इसी जद्दोज़हद में
ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ कर ज्यों
सफे भर रहे हैं
अधूरी है रदीफ़
काफिया नहीं है पूरा
तुकबंदी मिलाने की बस
जुगत कर रहे हैं
ज़िन्दगी गो कि
इक ग़ज़ल है
रूठा हुआ हमसे
अभी ये शगल है
अशआरों की तरह
उमड़ते हैं
चेहरे कई लेकिन
'मीटर' जो बैठ जाए
वही भर पन्नो पर
उतर रहे हैं
दुष्यंत .............
Added by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 4:31pm —
9 Comments
चाँद नभ में आ गया, अब आप भी आ जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
नींद सहलाती है सबको, पर मुझे छूती नहीं.
जानें आँखें पथ से क्यों,क्षणभर को भी हटती नहीं.
प्यासी नज़रों को हसीं, चेहरा दिखा तो जाइये.
कल्पना मेरी बिलखती, वेदना सुन जाइये.
सज गई तारों की महफ़िल, आप भी सज जाइये.
कब तलक मैं यूँ अकेला, इस तरह जी पाउँगा.
इस निशा- नागिन के विष को, किस तरह पी पाउँगा.
इस जहर में अधर का, मधु रस मिला तो जाइये
याद जो हरदम रहे, वो बात तो कर जाइये
सज…
Continue
Added by satish mapatpuri on May 31, 2010 at 2:17pm —
8 Comments
एक और साल ख़त्म हुआ तेरे इंतज़ार का...
एक और जाम ख़त्म हुआ हिज़रे -ऐ-यार का
कई रिंद मर गए पीते-पीते,
साकी बता दे पता अब तू मेरे यार का
गिन-गिन के प्याला तोड़ता हूँ,
मै तेरे मैखाने में हर रोज़
कभी तो ख़त्म हो ये पैमाना तेरे इंतज़ार का
तुझे तो कातिल भी नहीं कह सकता
क्यूँ जिन्दा छोड़ दिया मुझे तड़पने को
सारे ज़माने से तनहा होगया
क्यूँ इतना तुझे प्यार किया
मुझे कहीं पागल न समझ बैठे जमाना
इसलिए थाम लिया लबो पे तेरे फ़साने को
अब…
Continue
Added by Biresh kumar on May 30, 2010 at 7:30am —
8 Comments
जब याद तेरी तडपाये
रातों को नींद न आये
कोई दर्द समझ न पाए
आने वाले अब तो आजा
सावन बीता जाए
जब याद तेरी तडपाये
बचपन में साथ जो खेले
सब दुःख सुख मिलकर झेले
हम रह गए आज अकेले
jab से वोह परदेस गए हैं
लौट कर फिर न आये
जब तेरी याद तडपाये
जब फैली तेरी खुशबू
सूखे आँखों में आंसू
है तुझमे ऐसा जादू
मिटटी को अगर हाथ लगा दे
तो सोना बन जाए
जब याद तेरी तडपाये
बरसे…
Continue
Added by aleem azmi on May 29, 2010 at 9:03pm —
9 Comments
ज़रा सोच लो
------------
दूसरों को ठोकरें मारने वालो
ज़रा सोच लो एक पल को
पराये दर्द का एहसास
तुम्हे भी सालेगा तब
ज़ख़्मी हो जायेंगे
तुम्हारे ही पाँव जब
दूसरों को ठोकरें मारते मारते
रजनी छाबरा
Added by rajni chhabra on May 28, 2010 at 2:40pm —
8 Comments
जिंदगी को कुछ यूँ गुज़ारना हमें मंजूर न था
हरने को हम तैयार थे पर जीतना उन्हें मंजूर न था
अजी करते भी तो क्या करते,
की आना उन्हें मंजूर न था इंतज़ार करना हमें मंजूर न था
बस जीते चले गए इसी तरह कुछ क्यूंकि
रोना हमें मंजूर न था,और हसना उन्हें मंजूर न था
हम तो कबसे बैठे ही थे उनका दामन थामने
पर क्या करे की हमारा साथ उन्हें मंजूर न था
मिलने की तो भरपूर छह थी,पर फिर वही किस्मत अपनी
की गिरना हमें मंजूर न था और उठाना उन्हें मंजूर न था
राहे तो हर पल मै…
Continue
Added by Biresh kumar on May 28, 2010 at 12:51am —
9 Comments
हम को भी तुमसे प्यार था और बेहिसाब था
था वक़्त आशिकी का दौरे शबाब था
आँखों में शराब जब वक्ते शबाब था
जुल्फे भी उनकी नागिन ऐसा जनाब था
जो तुम खफा हुए तो ज़माना खफा हुआ
