For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2016 Blog Posts (189)

ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )

ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )

------------------------------------

मफऊल-फ़ाइलातुन -मफऊल-फ़ाइलातुन

आग़ाज़े इश्क़ कर के अंजाम तक न पहुंचे ।

कूचे में सिर्फ पहुंचे हम बाम तक न पहुंचे ।

फ़ेहरिस्त आशिक़ों की देखी उन्होंने लेकिन

हैरत है वह हमारे ही नाम तक न पहुंचे ।

उसको ही यह ज़माना भूला हुआ कहेगा

जो सुब्ह निकले लेकिन घर शाम तक न पहुंचे ।

बद किस्मती हमारी देखो ज़माने वालो

बाज़ी भी जीत कर हम इनआम तक न…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 1, 2016 at 10:17pm — 12 Comments

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल- इश्क़ की राहों में

2122 2122 212



इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।

हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।

साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।

ऐ खवातीनों सुनों मेरा कहा।

क्यूँ जलाती हो दिखा अँगड़ाइयाँ।।

चाहता हूं डूबना आगोश में।

ऐ समंदर तू दिखा गहराइयाँ।।

दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?

रात भर बजती रही शहनाइयाँ।।

तुम गये तो जिंदगी तारीक है।

हो गयी दुश्मन सी अब रानाइयाँ।।

दूर…

Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 1, 2016 at 9:54pm — 6 Comments

रिश्तों के सीनों में ......

रिश्तों के सीनों में ......

कितनी सीलन है

रिश्तों की इन क़बाओं में

सिसकियाँ

अपने दर्द के साथ

बेनूर बियाबाँ में

कहकहों के लिबासों में

रक़्स करती हैं

न जाने

कितने समझौतों के पैबंदों से

सांसें अपने तन को सजाये

जीने की

नाकाम कोशिश करती हैं

ये कैसी लहद है

जहां रिश्ते

ज़िस्म के साथ

ज़मीदोज़ होकर भी

धुंआ धुंआ होती ज़िन्दगी के साथ

अपने ज़िन्दा होने का

अहसास…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 1, 2016 at 9:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल: शूलियों पर चढ़ चुकी सम्वेदनायें

212 22 12 22122



शूलियों पर चढ़ चुकी सम्वेदनायें ।

बाप के कन्धों पे बेटे छटपटाएं ।।



लाश अपनों की उठाये फिर रहा है ।

दे रही सरकार कैसी यातनाएं ।।



है यही किस्मत में बस विषपान कर लें ।

दर्द की गहराइयां कैसे छुपाएँ ।।



सिर्फ खामोशी का हक अदने को हासिल ।

डूबती हैं रोज मानव चेतनाएं ।।



हम गरीबों का खुदा कोई कहाँ है ।

मुफलिसी पर हुक्मरां भी मुस्कुराएं।।



वो करेंगे जुर्म का अब फैसला क्या ।

जो नचाते सैफई में…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:30pm — 6 Comments

एक नज़्म: सूनापन

सूनापन



एक ख़ला है, ख़ामोशी है,

जिधर देखो उदासी है,

समय सिफ़र हो गया,

आंसू निडर हो गए,

घेरे हैं लोग,पर कोई साथ नहीं,

सर पर किसी का हाथ नहीं,

शाम खाली गिलास सा,

टेबल पर औंधे मुंह पड़ा है,

मन में चिंता दीमक की तरह,

मन को खाये जा रही  है,

दिल की गली ऐसी सूनी है,

मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,

शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,

पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,

कब तक और कहाँ तक

इस सूनेपन, इस अकेलेपन का

बोझ…

Continue

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 1, 2016 at 6:30pm — 8 Comments

स्वर्गीय माँ की स्मृति में(ताटंक छंद)-रामबली गुप्ता

जीवनदात्री माता जब भी, याद तुम्हारी आती है।

हरि-सम निर्मल छवि माँ! तेरी मानस-पट पर छाती है।।

याद सदा आती हैं मइया! प्यार भरी तेरी बातें।

गाकर लोरी मुझे सुलाया, जागी तू कितनी रातें।।1।।



दूध-भात के कौर मधुर वो, मुझे न विस्मृत हो पाते।

जब आँचल में सो कर तेरे, हम सपनों में खो जाते।।

धूल-धूसरित तन ले जब आ बैठ गोद में जाता था।

हर भय से हर संशय से माँ! सहज-सुरक्षा पाता था।।2।।



बनी प्रथम गुरु-गुरुकुल तुम ही, नित नव बात बताती थी।

छोटों को दूं… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 1, 2016 at 5:30pm — 7 Comments

गीत,दिग्पाल छ्न्द-सतविन्द्र

गीत



मापनी :2212 122 2212 122

-------



मुझको सता रही हैं,यादें सभी तुम्हारी

दिलकश अदा तुम्हारी,मोहक हँसी तुम्हारी



चुपचाप पास आना,आकर मुझे सताना

वो पास बैठ जाना, हर बात को बताना

कब भूल पा रहा हूँ,वो दिल्लगी तुम्हारी

दिलकश.....





मैं भूलता जहां को,नजदीक तुम अगर थे

इस प्रेम की डगर पर,ऐ जान हमसफ़र थे

महसूस कर रहा हूँ,हर साँस भी तुम्हारी

दिलकश.....



नज़रें करें शरारत,अच्छी मुझे लगी थी

जब देख… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 1, 2016 at 5:01pm — 6 Comments

ग़ज़ल : मेरी ग़ज़लों का मंज़र

मेरी ग़ज़लों का मंज़र खुरदुरा है,
शज़र उम्म्मीद का लेकिन हरा है।

बढ़ाओ हाथ हम आज़ाद होंगे,
कलम भी जोश से देखो भरा है।

हमारे शेर में हैं अर्थ कितने,
बज़ाहिर दिख रहा जो इकहरा है।

चटानो को नहीं छूना कि मौसम,
हिदायत दे गया सब भुरभुरा है।

ग़ज़ल पढ़ना सुनाना ठीक है पर,
अगर गाने लगे तो सुर बुरा है।

निरुत्तर कर दिया मुझको ख़ुशी ने,
ग़मो को देख कर मुझ पर मरा है।


मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Ravi Shukla on September 1, 2016 at 12:21pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
'बेवकूफ औरत' (लघु कथा 'राज ')

  

मई जून का महीना आग बरसाता हुआ सूरज ऊपर से सामर्थ्य से ज्यादा भरी हुई खचाखच बस, पसीने से बेहाल लोग रास्ता भी ऐसा कहीं छाया या हवा का नाम निशान  नहीं बस भी मानों रेंगती हुई चल रही हो| एक को गोदी में एक को बगल में बिठाए बच्चों को लेकर रेवती सवारियों के बीच में भिंची हुई बैठी थी| मुन्नी ने पानी माँगा तो रेवती ने बैग से गिलास निकाल कर पैरों के पास रक्खे हुए केंपर से बर्फ मिला ठंडा ठंडा पानी दोनों बच्चों को पिला दिया |पानी देखकर न जाने कितने अपने होंठों को जीभ से गीला करने…

Continue

Added by rajesh kumari on September 1, 2016 at 12:17pm — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service