Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 16, 2011 at 11:00am — 3 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 12, 2011 at 9:00am — 1 Comment
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 10, 2011 at 10:30am — 4 Comments
एक अश्क गिरा और फूट गया छन से
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 10:30am — 1 Comment
हम करते रहे खेतों में अनवरत काम
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'
भोर हुई कि चल पड़े डूबके अपने रंग
ले हल कांधो पे और दो बैलों के संग
बहते खून पसीना तज कर अपने मान
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---१
हैं उपजाते अन्न सब मिलकर खेतों में हम
फिर भी मालियत पे इसके हैं अधिकार खतम
सबकुछ समझ कर भी हम बनते है नादान
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---२
भूखे हैं हमसब या अपना है पेट…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 9:29am — 2 Comments
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई l
सिहर उठा ये तन मन मोरा
है बरखा बहार आई ||
काँप रहा तन ये अपना
बज रहा यूँ ही कंगना |
तनहा तनहा जीते जीते
अब आँख है भर आई ||
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई ll
सज गए सभी नज़ारे
तन पे गिर रही फुहारें |
धीरे धीरे रुक रुक के
अब तो चल रही पुरवाई ||
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 3, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
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