पार्टियों की रेस तो देखो कितनी है रफ़्तार
सत्ता में जब भी आ जाती, होता हाहाकार
चुनाव जीतकर आ जाए तो कितना अहंकार
भ्रष्टाचार का सभी तरफ फ़ैल गया अंधकार
काम करे सरकारी अफसर, कर रहे उपकार
रिश्वत खाकर फूले हैं और हो गए मक्कार
ईमानदारी पर आजकल मिलती है फटकार
बिक गए हैं बेईमानी में हम सब के संस्कार
नेता भाई किसान को जाकर दे गए ललकार
दाम दे देंगे जमीन के बंद करो फुफकार
कदम कदम पे रह…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 23, 2015 at 6:15pm — 8 Comments
कौन हो ? रो क्यों रही हो? - गाँव के बाहर बैठी उस स्त्री से बाल्या ने पूछा
"शहर शहर घूम आई ..धुवें से काली काली हो गयी.. मैं बरसना चाहती हूँ लेकिन सब ने बहाना कर के भगा दिया ..कहाँ जाऊं" उसने रोते रोते कहा
अरे माई . कितना इंतज़ार करवाया .. पिछले दो साल से तुम नहीं आयीं.. उस साल बापू ने रो रो कर इसी पेड़ से लटक कर जान दे दी .. पिछले साल माँ ने कर्ज लेकर बीज बोये और फिर भूखी ही मर गयी... तू यहाँ बरस खेतों पे... अबकी फसल मैं दोनों का श्राद्ध करूँगा…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
212 212 212 212
छोड़ दूँ अब कुंवारा नगर मैं पिया
काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया
मन न माने मगर क्या बताऊँ तुम्हें
साथ दोगे चलूंगी सहर मैं पिया
पंखुड़ी खिल गयी राग पाकर कहीं
बेज़ुबां अब न खोलूं अधर मैं पिया
मौत का गम नहीं साथ तुम हो मेरे
मुस्करा के पिउंगी जहर मैं पिया
अब तुम्हारे सिवा कुछ न चाहूंगी मैं
दिल मिलाओ मिलाऊं नज़र मैं पिया
दूर से देखकर आज रुकना…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:49pm — 8 Comments
"ए रांड....." - परीक्षा देकर निकलते ही ऊँची आवाज में सीसा घोलती गाली वर्षा के कानों में पड़ी.. मुड़कर देखा तो संतोष सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुवे अपने मित्रों के साथ उसकी तरफ देख कर ठहाके लगा रहा था. वही जिसके प्यार को पिछले साल ठुकरा दिया था.. अपमान के एहसास से आँखों में आंसू आ गए .. पर वह चुपचाप वहां से चल दी.. क्या कहती ?
घर पहुँच कर देखा .. मुन्नी सो रही थी
"वर्षा कल का पेपर कैसे देगी.. कोर्ट की तारीख आगे बढ़वा लेती" माँ रसोई से आते आते बोली
"माँ…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 10, 2015 at 9:30am — 8 Comments
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती
गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती
नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती
नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती
मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती
माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती
थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना
रात को देर से आना फिर…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 1:04pm — 14 Comments
चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी
डोर बनी थी कड़वाहट की बस कसती चली गयी
रंग भरे थे ख्वाब उसके, मंजिल तलक था जाना
राह उसकी बस लाल रंग में बदलती चली गयी
खुशियाँ ही चाहती थी वो अपनों की आँखों में
कालिख क्यों उनके चेहरे बिखरती चली गयी
जीना ही तो चाहती थीं न वो दिलों में बसकर
बेटियाँ तो तस्वीर बनकर लटकती चली गयी
चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने
इच्छायें दायरों में ही "निधि" बंधती चली…
Added by Nidhi Agrawal on April 7, 2015 at 1:30pm — 9 Comments
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