For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Tasdiq Ahmed Khan's Blog – October 2017 Archive (5)

ग़ज़ल (सबसे छोटा क़ाफ़िया और सबसे लंबी रदीफ़ )

(फेलुन -फइलुन -फेलुन -फेलुन -फेलुन -फइलुन -फेलुन -फेलुन )

लल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |

छल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |

ज़ालिमकेमुक़ाबिल लब यारों मैं खोलभीदूँगाअपने मगर

बल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |

लम्हे जो गुज़ारे उल्फ़त में मुश्किल से मैं उनको भूला हूँ

पल का न करे कोई चर्चा वो याद मुझे आ जाएँगे |

तूफ़ां से बचा कर कश्ती को लाया तो हूँ साहिल पर लेकिन

जल का न करे कोई…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 20, 2017 at 6:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल -दीपावली (दिल में चरागे इश्क़ तो पहले जलाइए )

मफऊल -फ़ाइलात -मफाईल -फाइलुन 

 

दिल में चरागे इश्क़ तो पहले जलाइए |

नफ़रत मिटा के दीपावली फिर मनाइए |

 

तहवार भाई चारे का अहले वतन है यह

लग कर गले से रस्मे महब्बत निभाइए|

 

होने लगीं हवाएँ भी ज़हरीली दोस्तों

आतिश फशाँ पटाखे न घर में चलाइए |

 

करवा के बंद हर तरफ होता हुआ जुआ

रुसवाइयों से दीपावली को बचाइए  |

 

फरहत ही जिस ग़रीब की मंहगाई खा गई

कैसे मनाए दीपावली वो बताइए…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 20, 2017 at 9:00am — 6 Comments

ग़ज़ल (आ गये सिमट के)

फइलात -फ़ाइलातुन -फइलात -फ़ाइलातुन



सरे राह उसने देखा जो मुझे पलट पलट के |

उसी दिन से रह गया हूँ मैं मुआशरे से कटके |

अभी रूठ कर उठे थे कि कड़क के बर्क़ चमकी

मेरी बाहों में वो सहमे हुए आ गये सिमट के |

बड़ी रात जा चुकी है कोई ख़ाक आएगा अब

शबे ग़म मेरी इधर आ तुझे रो लूँ मैं लिपट के |

जो ग़रीब हौसला है उसे होगा कुछ न हासिल

वही जाम पा सकेगा जो उठा ले ख़ुद झपट के |

जिन्हें गुमरही का डर था वही पा गये हैं…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 6:00pm — 20 Comments

ग़ज़ल (ख़ौफे ख़ुदा नहीं है )

मफऊल -फाइलातुन -मफऊल -फाइलातुन



मेरे हबीब इस में तेरी खता नहीं है |

इल्ज़ामे बे वफ़ाई किस पर लगा नहीं है |

ओ प्यार के मुसाफिर इस पर भी ग़ौर कर ले

यह राहे ग़म है इस में कोई मज़ा नहीं है |

माली तेरी कमी से गुलशन में है तबाही

तू अब भी कह रहा है तुझको पता नहीं है |

दीदार मैं अभी तक चहरे का कर रहा हूँ

ठहरो अभी न जाओ यह दिल भरा नहीं है |

ग़मदीदा दिलसे उल्फ़त तुझसे न निभ सकेगी

कर तर्के इश्क़ कुछ भी…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 4:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल ( कोई देखे हमें महब्बत से )

फाइलातुन -मफ़ाइलुन -फेलुन 



दिल की हसरत यही है मुद्दत से |

कोई देखे हमें महब्बत से |

नामे उल्फ़त से जो नहीं वाक़िफ़

देखता हूँ मैं उसको हसरत से |

सब्र का फल तो खा के देख ज़रा

क्यूँ है मायूस उसकी रहमत से |

जिस ने देखा उन्हें यही बोला

उनको रब ने बनाया फ़ुर्सत से |

उसके हाथों में आइना दे दो

बाज़ आए नहीं जो गीबत से |

देखिए तो करम अज़ीज़ों का

वो हैं बे ज़ार मेरी सूरत से…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2017 at 12:00pm — 16 Comments

Monthly Archives

2022

2019

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service