बहुत बार समझाया
कभी दिल को फुसलाया
मगर खुद ही ना समझ पाया
मैं हूँ क्यों यहाँ पर
बस रोज़ वो अँधेरे
और तेरी यादें के
दहकते अंगारे
परवानों सा जलने की
दुआ करता हूँ
कुछ हसीन सपनों का व्यापार
अपनी नींदों से
किया करता हूँ
दिल में बसी मूरत को
पलकों में छिपा रखता हूँ
तेरी यादों को
कागज पे अक्सर उतार देता हूँ
जब सूने पन्ने पे तेरा नाम आता है
क्या जानू क्यूँ पन्ने को
अहंकार हो जाता है
और मुझे फिर से प्यार हो जाता है…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:48am — 22 Comments
गुल से है परेशां गुलिस्तां सारा
भंवरे से दिल लगाने की ज़िद उसकी नहीं गवारा
मगर गुल जानता है कि आज काँटों का साथ
फिर माली के हाथों किसी अंजान के साथ
गुलशन से बिदाई का मसला है सारा
बिछुड़ने का फिक्र नहीं उसको
कल का क्या.... आज तो जी लेने दो उसको
काट शाख़ से सब सूंघेंगे एक दिन
फिर अगले दिन मसल डालेंगे ये उसको
भंवरा तो रोज़ आ कर चूमता है
मंडराता है चारो तरफ लुभाता है उसको
अपनी गुंजन के गीत सुनाता है
और सुबह फिर मिलने का वादा दे जाता…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 8:16am — 10 Comments
हर हीरा किसी हसीना के
गले का हार नहीं बनता !
हर हसीना के गले को
हीरों का हार नहीं मिलता !
कई हीरे ज़मी में दबे रहते हैं
कोयलों की गोद में
सोये पड़े रहते हैं !
उनको तराशने वालों का
औजार नहीं मिलता !
न कमी हसीना के हुस्न में है
न हीरों की गुणवत्ता में !
बस किस्मत के खेल हैं सारे
किसी को वोह मिल जाते हैं
और हमें प्यार नहीं मिलता !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 23, 2015 at 12:42pm — 15 Comments
भँवरा हूँ ......
फूल दर फूल घूमना आदत मेरी
हर फूल को चूमना चाहत मेरी
फूल कहाँ पहचानते हैं मुझे
मेरे जैसे कई आते हैं हर रोज़
बिन बुलाये यहाँ !
मेरी तो फ़ितरत है
नये मन्ज़र ढूँढ़ना
रुक तो तभी पाऊंगा
जब किसी फूल के
ख़ूनी पंजों में जकड़ा जाऊंगा
वर्ना उड़ता उड़ता
बहुत दूर निकल जाऊंगा.........
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:30am — 10 Comments
पल पल मुझ से रूठा है
हर पल यूँ तो झूठा है
सच और झूठ का ताना बाना
जीवन का रूप अनूठा है
इक पल में वो अपने दीखे
दो पल में कई सपने दीखे
कुछ पल में सब बिखर गये
यूँ साथ हमारा छूटा है
क्या पल पल मुझसे रूठा है
या जग सारा ये झूठा है !
मैं दीया हूँ तू बाती है
दुनिया क्यूँ तुझे जलाती है
मुझ पे भी कालिख आती है
प्यार के झोंके जब
आग बुझाने आते हैं
बेदर्द नहीं सह पाते हैं
हाथ बढ़ा ढक लेते हैं
आग को और भड़काते…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 16, 2015 at 4:30am — 11 Comments
आओ होली मिलन कर लें
जला बुराईयों को
अच्छाईयों को दिल में भर लें
मगर देखो तुम
होली की हुड़दंग में
रंग मुहब्बत का
ना इस तरहां लगाया करो
खेलो होली रंगों से
मगर दिल तक
ना आया करो
भांग का नशा है
थोड़ा संभल जाया करो
होली तो भूल जाओगे
अगले दिन
मगर दिल पे लगे रंगों को
जन्म भर ना भुला पाओगे
और हमें यूँ हीं ताउम्र
बे-वजह तड़पाओगे !!
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 6, 2015 at 4:48am — 6 Comments
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