बेचैनी बढ़ रही धरा की,
पशु-पक्षी बेहाल
सूरज बाबा सजा रहे हैं,
अंगारों का थाल
दिखते नहीं आजकल हमको,
बरगद, पीपल, नीम
आँगन छोड़, घरों में बालक,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 31, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
सागर जैसी लहर उठी है,
दिल की धड़कन में.
छलकी है पिय याद तुम्हारी,
मेरे नयनन में
तोड़े आम साथ में जाकर,
भायी मन अमराई.
पानी पर कागज की कश्ती,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 27, 2018 at 9:22am — 8 Comments
कब निकले बाहर महलों से,
वन में गीत कभी गाये क्या
पूजा करते रहे राम की,
राम सरीखे बन पाये क्या
भाई को कब भाई समझा,
हर विपदा में किया किनारा
दीवारों पर दीवारें…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:03am — 13 Comments
२२१२ २२१२
किसने किया तुझसे मना
कर प्रेम की आराधना
चारों तरफ ही प्रेम की
मौजूद है सम्भावना
हों झुर्रियाँ जिस हाथ में
मौका मिले तो थामना
करना किसी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 23, 2018 at 9:30am — 24 Comments
मापनी 221 2121 1221 212
आँगन, वो’ छत, वो’ चाँद, सितारे कहाँ गए.
वो दिल की’ हसरतों के’ शरारे कहाँ गए.
निश्छल सरल वो’ प्रेम के’ किस्से पले जहाँ,
पनघट, नदी वो’ झील किनारे कहाँ गए.
आये थे’ जिन्दगी में दिखाने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 20, 2018 at 9:13am — 16 Comments
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