जुदाई है महरुमी-ए-मरज़ क्या, जुदाई कहे क्या
हो ज़िन्दगी में खुशी का मौसम या मातम इन्तिहा
कर देती है दिल को बेहाल हर हाल में यह
रातें मेरी हैं बार-ए-गुनाह अब जुदाई में तेरी
किस्सा: है कुश्त-ए-ग़म, यह तसव्वुर है कैसा
कहीं आकर पास दबे पाँव न लौट जाओ तुम
नींद तो क्या यह रातें अंगड़ाई तक हैं लेती नहीं
अंजाम के दिन बुला कर आख़िर में पूछेगा जो
आलम अफ़्रोज़ खुदा उसूलन पास बुला कर मुझे
यूँ मायूस हो क्यूँ? मलाल है? आरिज़: है…
ContinueAdded by vijay nikore on May 28, 2018 at 1:30pm — 10 Comments
मधुर अप्राकृत प्यार ...
करी थी जिसकी इन्तज़ार
ज़िन्दगी भर ... ज़ार-ज़ार
आया है स्वयं अब वसन्त बन
निकटतम आस-पास, इतना पास
ज़िन्दगी के इस पढ़ाव पर
तुम आई रवि-रश्मि बन प्रिय
तुम्हारे अप्रतिम स्नेह में मानो
मैं हूँ विराजा राज-सिहाँसन पर
परी-सी आई हो किस निद्रा के द्वार
झूम रहे स्नेह के हल्के-हल्के उदगार
उपवन में गा रहे कोयल, फूल, और धूप
हर्षित है संग उनके यह खुला…
ContinueAdded by vijay nikore on May 16, 2018 at 11:00pm — 3 Comments
गुलज़ार प्यार का
हर रात उसी ग़मरात का ज़िक्र न कर
नातुवां ग़म को अपने तू गैरअहम कर
ज़िन्दगी में माना गर्द-ए-सफ़र है बहुत
ग़म-ए-पिनहाँ का रोज़ रंज-ओ-ग़म न कर
यूँ खामोश न रह, उदास और न हो
वादा यह पक्का कि लौट आऊँगा मैं
दिन में सही या रातों में तुम्हारी.. या
आ कर मुस्कराऊँगा ख़्वाबों में कभी
गालों पर मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on May 7, 2018 at 5:39am — 8 Comments
एक उखड़ा-दुखता रास्ता
(अतुकांत)
कभी बढ़ती, कम न होती दूरी का दुख शामिल
कभी कम होती नज़दीकी का नामंज़ूर आभास
निस्तब्ध हूँ, फड़क रही हैं नाड़ियाँ
देखता हूँ तकलीफ़ भरा बेचैन रास्ता ...
खाली सूनी नज़र से देख रहा है जो कब से
मेरा आना ... मेरा जाना
घूमते-रुकते हताश लौट जाना
कुछ ही देर में फिर चले आना यहाँ
ढूँढने…
ContinueAdded by vijay nikore on May 6, 2018 at 11:43am — 14 Comments
पिघलती हुई मोम
(अतुकांत)
हम दोनों .... दो छायाएँ
अन्धकारमय एकान्त में
फूटे हुए बुलबुलों-सी
सुन्न हो रही भावनाएँ
कितनी नदियों का संगम…
ContinueAdded by vijay nikore on May 5, 2018 at 6:00am — 9 Comments
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