जाने क्यो उदास है
मेरा मन
जाने क्यों निराश है
मेरा मन
जाने क्यों हताश है
मेरा मन
अधरों से फूटते नही बोल
घुटन सी होती है इस मन में
चुभन सी होती है इस तन में
चंचलता से भरा मेरा मन
जाने क्यों उदास है
लगता है ऐसे कोई नही
अपना आस-पास है
अपनों को खोजता ये मन
लिए तड़पन, लिए लगन
आँसूओं की धारा में
गुम-सुम हुआ मेरा मन
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 29, 2013 at 11:13am — 15 Comments
वंदना हम कर रहे
माँ शारदे माँ शारदे
अज्ञान के अंधेरों से
तू हमें तार दे
हम तो अज्ञानी हैं
ज्ञान से संवार दे
माँ शारदे------------
.
श्वेत वस्त्र धारणी
कमल पे विराजती
वीणा के तार की
झंकार दे झंकार दे
माँ शारदे----------
.
चरणों में तेरे हम
शीश को झुका रहे
ज्ञान की ज्योति
हमको उपहार दे
माँ शारदे------------
मौलिक व अप्रकाशित------
Added by Pragya Srivastava on June 21, 2013 at 11:00am — 9 Comments
वो आवाज
जो पल भर पहले था कितना खुशहाल
अचानक हुई एक धमाके की आवाज
उस धमाके की आवाज से बंद हुई पलकें
जब खुली तब तक,
खत्म हो चुका था सब कुछ
रह गए थे टूटे हुए बर्तन,
बिखरी हुई चूड़ियाँ, छितराई हुई लाशें,
फैला हुआ खून, ढ़ूढ़ती हुई आँखें,
एक अकेले रोते हुए बच्चे की आवाज
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 20, 2013 at 12:34am — 9 Comments
घटाएँ काली-काली हैं
शायद बरसने वाली हैं
वन उपवन हैं प्यासे कब से
तरस रहे हैं पानी बरसे
खेतों और खलिहानों को
मजदूर और किसानों को
आस जगी है अब तो बरसें
बरसों बीत गए हैं बरसे
बरसे तो सबका मन हर्षे
तपन मिटे इस धरती की
हरियाली की चादर फैले
मोर पपीहों का दिल बहले
नाचे लोग घर उपवन में
नव जीवन का संचार हो मन मे
खिलें फूल मुस्काए हर मन
उमड़-घुमड़ कर बरसो…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 17, 2013 at 4:47pm — 16 Comments
आशा के सहारे इंसान अपनी सारी उम्र गुजार देता हैI यही कि अब अच्छा होने वाला है अब सब सही हो जाएगा1 मैं सोचती हूँ क्या सचमुच सब सही हो जाएगाIजिंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगेगी1भगवान देता है माना पर मुझे दिया अस्त-व्यस्त बिखरा हुआI अब उसे समेटना हैI यहाँ संभालो तो वहाँ की चिंता,वहाँ संभालो तो यहाँ की चिंता क्या करूं?पता नही कब सब कुछ सही होगा,होगा की नही1 जीवन के इस करूक्षेत्र में आशा और निराशाके इस महाभारत में कहीं कौरव न जीत जाए1भगवान कृष्ण तुम कहाँ हो? सुनते क्यों नही ?पुकारते-पुकारते थक गई…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 15, 2013 at 11:41am — 4 Comments
मन की किताब के कुछ पन्ने
तुमको सुनाती हूँ मैं
कहीं पे हैं खुशियाँ खुद को समेटे
और गम हैं देखो चादर में लिपटे
सलवटें हजारों दर्द की पड़ी हैं
आशा की किरण पट खोले खड़ी है
खिड़कियों से उमंगें पवन बन के आती
देखो झरोखों से फिर जा रही हैं
कमरे के कोने में छिपी बैठी चाहत
लाल सुर्ख साड़ी में मुस्कुराहट शरमा रही है
हंसी फूलों में खिलखिला रही…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments
सच एक सवाल हो गया
झूठ का धमाल हो गया
कमाल हो गया, कमाल हो गया
नोट है तो वोट है
हर चीज में खोट है
चोट पर चोट है, चोट पर चोट है
धूप है छाँव है
अनकहे,अनछुए घाव ही घाव हैं
नोचता ,कचौटता मन को मसौसता
राह का पता नही ढ़ूढ़ता फिर रहा
कोई तो बता दे
ये सच कहाँ रहता है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 13, 2013 at 12:33pm — 7 Comments
पेड़ पर बैठी चिड़िया बोली
ओ जंगल के राजा
मानव कितना अभिमानी है
इसको तू खाजा
स्वार्थ में आकर छीन रहा था
मेरा घर वो आज
बच्चे मेरे बिलख रहे थे
कैसी गिरी ये गाज
ना जाने क्या सोच कर उसने
ये पेड़ आज नही काटा
पेड़ भी बोला गुस्से से
मारूंगा एक चांटा
छाया देता ,फल भी देता
और आसरा सबको
फिर भला ये मानव
काट रहा क्यों मुझको
सुन कर सारी बातें
शेर जोर से दहाड़ा
आने दो कल मानव…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 10, 2013 at 11:04am — 5 Comments
भक्ति में शक्ति है1 ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम लक्ष्य है1 योग साधना है1योग हो या भक्ति दोनों ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं1योग हमारे शरीर, मन –मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है और इस साधना के बगैर भक्ति संभव नही1 हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जीवन मिला1 हम जन्म से लेकर मृत्यु तक सांसारिक बंधनों में लिप्त रहतें हैं1 बल्कि हमारा उदेश्य तो सांसारिकता को छोड़कर ईश्वरीय अराधनाओं में होना चाहिए वही तो सच्चा ज्ञान है1जब तक हम शिक्षित नही होंगे पहचानेगें कैसे कि सच क्या है? हमें इस जीवन का…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:35pm — 5 Comments
आज बढ़ सकते हैं दाम
हाय राम, आम तो आम
बढ़ सकते हैं गुठलियों के भी दाम
ये महँगाई सुरसा के मुहँ की तरह
बढ़ती ही जा रही है
अपनी हरकतों से बाज नही आ रही है
सरकारी नीति यही समझा रही है
जनसंख्या वृद्धि को रोकने मे
महँगाई बहुत बढ़ी भूमिका निभा रही है
भूखे मरेंगे लोग
तरसेगें पीने के लिए जल
आज नही तो कल
जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या का
अपने आप निकल जाएगा हल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:12pm — 12 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |