Added by Ravi Prakash on August 21, 2013 at 5:30am — 7 Comments
Added by Ravi Prakash on August 15, 2013 at 10:18pm — 7 Comments
Added by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 9:00pm — 25 Comments
Added by Ravi Prakash on August 5, 2013 at 7:27pm — 13 Comments
प्रथम प्रयास
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1. बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।
शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।
कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।
कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥
2.
सादर है अधिकार तुम्हें तुम रूप-सुधा अविराम लुटाना।
तारक,हीरक या मणि-कांचन-मंडित जीवन पे इतराना।
यौवन की चिनगी दिखला कर प्रेम-हुताशन भी सुलगाना।
प्यास बुझे न नदी-जल से जब सागर के तट गागर लाना॥…
Added by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 8:00am — 11 Comments
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