कैसा समाज // कुशवाहा//
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जनम लेत बालिका जननी न सुहात है
माम सुन चाहत है मात नही भात है
कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है
चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है
वैभव विहीन वो जनम काली रात है
कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं
खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है
सखि संग खेलन गयी संझा की बात है
मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है
दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं
संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2013 at 4:25pm — 14 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 3:24pm — 20 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 6:23pm — 5 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:45pm — 15 Comments
शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है अपने खाने में से वो किसी को पूंछते नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
नारी तू नहीं है अबला
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नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
खुद को शोषित मान ले
फिर कौन करे सम्मान
दूषित जग से लड़ना होगा
खुद ही आगे बढ़ना…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2013 at 6:00pm — 25 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2013 at 5:00pm — 11 Comments
प्रतिष्ठान के मालिक ने
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2013 at 4:20pm — 10 Comments
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