(1)
चंद्रमुखी! हे मृगनयनी! क्या यौवन-रूप सजाया है।
ओष्ठ-अरुण मधुरस के प्याले, सुंदर कंचन-काया है।
लोच कमरिया-इंद्रधनुष, लट-केश घटा की छाया है।
कटि गगरी धर जाने वाली, तूने हृदय चुराया है।
(2)
मुरलीधर धर मुरली अधरन, ग्वालिंन को नचावत हो।
विश्वम्भर भर प्रेम हृदय में, राधा को रिझावत हो।
चक्रपाणि पाणि चक्र धर, अधर्म को मिटावत हो।
दामोदर दर-दर भटकूँ मैं, क्यों न मोहि उबारत हो?
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 3:00pm —
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प्रीतम सपने में आये थे।
सखि! मुझको बड़ा सताये थे।।
सुंदर वसन सजा तन पर,
वे मंद-मंद मुस्काये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।
स्नेह-सेज पर सोई थी।
यादों मे उनके खोई थी।
नयनों ने पट ज्यों बंद किये।
उनके ही दर्शन पाये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।
साँवली सूरत नैन विशाल।
लख छवि सखि! मैं हुई बेहाल।।
मणियों की माला साजे उर।
कंदर्प-रूप धरि आये थे।
प्रीतम सपने में आये थे।
प्यारी-प्यारी बातें कीन्हां।
बाहों में मुझको भर…
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Added by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:51pm —
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ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।
तन-यौवन-रूप सजाया ज्यों,
घर-बार सजाना।।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।
सुख-दुख में तुम सहभागी अब,
ये मन तुम पर अनुरागी अब।
तुमसे कुछ नही छिपाना है,
हिय का सब हाल बताना है।।
निश्छल मन में, निश्छल मन से,
अब तुम बस जाना।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।।
पतझड़-सा सूना जीवन था,
नीरस मेरा घर आँगन था।
अब तुम जीवन में आई हो,
सतरंगी सपने…
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Added by रामबली गुप्ता on March 21, 2016 at 10:57am —
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आया सुखमय बसंत आया।
अंग-उमंग तरंगहि लाया।।
राग-रंग का ऋतु है भैया।
नाचे तन-मन ता ता थैया।।
नव पल्लव तरुओं पर आये।
पछुआ गुन-गुन गीत सुनाये।।
आम्रकुंज फूले बौराये।
सुरभित वात हृदय महकाए।।
सरसों के सुम पीले-पीले।
पीताम्बर-से भू पर फैले।।
सजी धरा-वधु हिय पुलकाए।
पीत वसन ज्यों तन पर छाए।।
पशु-पक्षी सब नाचे गायें।
कोयल नित नव राग सुनाये।।
मोर-मोरनी विहरें वन में।
नाचे-झूमें हरखें मन में।।
स्वच्छ गगन दिनकर ले…
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Added by रामबली गुप्ता on March 19, 2016 at 11:26am —
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देखो आये ऋतुराज प्रिये!
अंग-उमंग, तरंग भरे उर,
राग-रंग सुर-साज लिए।
देखो आये ऋतुराज प्रिये!
नित नवीन पल्लव तरु आए,
सारे आम्रकुंज बौराए।
आये, कामदेव-सुत आये,
सुरभि-सुगंधित साथ लिए।
देखो आये ऋतुराज प्रिये!
चारो ओर कुसुम हर्षाएँ।
पुष्प पराग कलश छलकाएँ।।
तितली-भौंरे अति इतराएँ,
मन-मधुरस की आस लिए।
देखो आये ऋतुराज प्रिये!
पिक उपवन में कूक लगाएं,
हरखें, राग वागश्री गायें।
मोर-मोरनी रास…
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Added by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:58pm —
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सरस्वती माँ! शारदे, करूँ वंदना आज।
हर लो तम उर ज्ञान दो, सफल करो सब काज।।
सफल करो सब काज, जननि सुर में बस जाओ।
भर दो नित नव राग, हृदय में ज्योंति जगाओ।।
हरूँ जनों के त्रास, सुखी होए धरती माँ।
ऐसा दो वरदान, जयति जय सरस्वती माँ ।।
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:49pm —
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आय गयो मधुमास सखी! प्रिय की अब याद सताय सदा रे।
रात कटे नहि प्रीतम के बिन जोगन हो गइ पंथ निहारे।
सौतन के घर जाय बसे प्रिय लीन्हि नही सुधि मोहि बिसारे।
नैनहि नीर बहे अब तो मन धीर धरे नहि आज पुकारे।
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 8:42pm —
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मधु मधुऋतु मधुकाल हे! कुसुमाकर ऋतुराज।
रंग-बिरंगे पुष्प हैं, स्वागत में सुर-साज।।
स्वागत में सुर-साज, आज मन नाचे गाये।
अंग-अंग मदमात, पात नव तरु पर आये।।
वसुधा पुलकित आज, सजी जैसे नूतन वधु।
कोयल गाये राग, मधुप इतराएं पी मधु।।
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 7:39pm —
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करे वंदना आज, नाज हिय तुम पर करके।
रहो वीर सरताज, आज दो आँसूं छलके।।
तुम वीरों की शान, आन पर मिटने वाले।
देश करे अभिमान, जान-तन देने वाले।।
श्रद्धा-सुमन स्वीकार करो, राष्ट्र-क्रांति-प्रतिमान हे!
चंद्रशेखर! सत्य वीर्यवर! पूज्यमूर्ति-बलिदान हे!
--रामबली गुप्ता
क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद को शत-शत नमन
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 4:37pm —
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वह्र-212 212 212 212
आरजू तुमसे मिलने की करने लगी।
हसरतें मेरे दिल की सँवरने लगीं।।
कौन हो तुम अभी जानती भी नही।
जाने तुम पर ही क्यूँ ऐसे मरने लगी।।
हो गया है मुझे क्या ऐ मेरे सनम।
आहटों पर भी मैं गौर करने लगी।।
हुश्न की हूँ परी सब मुझे बोलते।
तुमसे मिलके मैं इतना निखरने लगी।।
झूठ कुछ भी किसी से न कहती थी मैं।
तुमसे मिल के बहाने भी करने लगी।।
देख लूँ जो सनम तुम चले आ रहे।
बन के राहों में कलियाँ…
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Added by रामबली गुप्ता on March 9, 2016 at 11:30am —
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"कुण्डलिया"
साजे उर अहि-माल तुम, हृदय बसो गिरिजेश।
उमा-सहित तुमको नमन, हे! व्योमेश महेश।।
हे! व्योमेश महेश, केश से निकली गंगा।
नाचें सुर-नर-शेष, धिनक-धिन बजे मृदंगा।।
भंग रमे तन-भस्म, डमाडम डमरू बाजे।
हरो जनों के कष्ट, शीश पर विधु को साजे।।
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 7, 2016 at 9:16pm —
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कर्पूरी आभा लिए, हे! करुणा अवतार।
नाच रहे शशि-शिखर-धर, गले सर्प का हार।।
गले सर्प का हार, हरो जग-त्रास जगतपति।
नीलकण्ठ भगवान, करो कल्याण उमापति।।
विनय करूँ कर जोर, करो श्रद्धा सब पूरी।
बसो हृदय में ईश, लिए आभा कर्पूरी।।
-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रामबली गुप्ता on March 7, 2016 at 3:30pm —
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