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SANDEEP KUMAR PATEL's Blog – August 2012 Archive (19)

नए कवि की तरह

खूँटी पे लटकी

खाली पोटली

मुँह ताक रही है

कोई आएगा

जो झाड़ देगा

इसमें जमी धूल

बिलकुल वैसे ही

जैसे मुक्तिबोध

की कोई कविता

टंगी हो 

समीक्षक के

इंतज़ार में

लेकिन उसे नहीं पता

अब कोई नहीं छेड़ेगा

उस खाली पोटली को

क्यूंकि वो एंटीक है

उसे म्यूजियम में रखा जायेगा

प्रदर्शनी की सोभा सा

क्यूँ कोई जीर्ण-उद्धार करेगा

फिर उदाहरण के लिए

क्या दिखाएगा

कुछ भी नहीं

अब तुम दुष्यंत की…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 3:30pm — 12 Comments

मेरी सोच

मेरी सोच

तत्पर सी
जिज्ञासा शून्य
सब कुछ जानती हो जैसे
क्या होगा क्या नहीं ???
शब्दों में बिलबिलाती
भावों में छट-पटाती सी
स्वरों में मचलती सी
तोड़ने को चक्रव्यूह
बिलकुल अभिमन्यु की तरह

भेद जाती है चक्रव्यूह
पहुँच जाती है भीतर
पर लौटते वक़्त
तोड़ देती है दम
कौरवी छल से हुए आक्रमण
और दमन चक्र से
बच नहीं पाती है
"मेरी सोच"

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 2:42pm — 2 Comments

देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं

देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं

सोन चिड़िया की कथा भी स्मरण होती नहीं



हो रहे पत्थर मनुज सब आँख का पानी सुखा

जल रहे हैं आग में लेकिन जलन होती नहीं



मर चुका ईमान सबका बेदिली है आदमी

फिर रहीं बेजान लाशें जो दफ़न होती नहीं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 1:00pm — 10 Comments

माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया

हमको देखे बिना उसने हाँ कह दिया

मेरे खाना-ए-दिल को मकाँ कह दिया



चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए

माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया



आग तडपी तपिश तिल-मिलाने लगी

सर्द से कोहरे को धुआँ कह दिया



छोड़ के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 30, 2012 at 1:57pm — 8 Comments

मीर का अंदाज अब गुजरा ज़माना हो गया

आप से नज़रें मिली दिल आशिकाना हो गया

यार से दिलबर हुए मौसम सुहाना हो गया



लोग अफसाने बना बातें हसीं करने लगे 

आपके घर जो मेरा आना-जाना हो गया



छू रहीं साँसे गरम ठंडी ठंडी आह भर

आँख का झुकना बड़ा ही कातिलाना हो गया…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 29, 2012 at 3:00pm — No Comments

मुझे यकीं है, समझ न सकोगे तुम

मुझे यकीं है

समझ न सकोगे तुम

 

दुनिया की रस्में

उल्फत की कसमें

क्यूंकि तुम हो ही नहीं

खुद के वश में



तुम हर रोज चलते हो

नित नए सांचे में ढलते हो…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 3:02pm — 3 Comments

=====ग़ज़ल =======

=====ग़ज़ल =======



एक तूफाँ यहाँ से गुजरा है

आइना जो मकाँ से गुजरा है



आरजू भीगने की फिर जागी

अब्र इक आसमाँ से गुजरा है



इश्क करके दिले नाशाद हुए

दर्द दिल और जाँ से गुजरा है



चश्म क्यूँ…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 9:25am — 2 Comments

नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही

नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही

रही जो याद वो शहद सी मीठी बात सही



ग़मों में मुस्कुरा रहा हूँ गहरे जख्म छुपा

दिले-नाशाद क्यूँ फिरूँ जो रहना शाद सही



उजाले चीखने लगे जो तुझको देख अगर

अँधेरी गर्दिशों भरी ही काली रात सही



तुझे तो था…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 24, 2012 at 10:14am — 6 Comments

अलविदा दोस्तों

"अलविदा दोस्तों "



मिल जाते हैं

लोग

बहुत से लोग

रहगुजर पे

कुछ बेगाने

अपने से

और कुछ अपने

बेगाने से



सवाल उठने लगते हैं

जहन में

बार- बार

कौन है यार ?????



तन्हाई क्या है

अकेलापन

या जुदाई का एहसास

यार से

किसी अपने से



ये अपना कैसे हो गया ???

और ये बेगाना कैसे ???