हम पर खुदा कसम की कोई अज़ाब था
उसने जब अपने हाथ में मेहदी रचा लिया
सब कुछ मिटा के रख दिया जितना खवाब था
मुझसे बिछड़ के रुख की कशिश को भी खो दिया
चेहरा था पुर कशिश कोई ताज़ा गुलाब था
अलीम के होश उड़ गए देखा जो एक झलक
कयामत वो ढा रहा था और बेहिजाब…
Continue
Added by aleem azmi on May 25, 2010 at 9:35pm —
7 Comments
हा मैं पिता हु ,
और मुझे गर्व हैं ,
की मैं पिता हु ,
माँ को दुःख था ,
की मैं पिता नहीं हु ,
घर वाले परेशान रहते थे ,
की मैं पिता नहीं हु ,
आज मैं पिता हु ,
सब खुस हैं ,
माँ रहती तो ओ भी ,
खुश होती ,
मेरी पत्नी कहती हैं ,
की मैं पिता हु ,
कसम से मैं झूठ नहीं बोलता ,
मैं पिता हु ,
अपने दो बच्चो का पिता हु ,
Added by Rash Bihari Ravi on May 25, 2010 at 1:43pm —
6 Comments
दौरे गम में भी सबको हंसाते रहे .
आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे .
किसमें हिम्मत जो हमपे सितम ढा सके .
वो तो अपने ही थे जो सताते रहे
जिन लबों को मुकम्मल हँसी हमने दी .
वो ही किस्तों में हमको रुलाते रहे .
उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .
काश !मापतपुरी उनसे मिलते नहीं .
जो मिलाके नज़र फिर चुराते रहे .
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611
Added by satish mapatpuri on May 24, 2010 at 4:00pm —
5 Comments
दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता,
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता,
ऐसे ही गुज़रते दिन,और फिर महीना गुज़र जाता,
महीने गुज़रते केवल तो कोई बात न थी
पर कमबख्त पूरा साल भी गुज़र जाता
बस दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता
जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता
वक़्त का कहीं कोई रिश्तेदार भी न है
की दो पल कहीं बैठता और जरा बतियाता
इस्पे बस चलने का धुन सवार है
कोई कितनी भी दे सदा,
ये न रुकता बस चला जाता
इंसान बस गिनता रहता है घड़ियाँ…
Continue
Added by Biresh kumar on May 22, 2010 at 11:07pm —
6 Comments
देख कर लोग मेरे साथ में जल जाते है
हम कभी साथ में तनहा जो निकल जाते है
याद आये मेरी तस्वीर लगाना दिल से
देख तस्वीर तेरी हम भी बहल जाते है
तू में खाई है कसम साथ निभाना होगा
करके वादे को सभी लोग बदल जाते है
होके दीवाना मैं गलियों में फिरा करता हू
वह कभी सज संवर के जो निकल जाते है
है उन्हें नाज़ जवानी पे ये मगर ए अलीम
देखकर हमको सभी लोग अहल जाते है
aap kabhi bhi hume yaad kar sakte hai kyuki kuch dino ke liye aapse…
Continue
Added by aleem azmi on May 22, 2010 at 9:33pm —
6 Comments
वो सफ़र की घड़ी
वो मुहब्बत की छड़ी
वो श्वेत मुस्कान की लड़ी
जैसे मानो दुनिया ही खड़ी
ऐसी अदा दिखलाके वो
जाने कहाँ गुम हो गयी
मुझे तन्हा छोड़ के गयी
मुझे बेसहारा कर के गयी..
उसका नज़रें चुराना
शर्म से पलकें झुकाना
हर अदा को छुपाना
जैसे खुद ही को झुठलाना
इतना करके भी वो खुद को रोक ना सकी
जैसे रुँधे गले से मेरा नाम ले गयी
खुद को झुठलाके वो खुद ही गुम हो गयी
वो अंजानी नगर
वो अनचाहा सफ़र
वो…
Continue
Added by ABHISHEK TIWARI on May 22, 2010 at 4:32pm —
5 Comments
लोरी---एक राजस्थानी लघुकथा
फुटपाथ पर जीवन बितानेवाली एक गरीब औरत,भूखे बालक को गोद में लिए बैठी थी.भूखे बालक की हालत बिगड़ती जा रही थी.
