तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
गिरने न दूंगा धरा मध्य
बाहों में ले उड़ जाऊँगा
तू बादल है मैं मस्त पवन
उड़ते फिरते उन्मुक्त गगन
.
मन के सूने आँगन में
मस्त घटा बन छायी हो
रीता था जीवन मेरा
बहार बन के आयी हो
जम के बरसो थमना नहीं
प्यासा न रह जाए ये…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:14pm — 1 Comment
नीम में लगती दीमक
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण
एक दूजे पे विश्वास नहीं
रिश्तों का प्रबल क्षरण
जुड़ने के आसार नहीं
घर घर छिड़ा अब रण
मीठा स्वप्न संसार नहीं
चन्दन लिपटत न भुजंग
शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 5:30pm — 14 Comments
जुम्मन अब्बू से बोला
दो पैसा बदलूँ चोला
निठल्लू जवान खाते गोला
सुधरो जल्दी तुमको बोला
पैसा न एक मेरे पास
कमाओ खुद छोडो आस
धंदा कोई न आता रास
बाजार करता न विश्वास
जेब कटी की सारी कमाई
पुलिस ले उडी भाई
युक्ती सुन्दर तुम्हे बताता
बन जा नेता का जमाता
अच्छी है ये तुम्हरी सीख
मांगनी पड़े अब न भीख
छुट भैया में बड़ा लोचा
करूँ धंधा कई बार सोचा
पनवाडी ने करा खाता बंद
सब बोले धंदा है मंद
माल मुफ्त अब…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 4:54pm — 12 Comments
गांधी टोपी पहन के भागे कुरता पैजामा सिलवाने बाबा जी
कितना प्यारा देश का मौसम जनता को उल्लू बनाने बाबा जी
कर जोर मांगते भीख वोटन की पाकर जीत तन जाते बाबा जी
चोर चोर मौसेरे भाई बैठ संग देश की लाज लुटाते बाबा जी
मुन्नी संग कमर मटकाते जेल में राखी बंधवाते बाबा जी
सर्वस्व…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 1:37pm — 2 Comments
कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई. झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.
"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........."
दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.
"ये…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चली शीतल पवन
आशाएं तरंगित हो गयी
बरसेगा धरती पे जल
किसान चलाएगा हल
डालेगा बीज खेतों में
स्वर्णिम होगा घर घर
बरखा बूँदें गिरने से
धरा तो गीली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चला पानी धरती पर
अमूल्य है ये निर्मल जल
हो जाए कहीं बेकार नहीं
बना के मेड़ों पर बंद
जल निकास नाली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 3:00pm — 11 Comments
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
मासूम सी कली तू बगिया में खिली है
थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है
चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए
खा गया था काल तुम थे रो…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 1:22pm — 8 Comments
बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है
था कभी जो गाँव अपना शहर पुराना लगता है
मेड पर गिरते पड़ते छुप जाते थे खेतों में
नदी किनारे बनाते घरोंदे मिटाते थे रेतों में
बरसते पानी में छप छपाना अच्छा लगता है
बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है
कूकती कोयल अमरिया आसमा की अरुणाई
तप्त दुपहरिया पेड़ तले सालन रोटी खाई
माँ के हाथों घूंघट ओट मुस्कराना अच्छा लगता है
बीती बातें याद कर मुस्कराना अच्छा लगता है
वो रहट की आवाजें वो गन्ने…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 12, 2012 at 5:00pm — 20 Comments
बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी ओए
पाकिस्तान बना समुन्दर चीन चलाये चप्पू जी
रामदेव का स्वदेशी अभियान बना रहा भारत महान
काला धन और भ्रष्टाचार देश की परम सुखी संतान
अन्ना को देश गांधी बोले हुंकार की उसके सिंहासन डोले
थे कभी अलग अलग दोनों अब अन्ना संग राम देव बोले
बाबा जी ओए बाबा जी गाओ सा रे गा मा जी
जनता में विश्वास जगा है जान गए किस किस ने ठगा है
राम देव को मिल गया ज्ञान क्या दगा है कौन सगा है
सोयी जनता चेत रही है बेईमानों को देख रही है…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 11:30am — 16 Comments
बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस
चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास
सात दीप और सात समुन्दर
सुन्दर कृति जल थल नभ पर
सात सुरों से संगीत बजता
पंचम पे पा सप्तम नी सजता
पंचम से गीत जब सजता
सप्तम बिना कंठ नहीं रुचता
पंचम सप्तम जब मिल जाते
गीत मनोहर सुन्दर भाते
जीवन का सुन्दर आधार
पंचम सप्तम का युगल संसार
तत्व समझते मुनिवर विज्ञानी
श्रष्टि जीवन शून्य बिन पानी
जल बिन जीवन मीन बिन पानी
पानी जीवन पर्याय बना है…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:00am — 6 Comments
ऋषि मुनियों की ये धरती
बहती ज्ञान की गंगा
योगी सिद्ध जन पूजे जाते
था मन निर्मल तन चंगा
कोई गाये लहराए कोई पूछे
बाबा रे बाबा तेरा रंग कैसा
दिव्य मुस्कान ले बाबा बोले
जिसमें मिला दो उस जैसा
काल बदला विचार बदला
आदमी का हाल बदला
अंधविश्वास आधुनिकीकरण की दौड़
बाबाओं ने भी चोला बदला
बिकता पानी बिकता खून
बिकती भूख गिरते भ्रूण
अस्मत बिकती कटते वन
सफ़ेद चोला काला मन
बिक रही जब हर चीज
बाबा फिर…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 7, 2012 at 9:30pm — 12 Comments
जीवन और मृत्यु
आत्मा परमात्मा
सत्य और असत्य
शाश्वत मूल्यों का सत्य
धूप और छाँव
साथ नहीं होती
गमछा संग धोती
बिना सीप मोती
बगैर दीप ज्योति
स्त्री स्त्री देख रोती
पोता हो या पोती
कैसे मिलता जीवन का
अनुपम सुन्दर उपहार
किसी घर में बेटी न होती
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 4:30pm — 22 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |