212 212 212 212
जो चला वो नमाज़ी फँसा रह गया !
दूरियाँ घट गयीं फासला रह गया !!
ज़िन्दगी बंदगी हो सकी गर खुदा,
दूर था प्यार वो पास आ रह गया !!
ना रहा कोई अपना जहाँ दोस्त जाँ,
जीस्त होती रही दिल जला रह गया !
क्या हुआ गर तुम्हारा वो सर झुक गया,
झूठ का दम रहा बेमज़ा रह गया !!
साजिशें चाहे जितनी करे कोई याँ,
सर मरासिम का पर बारहा रह गया !
बख्श…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 4:08pm — No Comments
अपर्याप्त तो सोचना, किए बिना प्रयास। हो प्रयास उसके लिए, पूरी तब हो आस॥ |
इच्छाएँ सीमित रहें, दें प्रकृति को मान। |
तन को ढकने के… |
Added by Om Parkash Sharma on July 4, 2021 at 11:30pm — 8 Comments
1222 1222 122
खबर झूठी उड़ाना चाहता हूँ,
तेरी यादें छुपाना चाहता हूँ।
तुम्हारे पास थोड़ा वक्त हो तो,
मैं हाले दिल सुनाना चाहता हूँ।
रकीबों की गली में आ गया हूँ,
तेरे घर में ठिकाना चाहता हूँ।
जो मेरी जान के दुश्मन बने हैं,
उन्हीं के हाथ आना चाहता हूँ।
बवंडर क्यों उठा है सरहदों पर,
मैं सबको सच बताना चाहता हूँ।
सियासत ,घर के झगड़े, दिल की बातें
मैं सब से दूर जाना…
Added by मनोज अहसास on July 3, 2021 at 8:39pm — 2 Comments
ग़ज़ल-221 1222 22 221 1222 22
इस बहर में मेरी ये पहली ग़ज़ल है यह मतला लगभग 2 वर्ष पहले हुआ था लेकिन यह ग़ज़ल पूरी नहीं हो रही थी इसका कारण यह है कि मैं इस बहर में सहज महसूस नहीं कर रहा था यह बहर मेरी समझ में ही नहीं आ रही आज किसी तरह यह पूरी हुई है जानकार लोग बताएं कि क्या यह बहर ठीक से निभाई गई है या नहीं....
मरने का बहाना मिल जाता, जीने की सज़ा से बच जाते,
इक बार कभी वो आ जाते जो आ न सके आते आते ।
महसूस कभी होता कैसे वो दर्द का रिश्ता टूट गया…
ContinueAdded by मनोज अहसास on July 3, 2021 at 12:06am — 7 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
है कौन ऐसा जिसको यहाँ आज ग़म नहीं
हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं
दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक
साँसें हुईं मुहाल कि मसला शिकम नहीं
ग़म को वसीह करते ये अटके हुए बदन
नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं
आई वबा ये कैसी कि मातम है हर तरफ़
ग़मगीन चहरे लाशों पे लाशें भी कम नहीं
मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:15pm — 17 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम)
जगह दिल में तुम्हारे अब भी थोड़ी सी बची है क्या
मेरे बिन ज़िन्दगी में जो कमी सी थी वही है क्या
अभी तक आरज़ू जो दफ़्न कर रक्खी है सीने में
तड़प उसकी जो सुनता हूँ वो तुमने भी सुनी है क्या
तेरे साँसों की गर्मी से पिघल कर रह गया हूँ मैं
जो हालत हो गई मेरी वही तेरी हुई है क्या
मिले हो जब भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 6:04pm — 7 Comments
कौन कहता घाव अपने सी रहा है आदमी
आजकल तो खून अपना चूसता है आदमी।१।
*
देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
*
जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।
*
प्यास होने पर मरुस्थल छान लेता नीर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments
स्वयं को आजमाने को
तू खुलकर आ जमाने में
बहुत अनमोल है जीवन
गवाँता क्यों बहाने में
नदी के पास बैठा है
दबा के प्यास बैठा है
तुझे मालूम है, तुझमें
कोई एहसास बैठा है
किनारे कुछ न पाओगे
मिलेगा डूब जाने में
तुम्हारे सामने दुनिया
सुनो रणभूमि जैसी है
स्वयं का तू ही दुश्मन है
स्वयं का तू हितैषी है
कहीं पीछे न रह जाना
स्वयं से ही निभाने में
कहाँ दसरथ की दौलत …
Added by आशीष यादव on July 1, 2021 at 2:30am — 4 Comments
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