मगर क्यों रोज फिर मेरी दवायें भी बदलती हैं

1222 1222 1222 1222

---------------------------------------------------------------

जहाँ में वक्त के माफिक हवायें भी बदलती हैं

नजर पर मत भरोसा कर निगाहें भी बदलती हैं

..

बहारों से लगाकर दिल अभी पगला गया है तू

खिजाँ से दोस्ती करले फिजायें भी बदलती हैं

..

लगे जो आज अपना सा पता क्या कब मुकर जाये

नये जब यार मिल जायें , दुआयें भी बदलती हैं

..

कभी चाँदी ,कभी सोना ,कभी नोटों,के बिस्तर पर

मुहब्बत तड-फडाती है ,वफायें भी बदलती हैं…

Continue

Added by umesh katara on March 15, 2015 at 9:30am — 16 Comments

तुमने पुकारा ही नहीं मुझको

मैं तो प्रेम रस से 
बादलों की तरह 
भरा हुआ 
बेचैन था 
तुम पर बरसने को
मगर 
तुमने पुकारा ही नहीं मुझको
सूखी 
प्यासी 
व्याकुल 
दरकती हुयी जमीन बनकर
मेरा बरस जाना 
जरूरी थी
क्योंकि 
मैं भरा चुका था 
अन्दर से 
पूरी तरह
मेरी हदों से बाहर 
निकला प्रेम रस
आँखों की कोरों से फूटकर
अश्रुधार बनकर
और बरसता रहा
उम्र भर

उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित

Added by umesh katara on March 13, 2015 at 7:24am — 19 Comments

सजा-ए-मौत लिख डाली

1222 1222 1222 1222



तेरी आँखों में डूबा था यही अपराध था मेरा

जरा सी बात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--1



ये बिखरी जुल्फ मैं तेरी ,सँवारू हाथ से अपने

मेरे जज्बात पर तूने सजा-ए- मौत लिख डाली--2



सिले हैं होठ क्यों तूने  शिकायत की बजह क्या है

मिलन की रात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--3



तेरे होठों से होठों को जलाकर देख लेता मैं

मगर हर-बात पर तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4



बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम …

Continue

Added by umesh katara on March 10, 2015 at 9:00pm — 14 Comments

तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही

जिन्दगी भर खुशी की कमी सी रही
इक परत सी गमों की जमी सी रही
....
ढोल बजते रहे शहर में हर तरफ
पर मेरे आशियाँ में गमी सी रही
....
चाहकर भी न भूला तेरे प्यार को
तू हमेशा ही मुझमें रमी सी रही
....
नींद आती भी आँखों में कैसे भला
आँखों में आसुओं की नमी सी रही
....
कोई दस्तक बजेगी मेरे द्वार पर
सोचकर साँस मेरी थमी सी रही

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Added by umesh katara on March 9, 2015 at 9:00am — 22 Comments

ये कैसा भय है

दुनिया हँसेगी 

ये कैसा भय है

मात्र इस भय से

तुम उस रिश्ते पर

पूर्ण विराम लगाना चाहते हो

जिसका जन्म हुआ है

पावन भावनाओं के गर्भ से

क्या हँसी बाँटना पाप है 

नहीं ! 

तो फिर दुनिया के हँसने से

क्या परहेज है तुम्हें

हँसने से 

ईश्वर प्रसन्न होता है

आत्मा प्रसन्न होती है

अगर तुम्हारे और मेरे मिलन से

दुनिया हँसती है 

तो इससे भली बात क्या होगी 

तुम्हारे और मेरे लिये

आओ हम मिल जाते हैं 

हमेशा के लिये

और दुनिया को हँसा देते…

Continue

Added by umesh katara on March 8, 2015 at 4:08pm — 16 Comments

बन्द मुट्ठी का आसमान

मेरी बन्द मुट्ठी में

कसमसाता हुआ आसमान 

मुझे छोड दो

बाकी आसमान तुम्हारा है 

तलवों से ढ़की धरती

मुझे छोड दो  

बाकी धरती तुम्हारी है 

मेरे माथे की तीनों लकीरें 

तुम्हारे झुँझलाते हुये उन प्रश्नों 

का उत्तर हैं

जो किये थे तुमने 

मेरे हारते समय 

बर्षों से बन्द मेरी जुबान

शायद गल चुकी है

अब इसे तनिक भी हिलाया 

तो टूट जायेगी

तुम्हारे नाम के सिवाय 

इसे कुछ बोलना नहीं था

मगर तुमने इसकी 

इजाजत न दी

तो…

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Added by umesh katara on March 3, 2015 at 9:00pm — 6 Comments

ये भटकते हुये रास्ते

मैं हिला तक नहीं हूँ 

उस जगह से 

जहाँ तुमने छोडा था कभी 

तुम लौट आये हो

कौनसा रास्ता आया है 

लौटकर मुझ तक

खैर ! तुम्हारा कोई दोष नहीं है  

तुम्हारे लौट आने में 

ये रास्ते ही ऐसे हैं 

घूम फिर कर 

फिर आ पहुँचते हैं वहीं 

जहाँ से चले थे कभी 

राह से भटके हुये 

ये भटकते हुये रास्ते

तुम लौट ही आये हो 

तो कुछ देर आराम करलो

निकल जाना सुबह होते होते 

फिर किसी भटकते हुये रास्ते के साथ

रोज कई रास्ते निकलते…

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Added by umesh katara on March 1, 2015 at 5:00pm — 23 Comments

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