2122 1122 1122 22 /112
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तुम जो चाहो तो ये गिर्दाब, किनारा लिख दो
डूब भी जाये कोई , पार उतारा लिख दो
कैसे उस चाँद को धरती पे उतारा लिख दो
कैसे आँगन में हुआ खूब नज़ारा लिख दो
खटखटाने से कोई दर न खुले, तो दर पर
बारहा मैने तेरा नाम पुकारा लिख दो
जंग अपनो से भला कैसे कोई कर लेता
ख़ुद को जीता, तो कहीं मुझको ही हारा लिख दो
हो यक़ीं या कि न हो तुम तो लिखो सच अपना
दश्ते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:30am — 59 Comments
आज तुम असमंजस में क्यूँ हो
देखकर गंगा में बहते फूलों को
जब तुम ही नहीं हो अब सुनने को
अब अपाहिज हुए अनुभूत तथ्यों को
अंधेरे बंद कमरे में कल रात
बड़ी देर तक ठहर गई थी रात
अकुलाती, दर्द भरी, रतजगी
आस्था रह न गई
ख़्यालों के अनबूझे ब्रह्माण्ड में
छटपटाती छिपी हुई कोई गहरी पहचान
भोर से पहले रात की अंतिम-दम चीखें
अन्धकार भरे अम्बर में जीवन्त पीड़ा
ऐसे में हमारे निजी अनुभूत तथ्यों ने
लिख कर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 15, 2016 at 1:55am — 18 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 10:00am — 8 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २१२
आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये
हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना
अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये
दिल हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा
मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये
जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू
हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 13, 2016 at 1:57pm — 12 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 12, 2016 at 5:15pm — 8 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 12, 2016 at 12:36pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
नाम को गर बेच कर व्यापार होना चाहिए
दोस्तों फिर तो हमें अखबार होना चाहिए
आपके भी नाम से अच्छी ग़ज़ल छप जायेगी
सरपरस्ती में बड़ा सालार होना चाहिए
सोचता हूँ मैं अदब का एक सफ़हा खोलकर
रोज़ ही यारो यही इतवार होना चाहिए
क्या कहेंगे शह्र के पाठक हमारे नाम पर
छोड़िये, बस सर्कुलेशन पार होना चाहिए
हम निकट के दूसरे से हर तरह से भिन्न हैं
आंकड़ो का क्या यही मेयार होना…
Added by Ravi Shukla on June 9, 2016 at 5:00pm — 25 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 8, 2016 at 11:30am — 14 Comments
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 6, 2016 at 9:30pm — 17 Comments
"अबे तू मुंह बन्द करके बैठेगा, देखता नहीं बड़े लोग आपस में बात कर रहे हैं"
थानेदार ने घुड़की पिलाई और पत्रकार मित्र की ओर खींसे निपोरी। बेचारा शंकरा और सिमट गया, मुलिया ने बारह वर्षीया चुन्नी के पैरों पर का कपड़ा ठीक किया और बड़बड़ाने लगी दिमाग ठिकाने नहीं था उसका जब से बेटी की ऐसी हालत देखी थी चारों तरफ लाल ही रंग दिख रहा था उसे। पत्रकार महोदय ने कहा:
"ये तो और भी अच्छा है कि शंकरा नेता जी के घर के पास वाली झुग्गियों में रहता है नहीं तो चैनल…
ContinueAdded by Abha Chandra on June 3, 2016 at 4:00pm — 24 Comments
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