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PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA's Blog – April 2013 Archive (8)

कैसा समाज // कुशवाहा//

कैसा समाज // कुशवाहा//

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जनम लेत बालिका जननी न सुहात है 

माम सुन चाहत है मात नही भात है 

कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है 

चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है 

वैभव विहीन वो जनम काली रात है 

कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं  

खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है 

सखि संग खेलन गयी संझा की बात है 

मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है 

दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं 

संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2013 at 4:25pm — 14 Comments

क्रांति

क्रांति 

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चिंता छोड़ो सुख से जियो 

पुस्तक हम भी ले आये 

विश्वास रहा न उनके ऊपर…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 3:24pm — 20 Comments

कैसी जिंदगी ..लघु कथा / कुशवाहा

कैसी जिंदगी   ..लघु कथा / कुशवाहा 
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समाज उत्थान , समाज सेवा ऐसा नशा है कि जिसे लग गया तो लग  गया . छूटेगा जीवन के साथ . यही हाल पुष्पा जी का है. वैसे तो उनका निश्चित समय है क्षेत्र में जाने का. पर कोई सूचना मिली या कोई फरियादी द्वार पर आ गया तो फिर क्या डाली चप्पल पैर  में और कंधे पर शाल या चदरा ,निकल पडी सेवा करने को. घर में बने, आश्रम, ही  कहिये का अलग काम तो है ही. अगर उनसे कोई पूँछ ले दीदी इतना खर्चा कैसे उठाती  हैं, क्या…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 6:23pm — 5 Comments

नवरात्र...कैसा ..लघु कथा / कुशवाहा

नवरात्र...कैसा  ..लघु कथा / कुशवाहा 
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अब आपके कर्म अच्छे थे कि बड़े  अधिकारी  बन गए या देश में  रसूखदार पदवी पा गए. इससे हम क्यों जलें कि आपको जब परिवार में शादी ब्याह, जीना मरना हो, मंदिर दर्शन करना हो  तो लगा लिया ग्रह जनपद या पास के क्षेत्र का भ्रमण. निरीक्षण का निरीक्षण और सरकारी  सुविधाओं के साथ निजी कार्य भी निपटाया, यानी कि एक पंथ दो काज. दामाद जैसी खातिरदारी सो अलग.स्टाफ तो निजी नौकर है भले ही वो सरकारी…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:45pm — 15 Comments

नवरात्र ..लघु कथा

नवरात्र ..लघु कथा 
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शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है  अपने खाने में से वो किसी को पूंछते  नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.

नवरात्र में वे फलाहार कार्यालय कैम्पस के बाहर लगे फलों के ठेले पर करते . सो नित्य की भांति वे फलाहार करने गए. पीछे पीछे मैं भी गया…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:00pm — 19 Comments

नारी तू नहीं है अबला

नारी तू नहीं है अबला

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नारी तू नहीं है अबला 

है शक्ति  स्वयं पहचान 

खुद  को शोषित  मान  ले 

फिर  कौन  करे  सम्मान 

दूषित  जग  से लड़ना होगा

खुद  ही आगे बढ़ना…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2013 at 6:00pm — 25 Comments

हार्दिक शुभ कामनाएं

हार्दिक शुभ कामनाएं 
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 दूजा वर्ष था ओ बी ओ 
तब से हुआ संग 
श्वेत श्याम  ज्ञान मेरा 
हुआ रंगा  रंग 
ग्यानी गुण जन सब  बसे 
ये सोने की खान 
शिक्षण पद्धति बहुत  भली 
जान सके तो जान 
.हार्दिक शुभ कामनाएं 
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
1-4-2013

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2013 at 5:00pm — 11 Comments

हाय जनता

हाय जनता 
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प्रतिष्ठान के मालिक ने 

होली मिलन मनाया 

सभासद सांसद सहित  
मेरा भी न्योता आया 
हारे जीते नेता सब आये 
उपलब्धि के  गीत थोथे गाये 
संघर्ष बहुत किया भारी 
तब आयी जीतन की बारी 
विकास क्षेत्र का कर दूंगा 
बदले में वोट केवल  लूँगा 
करतल ध्वनी हुई भारी 
टूटी…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2013 at 4:20pm — 10 Comments

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