थोड़ी दूरी पर,बरसों से जनता को सुंदर,सुंदर,मीठे मीठे सपने दिखने वाले नेताजी भाषण बाँट रहे थे.
भाषण के बीच में बालक रो दिया.माँ ने कह,"चुप,सुन,नेताजी कितनी मीठी लोरी सुना रहें हैं." नेताजी कह रहे थे,"मैं देश से गरीबी-महंगाई मिटा दूंगा.देश फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा,घी दूध की नदियाँ बहेंगी
.कोई भूखा नहीं मरेगा...."
यह सुन कर खुश होती…
Continue
Added by rajni chhabra on May 22, 2010 at 10:15am —
9 Comments
खुद से बाहर निकल नही सकता
बर्फ हूँ पर पिघल नही सकता
मेरे अंदर दबा है ज्वालामुखी
आग लेकिन उगल नही सकता
तेरी आँखे बदल भी सकती हैं
मेरा चेहरा बदल नही सकता
मुझ को मिट्टी मे तुम मिला भी दो
तेरे साँचे मे ढल नही सकता
मुक्त आकाश का मैं पंछी हूँ
किसी पिंजरे मे पल नही सकता
Added by fauzan on May 22, 2010 at 1:36am —
11 Comments
वो घटा आज फिर स बरसी है
मुद्दतों आँख जिस पे तरसी है
कल तलक जो मेरा मसीहा था
आज उसकी ज़बा ज़हर सी है
मर मिटा आपकी अदाओं पर
हर अदा आपकी कहर सी है
रूठ जाना ज़रा सी बातों पर
यह अदा भी तेरी हुनर सी है
खो न जाऊ तुम्हारी आँखों में
आँख "अलीम" तेरी नगर सी है
Added by aleem azmi on May 21, 2010 at 2:48pm —
6 Comments
मैं रोता रहा रात भर चुपके चुपके
गई रात आई सहर चुपके चुपके
वह कुर्बत बढाने लगा आजकल है
मिलाता है मुझसे नज़र चुपके चुपके
तेरी चाहतें खीच लायी येह तक
मैं आया हू तेरे नगर चुपके चुपके
लगाया था तुमने मोहब्बत का पौधा
वह होने लगा है शजर चुपके चुपके
तेरी आशिकी का है चर्चा शहर में
यह फैली "अलीम" खबर चुपके चुपके
शजर - पेड़ , दरख़्त
कुर्बत - करीब आना
Added by aleem azmi on May 21, 2010 at 1:59pm —
4 Comments
इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए
आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए
अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए
गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......
Added by दुष्यंत सेवक on May 21, 2010 at 11:42am —
5 Comments
ये अंधकार ये वातावरण जो भय का है.
यही समय तो नये सूर्य के उदय का है.
ये ज़िंदगी का बही जाने किस समय का है.
ना इसमे आय का व्योरा ना कोई व्यय का है.
परास्त हो के भी अब मन मेरा उदास नही.
किअबकी हार मे भी स्वाद कुछ विजय का है.
भटक रहा हूँ जो जीवन के इस मरुस्थल मे
है इसमे दोष किसी का तो बस समय का है.
Added by fauzan on May 20, 2010 at 10:40pm —
5 Comments
तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हू
महसूस हुआ है तुम्हे देख रहा हू
ऐसा भी नहीं है तुम्हे याद करू मैं
ऐसा भी नहीं है तुम्हे भूल गया हू
शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हू
ए रात मेरी सम्त ज़रा सोच के बढ़ना
मलूँ नहीं तुम्हे क्या मैं अलीम जिया हू
तकब्बुर - घमंड
सम्त - मेरी तरफ , जानिब
जिया -रौशनी उजाला
Added by aleem azmi on May 20, 2010 at 10:05pm —
5 Comments
ओ दिल्ली वालो ,
हमें इतना बताओ ,
हिन्दुस्ता पे जो खाज परे हैं ,
उसको कब मिटाओगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
हिन्दुस्ता पे बहुत ऐसे खाज हैं ,
उसको मिटाना जरुरी आज हैं ,
मेहमान बनाके कब तक ,
पैसा लुटाओगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
मेरी नहीं ये ,
देश की मांग हैं ,
आपको तो भोट दीखता ,
हमें हिंदुस्तान हैं ,
हिंद में ख़ुशी का ,
दिन कब लावोगे ,
अफजल गुरु को ,
फासी कब चढाओगे ,
हिन्दू ,…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 2:10pm —
5 Comments