Added by MAHIMA SHREE on May 27, 2012 at 5:00pm — 22 Comments
आत्मावलोकन के क्षणों में
मन मेरे
जब तू जूझता
डूबता , उतराता
फिर थक के बैठ
किनारे सुस्ताता है
औ तब ये सब
देख रही होती हैं
मेरी आँखे
सबसे परे
उन सारे पलों को
तुझे जीते हुए
औ तभी
विहँस पड़ती हैं
उसी क्षण
जब उनमें से
चुन लेता है तू
एक मोती
18th May2012
Added by MAHIMA SHREE on May 18, 2012 at 10:10pm — 22 Comments
Added by MAHIMA SHREE on May 12, 2012 at 6:30pm — 26 Comments
Added by MAHIMA SHREE on May 10, 2012 at 4:15pm — 17 Comments
हां भीड़ में शामिल
मैं भी तो हूँ
रोज
अलसुबह उठ के
जाती हूँ
शाम को आती हूँ
दूर से देखती हूँ
कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ
Added by MAHIMA SHREE on May 10, 2012 at 4:00pm — 26 Comments
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