(2122 2122 2122 212)
आज फिर आये वो मुझको आज़माने के लिये..
क्या मिले हम ही थे उनको दिल दुखाने के लिये..
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बात से फ़िर जाएँगे,ये सोच भी कैसे लिया,
सर कटा देंगे, दिया वादा निभाने के लिये..
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ये शिकन माथे पे मेरे,बेवजह ही है सही,
कुछ तो कारण चाहिये ना, मुस्कुराने के लिये..
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थे भरे संदूक वो,शैतान सब धन खा गये,
हो गये हैं आज वो,मुहताज दाने के लिये..
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मंदिरों औ' मस्ज़िदों में 'जय' भटकना छोड़…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 29, 2015 at 12:27pm — 10 Comments
1222 1222 122
मेरा दिल प्यार का भूखा बहुत है
ये दरिया है,मगर प्यासा बहुत है
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मुकद्दर ने हमें मारा बहुत है
ज़माने से मिला धोखा बहुत है
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उठाएँ हम भला हथियार कैसे
वो दुश्मन है,मगर प्यारा बहुत है
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छुपाने का हुनर क्या खूब ढूँढा
हो ग़म तो शख़्स वो हँसता बहुत है
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डराओ मत उसे क़ानून से तुम
कि उसके जेब में पैसा बहुत है
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यूँ कहने को सितारे साथ हैं "जय"
मगर वो चाँद भी…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 24, 2015 at 12:32pm — 11 Comments
1222 1222 1222 1222
छलकते आँसुओं को हम तभी क्यूं भूल जाते हैं..
किसी को याद करके हम कभी क्यूं मुस्कुराते हैं..
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न हम अपनी वफ़ाओं को कभी भी छोड़ पाते हैं,
न अपनी बेवफाई से कभी वो बाज़ आते हैं..
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फ़िदा इन ही अदाओं पर हुऐ थे हम कभी यारों,
ज़रा सी बात पे वो रूठ कर फिर मान जाते हैं..
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नज़र की बात थी,पर वो कभी भी बूझ ना पाये,
ज़रा, हम हाल दिल का बोलने में हिचकिचाते हैं..
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भटक के इस शहर में,उब…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2015 at 3:50pm — 8 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2015 at 6:53pm — 17 Comments
(2122 1212 22)
आसमां तक वही गया होगा..
हो के बेख़ौफ़ जो उड़ा होगा..
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राह तू जब तलक निकालेगा,
सूर्य तब तक तो ढल चुका होगा..
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साँच को आंच ना कभी आती,
ये भी तुम ने कहीं सुना होगा..
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हम नज़र किस तरह मिलायेंगे,
जब कभी उन से सामना होगा..
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राह ईमान की चुने ही क्यों,
कौन तुमसे बड़ा गधा होगा..
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ठोकरें ना गिरा सकीं उस को,
शख़्स तूफां में वो पला…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 12, 2015 at 5:26am — 8 Comments
(221 1222 221 1222)
जाता नहीं अब कोई भी दर्द दवा लेकर..
ज़ख्मों को भरा दिल के,यादों का नशा लेकर..
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अब तक न मेरे फ़न को पहचान सके हैं जो,
फिर बाद में ढूंढेंगे वो मुझको दिया लेकर..
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फीके सभी पकवानों के स्वाद हो जाते हैं,
खाता है नमक रोटी, जब भी वो मज़ा लेकर..
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खोले खिड़की बैठा मैं देख रहा रस्ता,
शायद पहुँचे, कोई पैगाम हवा लेकर..
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न ढूंढ सकेगा सारी उम्र खुदा को 'जय',
फिर बोल करेगा क्या, तू उसका पता…
Added by जयनित कुमार मेहता on September 6, 2015 at 11:53pm — 10 Comments
तुम्हारे जाने के बाद
सोचा था,भुला दूंगा तुम्हें
जी लूँगा,उसी तरह
जैसे जीता था
जब तुम नहीं थे ज़िन्दगी में।
काटता रहा ज़िन्दगी...पल-पल
इसी भ्रम में
जी कहाँ पाया तब से?
काश!पहले पता होता
कमबख्त..यादें मरा नहीं करतीं
दिनभर की आपाधापी के बाद
साँझ ढले लौट आती हैं,घोंसले में
किसी उन्मुक्त पंछी की तरह
बहुत प्रयास किये
तिनका-तिनका नोच फेंकने के बाद भी
उजाड़ न पाया इनका बसेरा
सदा के लिए।
इनके कलरव हरपल
कांटे…
Added by जयनित कुमार मेहता on September 2, 2015 at 12:08pm — 4 Comments
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