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डॉ. सूर्या बाली "सूरज"'s Blog – May 2012 Archive (6)

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी।

अश्क़ों से अपने गाल भिगोया नही कभी॥

 

हर सिम्त है धुआं यहाँ हर सिम्त आग है,

इस खौफ़ से ही चैन से सोया नही कभी॥

 

दिल में जिगर में था वही साँसों में…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 28, 2012 at 9:30pm — 17 Comments

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें

शहर ये हो गया शमशान कहीं और चलें॥

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें॥



कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ,  

है नहीं कोई भी इंसान…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 24, 2012 at 7:30am — 11 Comments

रात आती है तेरी यादें सुहानी लेकर

रात आती है तेरी यादें सुहानी लेकर।

फिर मोहब्बत की वही बातें पुरानी लेकर॥

 

ख़्याल जब तेरा सताता है मुझे रातों को,

सिसकियाँ लेता हूँ मैं आँखों में पानी लेकर॥…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 19, 2012 at 12:30am — 14 Comments

सामने है खड़ी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे

सामने है खड़ी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे।

रास्ता हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे॥

अब तो हर चीज़ जुदाई में बुरी लगने लगी,

फूल भी लगने लगे ख़ार ख़ुदा ख़ैर करे॥…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 10:00am — 13 Comments

दिल मेरा फिर से सितमगर तलाश करता है।

दिल मेरा फिर से सितमगर तलाश करता है।

आईना जैसे के पत्थर तलाश करता है॥

एक दो क़तरे से ये प्यास बुझ नहीं सकती,

दिल मेरा अब तो समंदर तलाश करता…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 16, 2012 at 2:00pm — 16 Comments

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।

तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥

दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,

मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 7, 2012 at 9:30pm — 18 Comments

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"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
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