अच्छा है

बुरा है

अपना है

बेगाना तो बेगाना है



कुछ पैदाइशी अपने हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 21, 2012 at 12:25pm — 16 Comments

जय हो देव जय हो

घर घर से आने का होता आह्वान

गली गली बड़े बड़े चित्रों से

सुसज्जित

नीचे लिखे पूजा कर्म विधान

स्थान सुनिश्चित

प्रभु के कामों में न हो व्यवधान

इन सब बातों का रखता है हर एक

पुजारी ध्यान

गलती में कोई खींचे न उनके कान

होती रहे कृपा मिलता रहे धन

धान

बड़े बड़े लाउड स्पीकर से

प्रारम्भ हुआ प्रभु का यशोगान

कुछ निर्धारित समय में बिलम्ब के

बाद

अवतरित हुए

नवनिर्मित अस्थायी मंदिर में

भगवान्

आराधन में नतमस्तक

खड़ी… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:13pm — 2 Comments

सपने कभी कभी सच भी होते हैं

आज़ादी

मेरे देश की आज़ादी

चीख रही थी

लाउड स्पीकर से

ऐ मेरे वतन के लोगो

ऐ मेरे प्यारे वतन

बहरे सुन रहे थे

गूंगे गुनगुना रहे थे

अंधे देख देख विश्मित हो रहे थे

लाल लाल शोलों से घिरा

एक दरख्त

कुछ लोग चढ़े हुए

हरे नीले पीले लाल

हाँ लाल लाल लाल

उस काले से दरख्त पे

सुर्ख लाल पत्ते

जिनकी नोंको से टपक रही थी

शराब सी शबनम

टप टप- टप टप

घेरा डाले बैठे से

बाज़ चील कौए

डाल डाल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:57am — 2 Comments

कडवे मीठे शब्द


संवेदनाओं की गहरी
-जड़ों पे टिके
अभिव्यक्ति के विशाल वृक्ष पे
भावनाओं की विस्तृत साखें
स्मृतियों के हरे भरे सब्ज पत्ते
आशाओं की उद्दीप्त नवल कोपल
और लटकते हैं
कडवे मीठे शब्द
कच्चे ,अध् पके ,अध् कच्चे
और कभी कभी पके शब्द
नीम नीम
या
शहद शहद
लज्ज़त लेने को
चख लेता हूँ
शब्द शब्द
अभिव्यक्ति के दरख्त पे
शब्द शब्द

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:21am — 4 Comments

"परमवीर चक्र"

"परमवीर चक्र"



लहूलुहान

मांस के लोथड़ों को

देखने वालों की

रूह कांप उठी

पत्नी माँ बाप

बच्चे पत्थर हो गए

उन पत्थरों को

पिघलाने…
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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 14, 2012 at 3:25pm — 4 Comments

भारत की पहचान यही धन धान यही अभिमान तिरंगा

==========मत्तगयन्द सवैया ============



भारत देश विशाल पुनीत यहाँ सबकी इक आन तिरंगा |

प्राण निछावर वीर करे इसकी खातिर यह शान तिरंगा |

केसरिया प्रिय श्वेत हरा अरु चक्र अशोक निशान तिरंगा |

भारत की पहचान…
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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 14, 2012 at 2:52pm — 1 Comment

"शहरीकरण"

"शहरीकरण"



संस्कृति

चीखती कराहती

बिलखती



अपने चिरंजीवी

होने के अभिशाप को लिए

नग्न पड़ी है

आधुनिकता के गुदगुदे बिस्तर पे

उसकी इज्ज़त तार तार करने वाले…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 13, 2012 at 2:03pm — 8 Comments

"मोर्निंग वाक्"

"मोर्निंग वाक्"



मंद मंद रौशनी

शीतल पवन के झोंके

पंछियों की चहक

कलरव है या संगीत

वसुधा का अनूठा गीत

नदियों झीलों पोखरों में

बिखरा पड़ा है स्वर्ण

कमल के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 11, 2012 at 11:47am — 2 Comments

दिल में मेरे कैद कैसे हो गए कान्हा

तुम हमारे बस हमारे हो गए कान्हा

इश्क वाले तुख्म दिल में बो गए कान्हा



तुम जिसे रखने को 'पा' भी कम पड़ी दुनिया

दिल में मेरे कैद कैसे हो गए कान्हा



याद तुझको जो कभी शैतान भी कर ले

पाप उस शैतान के सब धो गए कान्हा



जब तुम्हारे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 9, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ

यहाँ आजाद है हर सख्स थोपा जा रहा है क्यूँ

लडूं अधिकार की गर जंग रोका जा रहा है क्यूँ



हुआ है आज का हर आदमी अब तो सलामत-रौ

बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ



नहीं बेफिक्र है लोगो जिसे हालात है मालुम

जवाँ फिर आज मूंदे आँख सोता जा रहा है क्यूँ



सलीका इश्क करने का कभी आया नहीं लेकिन

जिसे देखो दिलों में आग बोता जा रहा है क्यूँ



खुदी मसरूफ है फिर भी शिकायत वक़्त से करता…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 7, 2012 at 11:44am — 14 Comments

हूँ मयस्सर खोल के दिल गुफ्तगू करना

जिक्र करना यार जब भी रू-ब-रू करना

हूँ मयस्सर खोल के दिल गुफ्तगू करना



एक दर उसका बिना मांगे मिला सब कुछ

भूल बैठा हूँ मुरादो आरजू करना



है सराफत शान औ ईमान है जलवा

मौत इनकी हो नहीं क्या हाय हू करना



याद में जब हो खुदा तो पाक दिल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 1, 2012 at 1:37pm — 8 Comments

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