अलसाई
आंखों से उठना
जूते, टाई
फंदे कसना
किसी तरह से
पेट पूरकर
पगलाए
कदमों से भगना
ज्ञान कुंड की इस ज्वाला में
निश दिन जलना खेल नहीं है
तेरे युग में .....................
पंछी, तितली
खो गए सारे
धब्बों से
दिखते हैं तारे
फूल, कली भी
हुए मुहाजि़र
प्राण छौंकते
कर्कश नारे
धक्के खाते आना-जाना
धुआं निगलना खेल नहीं है
तेरे युग…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:55pm — 15 Comments
आधी रात के सपने देकर
तुम मुझको बहला देते हो
जब चाहे जी
अपना लेते हो
जब चाहे जी
ठुकरा देते हो
कैसे लिखूं
तुमको पतियां
तुम वादे
झुठला देते हो
आधी रात के ................
या देवी का
जयघोष तो करते
फिर क्योंकर
चुभला देते हो
अपने छत पर
बाग लगाकर
कलियों को
दहला देते हो
आधी रात के ................
कहती हूं जो
तुमको…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 2:41pm — 17 Comments
ना मैं बेटी ना ही मां हूं
केवल रैन गुजारू हूं
रम्य राजपथ, नुक्कड़ गलियां
सबकी थकन उतारू हूं
बाबू मैं बाजारू हूं ........बाबू मैं बाजारू हूं
अंधेरे का ओढ़ दुशाला
छक पीती हूं तम की हाला
कट-कट करते हैं दिन मेरे
रिस-रिस रात गुजारूं हूं
बाबू मैं बाजारू हूं ........बाबू मैं बाजारू हूं
जात-पात का भेद ना मानूं
ना अस्ति ना अस्तु जानूं
घुंघरू भर अरमान लिए मैं
सबका पंथ बुहारू…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 11, 2013 at 6:05pm — 33 Comments
रंग भरे
फागुन के चेहरे
संग रीता
सुख चैन
टनटन करती
भाग रही फिर
अग्निशमन की वैन
होंठ चाटता
बेबस राजू
सोच रहा
फिर आज
चूते छप्पर
सर्द रात दे
तुष्ट नहीं क्यों ताज
तैर रही
उसकी आंखों में
मात-पिता की देह
आवास इंदिरा
के नीचे ही
कुचल गया
जो नेह
है तो वो
जनजाति का पर
पाए कहां प्रमाण
दैन्य रेख पर
अमला…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 10, 2013 at 1:18pm — 7 Comments
दाइज ऐसा देना बाबुल
जिससे तन-मन जले नहीं
दर्द-वेदना के सिक्कों से
जो बेबस हो तुले नहीं
ना गुलाब की कलियां न्यारी
स्वर्णहार ना चूड़मणि
नहीं मुलायम गद्दी, सोफे
नहीं रेशमी लाश बुनी
देना बाबुल ऐसा ताला
जो बुद्धि पर लगे नहीं
अम्लान रूढि़यों की ठोकर से
जो बेदम हो खुले नहीं
लाड़-प्यार चाहे ना देना
ना लेना मेरी पोथी
जनमजली ना करना मुझको
शिक्षा बिन सब हैं रोती
देना…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 4, 2013 at 4:24pm — 9 Comments
विधना तेरे रूप में, आया कहां निखार
बेशकीमती ब्लीच औ, लोशन मले हजार
मौनी बाबा टल्ली हैं, आफत में युवराज
घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज
शहर गाल में गांव हैं, कोलतार में पैर
बेदम होकर हांफती, सुबह-शाम की सैर
ट्रैफिक की हर चीख पर, सिग्नल मारे आंख
रेल-बसों में चुप खड़े, सहमे डैने, पांख
अनशन पर कोई अड़ा, कोई हुआ मलंग
इटली वाले रंग में, किसने घोला भंग
नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 3, 2013 at 12:54pm — 8 Comments
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